1. Home
  2. ख़बरें

पारम्परिक रूप से हटकर अब नए तरीके से कर सकते हैं धान की खेती

भारत में चावल की खेती एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. यहाँ दोपहर के खाने में आज भी लोग चावल खाना अधिक पसंद करते हैं. इसलिए भारत में चावल की खपत के कारण धान की खेती सबसे अधिक क्षेत्रफल में की जाती है. हालाँकि, धान को उगाने के लिए गीली और नम जलवायु की जरुरत पड़ती है, लेकिन यह उष्णकटिबंधीय पौधा भी नहीं है. इसके बावजूद इसकी रोपाई गीली और नम जलवायु में ही की जाती है.

प्राची वत्स
Paddy Cultivation
Paddy Cultivation

भारत में चावल की खेती एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. यहाँ दोपहर के खाने में आज भी लोग चावल खाना अधिक पसंद करते हैं. इसलिए भारत में चावल की खपत के कारण धान की खेती सबसे अधिक क्षेत्रफल में की जाती है. हालाँकि, धान को उगाने के लिए गीली और नम जलवायु की जरुरत पड़ती है, लेकिन यह उष्णकटिबंधीय पौधा भी नहीं है. इसके बावजूद इसकी रोपाई गीली और नम जलवायु में ही की जाती है.

इतिहासकारों द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है की धान पूर्वी हिमालय की तलहटी में पाई जाने वाली जंगली घास की ही वंशज है. इन तमान चीजों को को मद्देनजर रखते हुए भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान (IARI ) ने देश में पहली बार गैर-जीएम शाकनाशी-सहिष्णु (Herbicide –olerant) किस्म को विकसित किया है. धान का यह किस्म पारम्परिक तरीकों से उगाई जाने वाली धानों से बिलकुल विपरीत है. यह बिना पानी और श्रम की मेहनत के बजाए सीधा रोपा जा सकता है.

चावल की किस्में

पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1958 में एक ऐसा उत्परिवर्तित एसिटोलैक्टेट सिंथेज़ पाया जाता है, जिससे किसानों को खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए एक बहु-उद्देशीय शाकनाशी, इमाज़ेथापायर का छिड़काव करना जरुरी हो जाता है. इससे नर्सरी में तैयार करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है,  जहां धान के बीजों की पहले नर्सरी तैयार की जाती है, फिर उखाड़ कर 25-35 दिन बाद खेतों में लगाया जाता है. अब वही इसे सीधे और सरल तरीकों से उगाया जाना संभव हो गया है. वहीं, दो नई किस्मों को प्रधानमंत्री द्वारा मंगलवार को आधिकारिक रूप से जारी किया गया.

धान की रोपाई में मेहनत और जल-जमाव दोनों है. जिस खेत में रोपाई की जाती है, उसे खड़े पानी में जोतना पड़ता है. रोपाई के बाद पहले तीन हफ्तों तक, 4-5 सेंटीमीटर पानी बनाए रखकर पौधों को दैनिक रूप से सिंचित किया जाता है, फिर किसान हर दो-तीन दिनों में पानी देने की प्रक्रिया को जारी रखते हैं, यहां तक कि अगले चार-पांच हफ़्तों तक, जब फसल के तने विकसित न हो जाएं तब तक उसका ध्यान रखा जाता है.

पानी एक प्राकृतिक शाकनाशी है जो धान की फसल के शुरुआती विकास में मदद करता है और खरपतवारों का भी ख्याल रखता है. नई किस्में बस पानी को इमाज़ेथापायर से बदल देती हैं, जिससे नर्सरी, पोखर, रोपाई और खेतों में बाढ़ की कोई आवश्यकता नहीं होती, यानि पारम्परिक तरह से की जानने वाली खेती की इस प्रक्रिया में कोई जरुरत नहीं होती है. आप गेहूं की तरह धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं.

English Summary: Now it is easy to cultivate paddy Published on: 28 September 2021, 06:24 PM IST

Like this article?

Hey! I am प्राची वत्स. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News