हर तरफ पसरे महंगाई के आलम में हरी सब्जियां आम आदमी को थोड़ा सुकून दे रही हैं लेकिन किसान भाइयों के लिए यह परेशानी का सबब बन गई है. शहरों में तो फिर भी इनके भाव बहुत कम नहीं है लेकिन गांवों और कस्बों में भिंडी, तुरई, लौकी और करेले जैसी सब्जियां बहुत सस्ती बिक रही है.
चंद महीने पहले तक हरी सब्जी प्रति किलो के भाव से बिक रही थी, वहीं अब यह 10 रुपये के 3 किलो के भाव से मिल रही हैं. वह भी बिल्कुल ताजा. हालांकि शहरों में अभी भी ये हरी सब्जियां 20 से 30 रुपये किलो तक बिक रही है.
क्यों है शहरों और गांवों में सब्जियों के दामों में अंतर
शहर और गांव में सब्जियों के दामों में इतना अंतर होना भी चकित कर देने वाला है. परिवहन लागत बढ़ने के डर से सब्जियां औने पौने दामों में बेची जा रही है और हमारे किसान भाई नुकसान उठाने को मजबूर हैं.
हरी सब्जियों के दामों में क्यों आई है कमी
दरअसल शादियों के सीजन में हरी सब्जियों की मांग कुछ कम हुई है इसीलिए किसानों के लिए लागत तो दूर की बात है मंडी तक पहुंचाने का किराया भी निकालना मुश्किल हो रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार 31 मई मंगलवार को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के मथौली कस्बे में तुरई, भिंडी, करेला, लौकी 10 रुपये में 3 किलो के भाव से बेचे जा रहे थे. वहीं परवल का भाव 30 रुपये और टमाटर का 80 प्रति किलो भाव देखकर ऐसा लगा मानो वे इन हरी सब्जियों को चिढ़ा रहे हों.
यह भी पढ़े : मोदी सरकार ने पैदा किया पूरे देश में विकास का माहौल: कैलाश चौधरी
इस दौर में पहले नींबू तो अब टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं, वहीं प्याज भी कम दामों के मामले में हरी सब्जियों होड़ करता प्रतीत हो रहा है. शादी समारोह में सबसे ज्यादा मांग आलू की है इसीलिए यह लगभग 25 रुपये किलो बिक रहा है.
क्या हो उपाय
सब्जियों के दामों में अप्रत्याशित कमी और अप्रत्याशित वृद्धि दोनों ही चिंताजनक है. इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे ताकि इनकी मतों का नियंत्रण और नियमन किया जा सके. इस तरह की स्थिति में जहां बिचौलिए अप्रत्याशित लाभ कमाते हैं, वहीं आम आदमी और किसान ठगे से रह जाते हैं इसीलिए जल्दी ही इस दिशा में प्रयास किए जाने की जरूरत है.
Share your comments