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शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा 3 दिवसीय ज्ञानोत्सव व प्रदर्शनी का शुभारंभ, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर रहे मौजूद

आज पूसा, दिल्ली में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा 3 दिवसीय ज्ञानोत्सव व प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया.

अनामिका प्रीतम
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा 3 दिवसीय ज्ञानोत्सव व प्रदर्शनी का शुभारंभ
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा 3 दिवसीय ज्ञानोत्सव व प्रदर्शनी का शुभारंभ

नई दिल्ली, 17 नवंबर, 2022: शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित 3 दिवसीय ज्ञानोत्सव व प्रदर्शनी का शुभारंभ आज पूसादिल्ली में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता तथा नोबल पुरस्कार विजेता-बाल अधिकार क्षेत्र के समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के मुख्य आतिथ्य में हुआ.

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह अरूण कुमारविनय सहस्त्रबुद्धेडॉ. अतुल कोठारीडॉ. पंकज मित्तलओमप्रकाश शर्मामती उपासना अग्रवाल एवं अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे. शिक्षा से आत्मनिर्भर भारत की थीम पर आयोजित इस सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि नई शिक्षा नीति आने वाले कल में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देगी. साथ ही जब देश की आजादी 100 वर्ष की होगी तब यही शिक्षा नीति पुन: भारत को विश्वगुरु के पद पर अधिष्ठित करने में भी सफल होगी.

तोमर ने कहा कि शिक्षा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है. शिक्षा प्रगति का उपकरण हैलेकिन अगर शिक्षा की दिशा ठीक न हो तो उसका नुकसान भी देश और समाज को उठाना पड़ता है. देश की आजादी के तत्काल बाद जो दिशा निश्चित करनी चाहिए थीउसमें दुर्लक्ष्य हुआ. इस कारण हमारे निज गौरवदेशज पद्धतियां व परंपराएं प्रभावित हुईं. जिन लोगों को शिक्षित कहा जा सकता हैउनका भी बड़ा वर्ग इस पूरी दिशा को उपेक्षित करने में लगा हुआ था. उन्होंने कहा कि हमारा अपना संस्कार हमें दूसरों की मदद करने के लिए पे्ररित करता है. हमारा संस्कार सबको साथ लेकर चलने की प्रेरणा देता है. पुरातन भारत में भी गांव में कोई पढ़ा लिखा नहीं होता था लेकिन गांव का संस्कार ऐसा था कि कोई परेशान भी नहीं था. उन्होंने कहा कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी के साथ-साथ राष्ट्रोन्मुखी और संस्कारोन्मुखी भी होनी चाहिए.

इस दिशा में मनीषियों ने समय-समय पर मंथन किया और जरूरी सुझाव दिए हैं. जब शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नहीं था तब शिक्षा बचाओ आंदोलन था. इसके माध्यम से निरंतर देश में काम हो रहा था. उस काल खंड में सरकारों की प्रतिकूलता थीउसके बाद भी शिक्षा में संस्कार का दीप जलाया गया. बीच-बीच में अनेक सफलताएं भी मिलीं. फिर चाहे पाठ्यक्रम में सुधार का विषय हो या न्यायालय का निर्णय अपनी भाषा में प्राप्त होने का. शिक्षा बचाओ आंदोलनशिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रयासों का परिणाम ही नई शिक्षा नीति है.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए  कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि यह ज्ञानोत्सव नहींबल्कि ज्ञान यज्ञ है. यहां मौजूद लोग नई शिक्षा नीति को लोगों तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं. ये नए भारत के निर्माता है. आत्मनिर्भरस्वाभिमानीसमावेशीउद्यमी और जगतगुरु भारत के निर्माता हैं. यह शिक्षा पद्धति बड़े बदलाव वाली शिक्षा पद्धति है. हमारी शिक्षा सिर्फ जानकारीसूचनाडेटा तक सीमित नहीं. हमारा शिक्षक गुरु है और गुरु का अर्थ अंधरे से उजाले की ओर ले जाने वाला. हमारी शिक्षा के साथ संस्कार जुड़े हैं.

संस्कृति जुड़ी हैसांस्कृतिक मूल्य जुड़े हैं और धर्म जुड़ा है. यह किसी धर्म या मजहब की बात नहीं है. शिक्षा हमारे धर्म का हिस्सा है. धार्मिक होने के लिए शिक्षित होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कार की विशेषता है कि अहं (मैं) की जगह हम वयं (हम सब) कहते हैं. हमारी पूरी यात्रा वैश्विक यात्रा है और इसमें शिक्षा का योगदान प्रमुख है. हमारी शिक्षा और संस्कार जोडऩे का काम करते हैं. हजारों साल पहले से यह परंपरा चली आ रही है. हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने यह ज्ञान दिया है. आज दुनिया में सब चीजों का वैश्वीकरण कर दिया गया है. लेकिन गंगायमुनाकावेरीहिमालयकन्याकुमारी वाला भारत वो भूमि हैजहां से करुणा का वैश्वीकरण होगा.

अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह  अरुण कुमार ने भारत की 1000 वर्षों की यात्रास्वाधीनता से स्वतंत्रता की 75 वर्ष की यात्रा और देश में हो रहे परिवर्तन की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की शिक्षा कैसी हो इसका चिंतन बहुत समय से चल रहा है. चिंतन समग्र हो यह सब चाहते हैंलेकिन इसकी प्रक्रिया नहीं है. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने यह काम किया. देशभर में घूमकर विभिन्न विषयों पर काम करने वाले लोगों को चिन्हित कर एकत्रित किया. दूसरे चरण में सभी ने एक साथ मिलकर सोचने का काम किया. यह तीसरा चरण है. सभी लोगों ने जब सोचना शुरू किया और जो निष्कर्ष निकले उसका अनुभव लेकर क्रियान्वयन करना. सरकार ने नीति बना दीक्रियान्वयन समाज को करना है. इस दिशा में आगे बढऩा है तो प्रयोग करना पड़ेगा.

आज का ज्ञानोत्सव इस दिशा में परिणीति की ओर पहुंचाते हुए परिणाम की ओर आगे बढ़ेगा. यह कार्यक्रम विशिष्ट पृष्टभूमि में हो रहा है. देश में निरंतरता है. समान मूल्यसमान संस्कृतिसमान जीवन पद्धति. एक राष्ट्रएक जीवन. एक राष्ट्रएक संस्कृति. एक राष्ट्रएक समाज दिखाई देगा. इसके लिए हम सभी को अपनी शिद्दता बढ़ानी होगी.

परिवर्तन की इच्छा रखिएपरिवर्तन के लिए काम मत करिएक्योंकि प्रक्रिया पूरी किए बिना हम काम करते हैं तो परिणाम नहीं आता. यह बीज से वृक्ष की यात्रा है. पेड़ से पेड़ उगाने की नहीं. जब प्रक्रिया पूर्ण होगी तो परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकता है. प्रारंभ में स्वागत भाषण डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने दिया और ज्ञानोत्सव की संकल्पना न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने बताई. डॉ. कोठारी ने कहा कि न्यास का ध्येय वाक्य है- देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा. जैसा देशसमाजनागरिक चाहिएवैसी ही शिक्षा होना चाहिए. धन्यवाद ज्ञापन  ओमप्रकाश शर्मा ने दिया.

English Summary: Inauguration of 3-day Gyannotsav and exhibition by Education Culture Utthan Nyas, Agriculture Minister Narendra Singh Tomar was present Published on: 17 November 2022, 05:20 PM IST

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