फसल बीमा के विस्तार के बाद किसानों के बीमा दावों के भुगतान के लिए सटीक आंकड़ों की जरूरत बढ़ती जा रही है. इसके लिए सरकार बहुत जल्द बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के साथ एक समझौता-पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने वाली है.
केंद्र सरकार ने इसरो के अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने के लिए २०१२ में मेहलनबीस नेशनल क्रॉप फोरकास्ट सेंटर की स्थापना की थी. इसके बावजूद सही आंकड़े नहीं मिल पा रहे हैं.
महाराष्ट्र सरकार सोयाबीन और कपास की खेती का क्षेत्र और उपज की सटीक जानकारियां जुटाने के लिए ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करना चाहती है। देश में कपास, सोयाबीन और गन्ना उत्पादन में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है, लेकिन उत्पादन और उपज के आकलन में अक्सर चूक जाता है। खास तौर पर गन्ने के उत्पादन का अनुमान अक्सर गलत साबित हुआ है।
महाराष्ट्र सरकार पिछले कुच्छ सालों से फसलों को हुए नुक्सान का पता लगाने के लिए दूसरे मानको के साथ ही प्राइवेट एजेंसियों की मदद से ड्रोन टेक्नोलॉजी का भी परीक्षण करती रही है.
महाराष्ट्र सरकार ने इस पायलट प्रोजेक्ट के लिए दो साल के लिए ढाई करोड़ रुपये का आवंटन करने की योजना बनाई है.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र स्टेट कमीशन आफ एग्रीकल्चरल कस्टम एंड प्रिंसेस के चेयरमैन पाशा पटेल खेती में ड्रोन के इस्तेमाल के लिए राज्य में सेंटर बनाने के वास्ते आई आई एस सी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग प्रोफेसर के पी जे रेड्डी और एस एन ओंकार के साथ बैठक कर चुके हैं. पटेल का यह भी कहना था की इस परियोजना में दिलचस्पी रखने वाले राज्य के चार कृषि विश्वविद्यालयों के साथ भी बैठक की गयी.
सैटेलाइट के इस्तेमाल के बावजूद 2017-18 चीनी उद्योग ने 251 लाख टन गन्ने के उत्पादन का अनुमान लगाया था। लेकिन वास्तविक उत्पादन 28.5 फीसदी ज्यादा यानी 322.5 लाख टन रहा। ड्रोन टेक्नोलॉजी को इस चूक को रोकने में कारगर माना जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार बीते कुछ सालों से फसलों के नुकसान का आकलन करने में ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है।
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
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