
भारतीय कृषि हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है, लेकिन हाल के वर्षों में कई कारणों से कृषि संकट की ओर बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन, मिट्टी का क्षरण, सिंचाई के पानी की कमी और रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों ने न केवल फसल की पैदावार को प्रभावित किया है, बल्कि किसानों की आय और स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डाला है. इसी विकट स्थिति को समझते हुए आंध्र प्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया और 23 फरवरी 2022 को आंध्र प्रदेश राज्य जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण प्राधिकरण (APSOPCA) की स्थापना की. यह पहल केवल एक सरकारी आदेश नहीं थी, बल्कि यह किसानों के लिए एक नया सवेरा लेकर आई.
APSOPCA का उद्देश्य आंध्र प्रदेश के किसानों को टिकाऊ, प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित करना था. इस संस्था ने न केवल किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में काम किया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कदम उठाए. APSOPCA सरकार और किसानों के बीच एक पुल की तरह काम करती है. यह सुनिश्चित करती है कि किसानों की उपज न केवल गुणवत्ता के मानकों पर खरी उतरे, बल्कि उन्हें उचित बाजार भी मिले.
कृषि जागरण ने APSOPCA के इन्हीं कार्यों और किसानों को हो रहे लाभ को लेकर APSOPCA के निदेशक, डॉ. यदलापल्ली सतीश से विशेष बातचीत की है. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:

सवाल: APSOPCA किसानों की कौन सी बड़ी समस्या को दूर करता है?
जवाब: पहले जैविक खेती करने वाले किसानों को अक्सर उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पाता था. खरीदारों को उनके उत्पाद की गुणवत्ता पर संदेह होता था, क्योंकि उनके पास कोई आधिकारिक सर्टिफिकेट नहीं होता था. लेकिन APSOPCA ने इस समस्या को जड़ से समाप्त कर दिया है. इस संस्था ने खुद को तीन प्रमुख प्रमाणीकरण योजनाओं के तहत मान्यता प्राप्त निकाय के रूप में स्थापित किया है, जो किसानों को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश दिलाती हैं. अब किसान अपनी फसल को केवल अपने खेत में नहीं, बल्कि एक ब्रांड के रूप में प्रमाणित करके, उसे विश्वस्तरीय मानकों के साथ बाजार में पेश कर सकते हैं.
सवाल: APSOPCA की बदौलत किसानों को क्या लाभ मिल रहे हैं?
जवाब: APSOPCA की स्थापना ने किसानों के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं. ये बदलाव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और तकनीकी भी हैं:
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उत्पाद का अधिक मूल्य: प्रमाणित जैविक उत्पादों को बाजार में लगभग 15–20% अधिक कीमत मिलती है. इससे किसान अपनी उपज का सही मूल्य प्राप्त कर पा रहे हैं और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है.
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हितधारकों से सीधा जुड़ाव: APSOPCA किसानों को सीधे व्यापारियों, निर्यातकों और सरकारी विभागों से जोड़ता है. इससे बिचौलियों की भूमिका कम हो जाती है और किसानों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ मिलता है.
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मजबूत ट्रेसिबिलिटी प्रणाली: APSOPCA ने एक वेब-आधारित ट्रेसिबिलिटी 2.0 प्रणाली और एक मोबाइल ऐप विकसित किया है, जो उपभोक्ताओं को उत्पाद की ट्रैकिंग की सुविधा देता है. यह उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ाता है और किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य दिलाता है.
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ज्ञान और आत्मविश्वास में वृद्धि: APSOPCA किसानों को सिर्फ प्रमाणीकरण नहीं देता, बल्कि उन्हें आधुनिक और टिकाऊ खेती के तरीकों का प्रशिक्षण भी प्रदान करता है. इससे किसानों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ी है.
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आत्मनिर्भरता और सम्मान: किसान अब केवल पैदावार बढ़ाने पर ध्यान नहीं देते, बल्कि वे अपनी उपज की गुणवत्ता और बाजार मूल्य पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं. यह उन्हें समाज में एक मजबूत स्थिति और सम्मान देता है.
सवाल: सर्टिफिकेशन की तीन प्रमुख प्रमाणीकरण योजनाएं कौन-कौन सी हैं?
जवाब: APSOPCA ने किसानों को जिन तीन अलग-अलग स्तरों पर सर्टिफिकेशन का विकल्प दिया है, वे किसानों की ज़रूरतों और बाजार के अनुसार हैं. किसान अपनी हिसाब से इन विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं.
पहला है - IndG.A.P. (India Good Agricultural Practices) सर्टिफिकेशन.
जो किसान आंशिक रूप से एग्रोकेमिकल्स और उर्वरकों का इस्तेमाल अपनी फसलों में करते हैं, जो कि विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित होते हैं, वे किसान यह सर्टिफिकेशन करा सकते हैं.
