
भारत अब न सिर्फ इंसानों के लिए, बल्कि पालतू मवेशियों के लिए भी वैक्सीन निर्माण में बड़ी सफलता हासिल कर चुका है. देश में पहली बार वैज्ञानिकों ने गाय-भैंसों को होने वाली खतरनाक बीमारी इंफेक्शन बोवाइन राइनोट्रेकाइटिस (IBR) के लिए स्वदेशी वैक्सीन तैयार की है. इसका नाम रखा गया है रक्षा-IBR यह वैक्सीन हैदराबाद स्थित इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड NDDB के साथ मिलकर विकसित की गयी है.
अब तक क्यों थी समस्या
अब तक देश में IBR के खिलाफ कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी. न ही इस बीमारी का कोई पुख्ता इलाज मौजूद था. केवल रोकथाम ही एकमात्र उपाय था. किसान और पशुपालक अक्सर इस बीमारी के कारण बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान उठाते थे. लेकिन अब इस समस्या का समाधान मिल गया है.
बीमारी क्या है और क्यों है खतरनाक
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आईबीआर (IBR) एक संक्रामक रोग है जो बोवाइन हर्पीज वायरस (BHV-1) से होता है. यह बीमारी गाय-भैंसों में वायु मार्ग से फैलती है और उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता पर गंभीर असर डालती है.
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संक्रमित पशुओं में नाक और आंख से स्राव, तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत देखी जाती है.
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सबसे बड़ा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है. दूध की मात्रा तेजी से घटने लगती है.
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यह बीमारी प्रजनन अंगों को भी प्रभावित करती है, जिससे बांझपन और गर्भपात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
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संक्रमित सांडों का वीर्य भी खराब हो जाता है, जिससे अगली पीढ़ी की नस्लें कमजोर और कम दूध देने वाली हो जाती हैं.
वहीं विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में आईबीआर के मामलों की दर 32% से अधिक है. इसके कारण हर साल करीब 18 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है. यही वजह है कि इस बीमारी से बचाव के लिए एक प्रभावी समाधान की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी.
वैक्सीन की खासियत
रक्षा-IBR वैक्सीन एक gE-डिलीटेड DIVA (Differentiating Infected from Vaccinated Animals मार्कर वैक्सीन है. इसका मतलब है कि यह न केवल बीमारी से बचाव करती है, बल्कि इससे यह भी आसानी से पता लगाया जा सकता है कि कोई पशु संक्रमित है या केवल वैक्सीन लगा हुआ है. बता दें कि वैक्सीन को खासतौर पर दूध देने वाले पशुओं यानी दुधारु गाय-भैंसों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है.
किसानों को क्या फायदा होगा
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दूध उत्पादन में स्थिरता – बीमारी से दूध घटने का खतरा कम हो जाएगा.
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आर्थिक नुकसान में कमी – हर साल होने वाले 18 हजार करोड़ रुपये के नुकसान से बचाव होगा.
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बेहतर प्रजनन क्षमता – गाय-भैंस बांझपन और गर्भपात जैसी समस्याओं से बचेंगी.
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स्वस्थ नस्लें – सांडों का वीर्य खराब नहीं होगा, जिससे आगे की पीढ़ी अधिक उत्पादक होगी.
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आत्मनिर्भरता– अब विदेशी वैक्सीन पर निर्भरता नहीं होगी.
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