किसानों को उनके उत्पाद का पर्याप्त मूल्य सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार मार्च के अंत तक खरीद फॉर्मूले को अंतिम रूप दे सकती है। इसके लिए सरकार अपने मार्केट एश्योरेंस स्कीम (एमएएस) या मध्य प्रदेश सरकार के मूल्य अंतर वित्तपोषण कार्यक्रम (भावांतर योजना) या राज्यों के सुझाव के आधार पर निजी एजेंसियों की ओर से खरीद को लेकर आवश्यक बदलाव कर सकती है।
राज्य सरकारों व नीति आयोग की बैठक के बाद एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मार्च के आखिर तक इस व्यवस्था को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में घोषणा की थी कि नीति आयोग किसानों को उनके उत्पाद का पर्याप्त दाम दिलाने के लिए व्यवस्था बनाएगा। इसी घोषणा को देखते हुए बैठक का आयोजन किया गया। वित्त मंत्री ने यहभी घोषणा की थी कि नीतिगत निर्णय के रूप में सरकार ने किसानों के उत्पादन लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का फैसला किया है।
अधिकारियों ने कहा कि राज्य सरकारों के प्रतिनिधि और कृथि, खाद्य, प्रधानमंत्री कार्यालय, नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुख्य रूप से 3 विकल्पों पर चर्चा की। इसमें केंद्र सरकार की एमएएस शामिल है। इसके मुताबिक राज्य सरकारें पूरी खरीद करेंगी जिसकी कोई सीमा नहीं होगी, जबकि केंद्र सरकार एमएसपी के एक हिस्से की भरपाई करेगी।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के भावांतर भुगतान योजना पर चर्चा हुई। इस योजना के तहत अगर बिक्री मूल्य, मॉडल मूल्य से नीचे होता है तो किसानों को एमएसपी और वास्तविक दाम के बीच के अंतर का भुगतान दिया जाता है, जो एमएसपी के 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता। अगर पड़ोसी राज्यों का मॉडल मूल्य एमएसपी से ज्यादा होता है तो कोई मुआवजा नहीं मिलता।
तीसरे विकल्प के रूप में इस पर चर्चा हुई कि निजी कारोबारी एमएसपी पर खरीद करेंगे और सरकार इसके लिए उन्हें कुछ नीतिगत छूट और कर प्रोत्साहन देगी। इसमें निजी इकाई के लिए कमीशन के बारे मेंं पारदर्शी दायरे के हिसाब से फैसला किया जा सकता है। निजी कारोबारी का नामांकन राज्य सरकारक की पारदर्शी बोली प्रक्रिया से होगा।
कृषि मंत्रालय ने कहा कि राज्य सरकारें एक से ज्यादा खरीद मॉडल अपना सकती हैं जो उनकी सुविधा के हिसाब से हो सकता है, जबकि सभी तीन विकल्पों को एक ही फसल के लिए स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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