हिमाचल प्रदेश न सिर्फ अपने प्राकृतिक स्वभाव और एडवेंचर के लिए जाना जाता है बल्कि यह सेब की खेती के लिए भी जाना जाता है. यहाँ सबसे ज्यादा सेब की खेती की जाती है . लेकिन इस बार यहाँ के सेबों को किसी की नजर लग गई है. हिमाचल में सेब की फसल पर स्कैब रोग के लक्षण देखें को मिले है, जिससे यहाँ के किसान परेशान है. किसानों ने राज्य के उद्यानिकी विभाग से इसकी शिकायत की थी. फिलहाल इसकी जांच के लिए राज्य का बागवानी विभाग सक्रिय हो गया है. राज्य के शिमला, कुल्लू और मंडी क्षेत्रों के सेब के बगीचों में इस बीमारी के लक्षण देखे गए हैं राज्य में हर साल करीब 4,500 करोड़ रुपये का सेब का कारोबार होता है.
उद्यानिकी विभाग आया हरकत में:
शिकायत के बाद राज्य सरकार ने डा. वाईएस परवार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी और उद्यान विभाग के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीमों को फील्ड में भेज दिया है. यह टीम सेब किसानों को इसकी रोकथाम के लिए जानकारी देंगे. बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि सेब पर समय रहते फफूंदनाशकों का छिड़काव न होने के कारण स्कैब का हमला हुआ है. उद्यानिकी विभाग इसकी रोकथाम के लिए जितना जल्दी हो सके फफूंदनाशकों का छिड़काव करने की सिफारिश की कर रहा है.
एक बगीचे से दूसरे बगीचे में फैलती है बीमारी:
बागवानी विशेषज्ञ का मानना है कि स्कैब का नियंत्रण प्रथम अवस्था में ही किया जाना चाहिए. समय पर अगर इसका नियंत्रण न किया गया, तो यह रोग धीरे-धीरे पूरे बागीचे में फैल जाता हैं. इसके बाद आसपास के बागीचों में भी यह रोग फैलता है. इससे न तो फल का विकास हो पाता है और न पत्तियों का विकास होता है. इसका प्रभाव अगले साल की फसल पर भी पड़ता है.
क्या होता है स्कैब रोग :
सेब में लगने वाला स्कैब रोग एक फफूंदनाशक रोग है, यह एक तरीके की फंगस होती है.यह रोग कभी बारिश और कभी धूप की वजह से यह रोग फसल में लगता है. यदि जल्दी से इस पार काबू नहीं पाया जाता है तो यह एक बगीचे से दूसरे बगीचे में फैलता है. यह फल और पत्तियों पर बड़े अकार के धब्बे के रूप में लगता है.
कैसे करे बचाव :
इस रोग से बचाव के लिए समय पर फफूंदनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए. तभी इस रोग पर काबू पाया जा सकता है . इसके अलावा सलाह दी जाती है कि तौलियों में घास को न उगने दें और हवा व प्रकाश के आदान प्रदान की उचित व्यवस्था करें.
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