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कोरोना के कारण कहीं फिकी न पड़ जाए लीची की लालिमा

वैसे तो कोरोना के कारण लॉकडाउन में आवश्यक चीजों समेत फल-फूल और शाक-सब्जी की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं है. लेकिन इस समय एक महत्वपूर्ण फल लीची जिस तरह मंडियों की शोभा बढ़ाता है वह रौनक बाजार से गायब है. इस समय कोलकाता के फल मंडियों में लीची की आवक शुरू हो जाती है. अप्रैल के अंत और मई के मध्य में कोलकाता के फल मंडी में जो लीची मिलती है वह बेसक स्थानीय बागानों से आती है. मुजफ्फरपुर की लीची कुछ देर से मंडियों में पहुंचती है. जून में कोलकाता की मंडी में जो उच्च गुणवत्ता वाली लीची का भरमार देखा जाता है वह बेसक बिहार के मुजफ्फरपुर का फल होता है. देश के विभिन्न शहरों के फल मंडियों में लगभग इसी समय मुजफ्फरपुर की लीची पहुंचती है और यहां तक विदेशों में भी निर्यात की जाती है. पिछले डेढ़ माह से अधिक समय से लॉकडाउन के कारण बाजार में लीची की आवक लगभग थम से गई है. इस कारण इस बार लीची उत्पादक किसानों को भारी नुकसान उठना पड़ेगा. फल तोड़ने के बाद नष्ट होने के डर से किसानों को स्थानीय बाजारों में ही लीची को औने-पौन दाम में बिक्र करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. इसके आसर भी दिखने लगे हैं.

अनवर हुसैन

वैसे तो कोरोना के कारण लॉकडाउन में आवश्यक चीजों समेत फल-फूल और शाक-सब्जी की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं है. लेकिन इस समय एक महत्वपूर्ण फल लीची जिस तरह मंडियों की शोभा बढ़ाता है वह रौनक बाजार से गायब है. इस समय कोलकाता के फल मंडियों में लीची की आवक शुरू हो जाती है. अप्रैल के अंत और मई के मध्य में कोलकाता के फल मंडी में जो लीची मिलती है वह बेसक स्थानीय बागानों से आती है. मुजफ्फरपुर की लीची कुछ देर से मंडियों में पहुंचती है. जून में कोलकाता की मंडी में जो उच्च गुणवत्ता वाली लीची का भरमार देखा जाता है वह बेसक बिहार के मुजफ्फरपुर का फल होता है. देश के विभिन्न शहरों के फल मंडियों में लगभग इसी समय मुजफ्फरपुर की लीची पहुंचती है और यहां तक विदेशों में भी निर्यात की जाती है. पिछले डेढ़ माह से अधिक समय से लॉकडाउन के कारण बाजार में लीची की आवक लगभग थम से गई है. इस कारण इस बार लीची उत्पादक किसानों को भारी नुकसान उठना पड़ेगा. फल तोड़ने के बाद नष्ट होने के डर से किसानों को स्थानीय बाजारों में ही लीची को औने-पौन दाम में बिक्र करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. इसके आसर भी दिखने लगे हैं.

इस बार लीची का फलन अच्छा होने के बावजूद कोलकाता के फल मंडी में इसकी कमी देखी जा रही है तो उसके मूल में लॉकडाउन है. बिहार के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा बड़ा लीची उत्पादक राज्य है. राज्य के कुछ जगहों से खबरें मिल रही है कि लॉकडाउन के कारण लीची उत्पादक बागान से लीची तोड़ने का बाद उसे फल मंडियों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं. राज्य के किसान नष्ट होने के डर से औने-पौने दाम में लीची बिक्री करने के लिए बाध्य हैं. बर्दवान जिले के पूर्वस्थली के लीची व्यवसायी काजल मुखर्जी ने एक स्थानीय बांग्ला दैनिक को बताया है कि इस बार लीची का फलन अच्छा हुआ है लेकिन लॉकडाउन के कारण उसे बाजार में पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है. इसलिए औने-पौने दाम में स्थानीय खरीददारों को ही बिक्री करना पड़ रहा है. बर्दवान के ही कालान में नारायण दास के पास 9 लीची बागान है. वह अपना बागान किसी को ठेका पर नहीं देकर खुद लीची की बागवानी करते हैं. उनका कहना है कि पिछली बार उन्हें एक हजार लीची पर 1500-1600 रुपए मिले थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण वह खुद बाजार में लीची ले जाने में असमर्थ हैं और स्थानीय व्यवसायी एक हजार लीची पर 500-600 रुपए से अधिक देने को तैयार नहीं हैं. बाध्य होकर उन्हें कम दाम में ही लीची बिक्री करनी पड़ेगी. लाभ की बात तो दूर लागत ही निकल आए तो यह उनके लिए राहत की बात होगी.

