पौधों की सटीक पहचान के लिए के मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने अनोखी और विश्व की पहली तकनीक का अविष्कार किया है. इस तकनीक को डी.एन.ए. बारकोड फाॅर स्पीशीज आइडेन्टीफिकेशन ऑफ सेज प्लान्ट्स एण्ड मेथड्स देयर ऑफ नाम दिया गया है. यह एक डी.एन.ए. बारकोड आधारित पद्धति है. जिससे पौधों की पृथक पहचान करने में मदद मिलेगी. तो आइये जानते हैं इस तकनीक के बारे में पूरी जानकारी.
औषधीय पौधों के लिए बेहद फायदेमंद
पौधों की पृथक पहचान करने में इस तकनीक बेहद कारगर माना जा रहा है. इस तकनीक के जरिये एक जैसे नज़र आने वाले पौधों की सटीक पहचान की जा सकती है. खासतौर से यह औषधीय पौधों (बिछौने कुल की घास) की पृथक पहचान सरलता से करने में मददगार है. इस तकनीक को विश्वविद्यालय ने दुनियाभर के एग्रीकल्चर साइंटिस्ट, रिसर्चर, स्टूडेंट्स और बिजनेसमैन के लिए बेहद उपयोगी बताया है. बता दें कि देश के जंगलों में कई तरह के उपयोगी पौधे होते हैं जो दिखने में एक जैसे होते हैं. इससे उनकी अलग पहचान आसानी से नहीं हो सकती है. ऐसे में तकनीक बेहद ही उपयोगी मानी जा रही है.
सरकार ने 20 साल का पेटेन्ट दिया
इस तकनीक को भारत सरकार ने पेटेन्ट दे दिया है. इसके लिए विश्वविद्यालय ने 16 जनवरी, 2016 को आवदेन दिया था. इस साल 2021 में सरकार ने इसे 20 साल के लिए पेटेन्ट दिया है. बता दें विश्वविद्यालय द्वारा अब तक 10 पेटेन्ट फाइल किये जा चुके हैं जिसमें पहली बार इस तकनीक पर सरकार ने पेटेन्ट दिया है.
इन वैज्ञानिकों की ईजाद
इस तकनीक को विकसित करने में विश्वविद्यालय के शोधकर्ता संचालक डॉ. शरद तिवारी और उनकी टीम डॉ. कीर्ति तंतवाय तथा डॉ. नीरज त्रिपाठी ने अहम भूमिका निभाई है. विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन ने बताया कि यह विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है. इससे पहले हमारे वैज्ञानिक भारत के लिए 10 पेटेन्ट फाइल कर चुके हैं.
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