प्रकृति की पूजा हिंदू धर्म की हमेशा से संस्कृति रही है. इसलिए हमारे यहां नदियों, तालाबों, कुओं, पेड़ों आदि की पूजा करने की परंपरा हमेशा से रही है. वहीं आस्था का सबसे बड़ा महापर्व छठ आज से शुरू हो गया है. बिहार के प्रमुख त्योहार छठ के बारे में जानने के लिए हर कोई इच्छुक है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश के विभिन्न हिस्सों में बसे प्रवासी बिहारी भी अपनी सुविधा के अनुसार घाटों पर जाकर छठ पूजा करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि छठ पूजा में प्राकृतिक विधि का क्या महत्व है और इसे पर्यावरण के अनुकूल क्यों माना जाता है? तो आइए आज हम आपको बताते हैं छठ पूजा के मौके पर प्रकृति और संस्कृति का क्या मेल है....
प्रकृति और संस्कृति के सुरीले पाठ
पूजा के साथ-साथ प्रकृति का भी हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा योगदान है. जिसका आदर्श उदाहरण 'पूजा' है जिसमें प्रकृति की चीजों का पूरी तरह से उपयोग किया जाता है जैसे फूल, फल, आम के पत्ते, केले के पत्ते, चावल, पान के पत्ते, नारियल, गन्ना, हल्दी, चंदन आदि. सांस्कृतिक रूप से, पूजा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है इसकी सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.
पूजा के बाद भी केले के पत्तों में प्रसाद और भोजन परोसा जाता है. केले का प्रयोग ज्यादातर फलों में किया जाता है क्योंकि केला एक ऐसा फल है जिसमें बीज नहीं होते हैं, जिसके कारण केला या उसका छिलका कहीं रख दिया जाए, तो वहां उसका पेड़ नहीं उगता. दक्षिण भारत में केले के पत्ते का उपयोग आज भी पत्तल के रूप में किया जाता है.
छठ, प्रकृति की पूजा का महान त्योहार, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाने वाला लोक आस्था का त्योहार है. इस त्योहार को मनाने के पीछे का दर्शन सार्वभौमिक है. शायद यही कारण है कि आज देश में ही नहीं विदेशों में भी इस पर्व के प्रति लोगों की आस्था देखने को मिलती है. छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग निवारण और अनुशासन का पर्व है. इसके अलावा, विभिन्न ग्रन्थों और ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है.
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छठ पूजा में सूर्य की पूजा की जाती है. साथ ही सख्त उपवास और नियमों का पालन किया जाता है. इस प्रकार यह प्रकृति पूजा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और लोकाचार में अनुशासन का पर्व भी है. दीपावली पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, जबकि छठ पर नदियों, तालाबों, पोखरा आदि जलाशयों की सफाई करते हैं. दीपावली के अगले दिन से ही लोग इस काम में लग जाते हैं, क्योंकि बारिश के बाद कीड़े-मकोड़े अपना डेरा जमा लेते हैं और जलाशयों के आसपास, जिससे बीमारियां फैलती हैं.
प्रकृति और संस्कृति को जोड़ने वाली लोक आस्था का महान पर्व छठ शुरुआती दौर में हमारे देश के कुछ राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में ही मनाया गया, लेकिन अब भारत ही नहीं बल्कि भारतीय सीमाओं के बाहर भी मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और नेपाल जैसे देशों में हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है.
आज जहां प्लास्टिक प्रकृति के लिए एक खतरा बना हुआ है, वहीं कई लोग प्लास्टिक के बजाय केले और नारियल के पत्तों की टोकरियां बनाकर इस पर्व में इस्तेमाल कर रहे हैं. निस्संदेह यह प्रकृति को बचाने का एक बढ़िया विकल्प है.
छठ जीवन जीने का तरीका सिखाने वाला त्योहार है. इसलिए इस महान पर्व को स्वच्छता का राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाना चाहिए. साथ ही ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, रोग निवारण और अनुशासन का यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाए. छठ को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने से देश के कोने-कोने में फैले जलाशयों की स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा होगी और इससे जल संरक्षण अभियान को भी गति मिलेगी.
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