राजमा का उपयोग हरी फली की सब्जी, एवं दानों को दाल और सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। राजमा खाने में बहुत स्वादिष्ट एवं फायदेमंन्द होता है। इसमें एंटीआक्सीडेंट एवं रेशा पाया जाता है। जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। राजमा की खेती रबी ऋतु में की जाती है। अभी इसके लिए उपयुक्त समय है। यह मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है।
राजमा की अच्छी पैदावार हेतु 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता पड़ती है। राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज फैजाबाद द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र पाती अंबेडकर नगर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि राजमा की उन्नतशील प्रजातियां , पीडीआर 14, इसे उदय भी कहते है। मालवीय 137, बीएल 63, अम्बर, आईआईपीआर 96-4, उत्कर्ष, आईआईपीआर 98-5, एचपीआर 35, बी, एल 63 एवं अरुण है।
खरीफ की फसल के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए। खेत को समतल करते हुए पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए इसके पश्चात ही बुआई करनी चाहिए।
राजमा के बीज की मात्र 30 से 35किलोग्राम प्रति बीघा लगती है। बीजोपचार 2 से 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की मात्र के हिसाब से बीज शोधन करना चाहिए। राजमा की बुआई लाइनों में करनी चाहिए ।लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंमी.रखते है, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते है। इसकी बुआई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करते हैं।
राजमा के लिए 30किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस एवं 7.5 किलोग्राम पोटाश प्रति बीघा तत्व के रूप में देना आवश्यक है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय तथा बची आधी नाइट्रोजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में देनी चाहिए। इसके लिए प्रति बीघा 20 किलोग्राम यूरिया, 33 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट, 13 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश बुआई के समय खेत में डालनी चाहिए। इसके साथ ही 5किलोग्राम गंधक की मात्रा देने से लाभकारी परिणाम मिलते है। प्रथम एवं द्वितीय सिंचाई के बाद 13, 13 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग करें। 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव बुवाई के बाद 30 दिन तथा 50 दिन में करने पर उपज अच्छी मिलती है।
राजमा में 2 या 3 सिचाई की आवश्यकता पड़ती है। बुआई के 4 सप्ताह बाद प्रथम सिचाई हल्की करनी चाहिए। बाद में सिचाई एक माह बाद के अंतराल पर करनी चाहिए। खेत में पानी कभी नहीं ठहरना चाहिए। प्रथम सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए बु्निराई के समय थोड़ी मिट्टी पौधे पर चढ़ा देनी चाहिए ताकि फली लगने पर सहारा मिल सके। 125 से 130 दिन में फसल तैयार हो जाती है तथा इसकी ऊपज प्रति बीघा 7:30 से 8.75 कुंटल प्राप्त होती है । राजमा मे पत्तियों पर मुजैक बीमारी देखते ही इंमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधो पर छिड़काव करें।
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