IndG.A.P. का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे प्रमाणित उत्पादों को वैश्विक बाजार में 130 से अधिक देशों में बेचा जा सकता है. वर्ष 2024-25 में, आंध्र प्रदेश के 163 FPOs के तहत लगभग 3,495 किसानों ने इस योजना का लाभ लिया और लगभग 2,621.17 हेक्टेयर भूमि से 9,219.22 मीट्रिक टन से अधिक उत्पादों का उत्पादन किया.
दूसरा है - NPOP (National Programme for Organic Production) के तहत ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन.
इसके अंतर्गत किसान पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं, और तीन साल के बाद उन्हें जैविक सर्टिफिकेट मिलता है. इस सर्टिफिकेशन का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि इसके मानक यूरोपीय संघ और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों के मानकों के बराबर हैं, जिससे उत्पादों को 50 से अधिक देशों में निर्यात किया जा सकता है. वर्ष 2024-25 में, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों के 44 किसान समूहों के 18,953 किसानों ने 1,42,248.46 मीट्रिक टन से अधिक उपज को सर्टिफिकेशन कराया.
वहीं, आंध्र प्रदेश के साथ-साथ तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु भारत के केंद्र शासित प्रदेश अंडमान, पुडुचेरी, और लक्षद्वीप भी APSOPCA से ऑर्गनिक सर्टिफिकेशन करा सकते हैं.
तीसरा है - PGS-India (Participatory Guarantee System) सर्टिफिकेशन.
यह सर्टिफिकेशन छोटे और सीमांत किसानों के लिए है, जो महंगे प्रमाणीकरण खर्चों को वहन नहीं कर सकते. इस प्रणाली में किसान एक-दूसरे के खेतों की जांच करते हैं और सामूहिक रूप से अपने उत्पादों को प्रमाणित करते हैं. वर्ष 2025 में, 55 स्थानीय समूहों के 335 किसानों को इस योजना के तहत प्रमाणित किया गया.

सवाल: अगर कोई किसान सर्टिफिकेशन कराता है तो उसे प्रति एकड़ कितने रुपये देने पड़ते हैं?
जवाब: अगर कोई किसान अकेले सर्टिफिकेशन कराता है, तो उसे 3,500 रुपये शुल्क देना पड़ता है. वहीं, किसान समूहों (FPO) के लिए यह शुल्क 55,000 रुपये है, जिसमें 25 से 500 तक किसान शामिल हो सकते हैं. अगर किसान समूह के रूप में सर्टिफिकेशन कराते हैं, तो समूह को सर्टिफिकेशन लागत में लाभ मिलता है. वहीं, सर्टिफिकेट की वैधता 1 साल की होती है.
सवाल: आंध्र प्रदेश में जैविक और प्राकृतिक खेती को लेकर आपकी योजना कैसी रही है?
जवाब: आंध्र प्रदेश में वर्तमान में लगभग 10 लाख किसान लगभग 7 लाख एकड़ क्षेत्र में प्राकृतिक और जैविक विधि से खेती कर रहे हैं. हमारा अगला लक्ष्य अगले साल तक 50 लाख किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करना है. यह कदम न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि राज्य की कृषि व्यवस्था को भी वैश्विक मानकों पर ले जाने में मदद करेगा.
सवाल: एपीएसएससीए की भविष्य की योजना क्या है?
जवाब: हम वर्तमान में सर्टिफिकेशन एजेंसी के तौर पर सिर्फ क्रॉप सर्टिफिकेशन कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में हम APSOPCA को कुछ नए क्षेत्रों में, जैसे - पशुपालन, प्रसंस्करण और ट्रेडिंग क्षेत्रों में भी विस्तार करने की योजना बना रहे हैं.
सवाल: सर्टिफिकेशन कराने के लिए किसानों को क्या करना होगा?
जवाब: यदि कोई किसान सर्टिफिकेशन कराना चाहता है, तो वह APSOPCA की आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट कर हमसे संपर्क कर सकता है. साथ ही मेल आईडी [email protected] पर भी हमसे संपर्क किया जा सकता है.
सवाल: जैविक और प्राकृतिक खेती को लेकर किसानों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
जवाब: मेरी सलाह है कि किसान शुरुआत में छोटे स्तर पर जैविक और प्राकृतिक खेती को अपनाएं और धैर्य के साथ इसे विस्तार दें. शुरू में उपज में कुछ कमी आ सकती है, लेकिन जैसे-जैसे किसानों को अपनी मेहनत का सही मूल्य मिलेगा, उनका लाभ बढ़ेगा और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. मैं सुझाव देता हूँ कि पहले अपनी भूमि का 25-30% हिस्सा जैविक खेती के लिए समर्पित करें, और धीरे-धीरे इसे बढ़ाते जाएं. जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह किसानों को आत्मनिर्भर बनाती है.
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