यह तो स्थानीय लीची उत्पादकों से मुंह से महज एक बानगी है. पूरे देश में लीची उत्पादन के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर की स्थिति और सोचनीय है. विभिन्न स्त्रोतों से खंगालने पर मुजफ्फरपुर के लीची उत्पादकों की गंभीर चिंता उभर कर सामने आई है. बिहार के 32 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची का उत्पादन लाखों मेट्रिक टन में होता है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद आदि देश के बड़े शहरों में तो मुजफ्फरपुर की लीची जाती ही है साथ ही साथ जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा, निदरलैंड और खाड़ी के देशों में निर्यात भी की जाती है. मुजफ्फरपुर के लीची व्यवपारियों के सूत्रों के हवाले से मिली खबर के मुताबिक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि देश के बड़े शहरों के फल व्यापारी तथा निर्यातक एजेंसियों के प्रतिनिध भी मार्च-अप्रैल में मुजफ्फरपुर पहुंच जाते थे और लीची उत्पादकों को पहले ही अग्रिम भुगतान कर देते थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण फल व्यापारियों का अभी तक मुजफ्फरपुर में आगमन नहीं हुआ है. लीची उत्पादकों को अब स्थानीय बाजार पर ही निर्भर करना पड़ेगा. लेकिन स्थानीय बाजार से लीची की लागत भी नहीं निकलेगी. बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार मुजफ्फरपुर के लीची व्यवसाय को भारी नुकसान होगा. लीची उपोष्ण जलवायु का पौधा है. फल तैयार होने के बाद ज्यादा देर तक उसे छोड़ा नहीं जा सकता. इसलिए कि फल तैयार होने के बाद समय पर नहीं तोड़ने से उसके फटने का डर रहता है. फटने के बाद लीची से रस निकलता है और बहुत जल्द पूरा फल नष्ट हो जाता है. इसलिए लीची उत्पादकों के समक्ष इस बार फल तैयार होने के बाद उसे तोड़ने और समय से सुरक्षित बाजारों तक पहुंचाने की गंभीर चुनौती बनी हुई है.

पूरे विश्व में चीन के बाद लीची उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है. वैसे तो भारत में पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तरांचल, देहरादून, तमिलनाडू और कर्नाटक में भी कुछ लीची का उत्पादन होता है लेकिन देश के कुल लीची उत्पादन में 65 प्रतिशत भागीदारी बिहारी की है. देश-विदेश में मुजफ्फरपुर की शाही लीची की मांग अधिक है. हरी पत्तियों में लाल लीची देखने में जितना खूबसूरत और आकर्षक लगता है उतना आंतरिक रूप से भी पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसमें शर्करा, वसा, प्रोटीन और विटामिन प्रचुर मात्रा में विद्यामान रहता है जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है. लेकिन लीची फलन के मौसम में ही लॉकडाउन होने के कारण मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश-विदेश के बाजारों में अपनी आभा बिखेगेरा और लीची उत्पादकों को अपनी लागत भी मिलेगी इस पर संदेह पैदा हो गया है. 1000 हजार करोड़ रुपए के लीची व्यवसाय पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

English Summary: Impact on market of Lychee due to corona Published on: 20 May 2020, 04:48 PM IST

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