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इस वर्ष होगी कपास के रकबे में वृद्धि

कपास के दाम 2016-17 में अपेक्षाकृत ऊंचे रहे हैं और मौजूदा वित्त वर्ष में भी यही रुख जारी है। इससे किसानों को इस वित्त वर्ष में कपास की और ज्यादा खेती करने का प्रोत्साहन मिलेगा। फलस्वरूप इसका रकबा भी बढ़ेगा और फसल भी। हालांकि कपास की मांग भी बढ़ रही है, खासतौर पर मिलों की मांग। इसके नतीजतन कपास के वर्ष समाप्ति के स्टॉक में लगातार गिरावट आएगी। अन्तर्राष्ट्रीय कपास परामर्श समिति (आईसीएसी) ने ऐसी ही संभावना जताई है।

कपास के दाम 2016-17 में अपेक्षाकृत ऊंचे रहे हैं और मौजूदा वित्त वर्ष में भी यही रुख जारी है। इससे किसानों को इस वित्त वर्ष में कपास की और ज्यादा खेती करने का प्रोत्साहन मिलेगा। फलस्वरूप इसका रकबा भी बढ़ेगा और फसल भी। हालांकि कपास की मांग भी बढ़ रही है, खासतौर पर मिलों की मांग। इसके नतीजतन कपास के वर्ष समाप्ति के स्टॉक में लगातार गिरावट आएगी। अन्तर्राष्ट्रीय कपास परामर्श समिति (आईसीएसी) ने ऐसी ही संभावना जताई है।

 2017-18 में कपास वर्ष (जुलाई-जून) के दौरान कपास के अंतर्गत कुल क्षेत्र में वैश्विक रूप से पांच प्रतिशत का इजाफा होगा और यह बढ़कर 3.08 करोड़ हेक्टेयर हो जाएगा। समिति के अनुसार, '2016-17 में कपास के बेहतर दाम और ज्यादा पैदावार के कारण किसानों के प्रोत्साहित होने से 2017-18 में भारत के कपास क्षेत्र में सात प्रतिशत तक का इजाफा होकर 1.13 करोड़ हेक्टेयर रहने का पूर्वानुमान है। उपज को पांच साल के औसत के समान मानकर उत्पादन में तीन प्रतिशत तक का इजाफा होकर करीब 60 लाख टन रहने की संभावना है। भारत के कपड़ा आयुक्त ने 2016-17 में 568.29 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज का अनुमान जताया था। सबसे ज्यादा उपज दक्षिण भारत में हुई थी और पिछले सालों के मुकाबले कुल उपज बेहतर थी।

एडलवाइस एग्री सर्विसेज ऐंड क्रेडिट की उपाध्यक्ष (शोध) प्रेरणा देसाई का कहना है कि इस साल कपास में एकदम अलग सीजन नजर आया है। नोटबंदी की प्रतिक्रिया स्वरूप किसानों ने अपने उपज को बेचने में देरी की और पूरे सीजन के दौरान दाम निर्धारित करते रहे। चूंकि सीजन में दाम कम नहीं हुए इसलिए मिलों को कम दामों पर खरीद का मौका नहीं मिला। इस सीजन के दौरान राजस्थान में किसानों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुजरात में कपास के स्थानीय उपभोग में वद्धि के साथ-साथ कम फसल ने पंजाब और हरियाणा में कच्ची कपास के अभाव को बढा़वा दिया। तमिलनाडु के बाद यह उपभोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।

इस कमी के अनुरूप ही उत्तरी भारत में मार्च महीने में मिलों का आयात उभरने लगा। इस सीजन में इन मिलों ने अमेरिकी कपास का बड़ी मात्रा में आयात किया। इससे उनके धागे की आमदनी में इजाफा हुआ और परंपरागत रूप से भारत के इस गैर-आयातकर्ता क्षेत्र में संभवत: अमेरिकी कपास ने कुछ विश्वास अर्जित किया है। समिति के अनुसार करीब 60 लाख टन के उत्पादन से भारत को चीन और अमेरिका से काफी मार्जिन से आगे निकलने में मदद मिलेगी। 

चीन के उत्पादन में एक प्रतिशत तक का इजाफा होकर 48 लाख टन रहने का अनुमान जताया गया है। पांच सीजनों में यह पहली वृद्धि है। अमेरिका में किसानों के कपास क्षेत्र में 12 प्रतिशत तक का विस्तार होकर 43 लाख हेक्टेयर का पूर्वानुमान है। इसी तरह यहां प्रति हेक्टर 938 किलोग्राम उपज और उत्पादन में आठ प्रतिशत तक की वृद्धि होकर 40 लाख टन की बढ़ोतरी का अनुमान जताया गया है। ऊंची कीमतों के अलावा वैश्विक रूप से कपास के रकबे में इजाफे का दूसरा कारण सोयाबीन की कीमतों से कम आमदनी होना भी है। एक विशेषज्ञ का कहना है कि इसके फलस्वरूप किसानों ने सोयाबीन छोड़कर कपास का रुख कर लिया है।

English Summary: Increase in the area of cotton this year Published on: 28 August 2017, 12:13 AM IST

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