आने वाले दिन कोरोना वायरस के लिहाज से अच्छे रहेंगे या बुरे इस पर तो फिलहाल कुछ भी टिप्पणी करना मुनासिब नहीं रहेगा, मगर मौजूदा समय में जिस तरह कोरोना का कहर अपने चरम पर पहुंच कर लोगों को अपने आवेश में लेने पर आमादा हो चुका है. उसे खारिज नहीं किया जा सकता है. जिस तरह लोग ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, उसे खारिज नहीं किया जा सकता है. जिस तरह लोग अस्पताल के दर पर दस्तक देने से पहले से ही सुपर्द-ए-खाक हो रहे हैं, उसे खारिज नहीं किया जा सकता है. जिस तरह हर रोज अस्पतालों में दम तोड़ते मरीजों की चित्कार हमें सुनने को मिल रही है, उन दर्दनाक आवाजों को नहीं भुलाया जा सकता है.
टीवी स्क्रीन पर दिखने वाली उन हदय विदारक तस्वीरों को नहीं भुलाया जा सकता है, जिन्हें देखकर हमारा क्या बल्कि हर किसी का दिल पसीज उठेगा, लेकिन बड़े ही अफसोस के साथ यह लिखने पड़ रहा है कि अगर सरकार ने वक्त रहते कुछ एहतियाती भरे कदम उठाए होते, तो आज हमें यह दिन न देखना पड़ता.
आज किसी का पिता अपने बेटे को यूं अनाथ छोड़कर न जाता. यकीन मानिए, अगर हमारी सरकार ने थोड़ी-सी भी संजीदगी दिखाई होती, तो किसी मां का लाल यूं इस दुनिया से रूखसत न होता. कोई स्त्री विधवा न हो रही होती, तो किसी मां से उसका लाल न छिनता, मगर अफसोस पूरे देश को विश्व गुरु बनाने का ख्वाब दिखाने वाली मोदी सरकार तो अब अपने आपको स्वंभु समझने लगी है. सर्वज्ञानी समझने लगी है. सर्व शक्तिमान समझने लगी है. इन्हें लोगों की जिंदगी से ज्यादा चुनाव की फ्रिक थी. इन्हें इंसान की जिंदगी से ज्यादा अपनी सरकार की फिक्र है. करिए आप फिक्र. हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर हुजूर यह तो याद रखिए कि जिस देश में आप शासन कर रहे हैं, वहां लोकतंत्र है, आप हमारी ही जिंदगी को खतरे में डालकर आप कौन-सा चुनाव लड़ेंगे? आप हमारी ही जिंदगी को खतरे में डालकर आप कहां सरकार बनाएंगे? हमारी ही जिंदगी को खतरे में डालकर आप किसके लिए कानून बनाएंगे?
जम्हूरियत के चौथा खंभा होने के नाते हमारा यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम हुकूमत से यह सवाल करें. उस सरकार से सवाल करें, जो अपने आपको स्वंभु समझने लगी है. यह सवाल हम उस सरकार से पूछ रहे हैं, जो अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने लगी है, यह सवाल हम उस सरकार से पूछ रहे हैं, क्योंकि पूछना जरूरी है. वो इसलिए क्योंकि 'दा नेचर साइंस' पत्रिका में एक लेख छपा है, जिसमें पूरे सुबूतों और गवाहों के साथ इस बात की तस्दीक भरी एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, जिसमें यह बताया गया है कि अगर समय रहते भारत सरकार ने वैज्ञानिकों की बात मान ली होती है, तो आज हमें यह दिन नसीब न होते. आज लोगों की जान न जा रही होती. आज किसी शख्स की चित्कार हमें अस्पताल में दम तोड़ते हुए सुनाई न दे रही होती.
आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि काफी पहले ही भारत सरकार को चेता दिया गया था कि जिस तरह की शैली अभी भारत अपना रहा है. अलबत्ता, अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो फिर वहां (भारत ) कोरोना विकराल रूप धारण कर सकता है. वैज्ञानिकों ने अपने इस वक्तव्य से साफ कह दिया था कि भारत को आगामी संकट से निपटने के लिए मौजूदा समय में ही अपने लाव लश्कर को दुरूस्त कर लेना चाहिए. भारत को पहले ही अपने सारे हथियारों को दुरूस्त कर लेने चाहिए, ताकि दोहरी ताकत के साथ कोरोना से लड़ा जा सके, लेकिन अब भला अपने आपको स्वंभु समझने वाले ये सूरमा कहां किसी बात मानने वाले हैं. यह तो चुनाव में बीजी थे. निशाना साधने में लगे थे. हमला बोलने में लगे थे. मंत्री पद बाटंने में लगे थे. ओ दीदी ओ दीदी करने में लगे थे.
इन्हें कहां कोरोना से जा रही लोगों की जिंदगी की चिंता. उस समय इन्हें गवारा न लगी वैज्ञानिकों की हिदायत. बस, जरूर था तो चुनाव प्रचार करना. और अब जब भारत में कोरोना की स्थिति विकराल हो चुकी है. ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा है. न्यायापालिक भी थक चुकी है. भला वो करें तो करें क्या. उसका काम फैसला सुनाना ही है. उसे आत्मसात करने का काम तो विधायिका का ही है, तो सवाल भी उसी से पूछे जाएंगे. लेकिन, आज हमारी स्थिति कुछ उसी कहावत सरीखी बन चुकी है कि तब क्या पछताए जब चुग गई चिड़िया खेत.
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