 
            गया जिले के टनकुप्पा प्रखंड स्थित ग्राम गजाधरपुर में शुक्रवार यानि 16 मई 2025 को एक ऐतिहासिक कृषि पहल की शुरुआत की गई. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) - पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना एवं कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर, गया के संयुक्त तत्वावधान में 500 एकड़ परती भूमि के प्रबंधन के लिए क्षेत्र का चयन किया गया है. इस पहल का मुख्य उद्देश्य परती पड़ी भूमि का वैज्ञानिक उपयोग कर किसानों की आय को बढ़ाना है.
इस अवसर पर संबंधित संस्थानों की टीम ने क्षेत्र का दौरा कर भूमि का सर्वेक्षण किया और किसानों से सीधे संवाद किया. किसानों को बताया गया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत धान की सीधी बुवाई और मेड़ों पर अरहर (आईपीए 203) की उन्नत किस्म का प्रदर्शन किया जाएगा. इससे किसानों को एक ही खेत से दो फसलें लेने का अवसर मिलेगा, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि आय में भी इजाफा होगा.
इस योजना के तहत, पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा विकसित धान की उन्नत किस्म ‘स्वर्ण श्रेया’ का प्रदर्शन क्षेत्र में किया जाएगा. यह किस्म उच्च उत्पादन क्षमता के साथ-साथ जलवायु अनुकूल भी है, जिससे सूखे या कम बारिश की स्थिति में भी बेहतर उत्पादन संभव होगा.
वैज्ञानिकों ने बताया परती भूमि का बेहतर प्रबंधन
कार्यक्रम के दौरान पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रधान अन्वेषक डॉ. राकेश कुमार ने किसानों को परती भूमि के वैज्ञानिक प्रबंधन की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि भूमि संरक्षण, नमी प्रबंधन और उचित पोषण बनाए रखकर परती भूमि से भी भरपूर उत्पादन संभव है. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर वैज्ञानिक विधियों का सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो किसान एक साल में दो फसलें लेकर अपनी आमदनी को दोगुना कर सकते हैं.
‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ के रूप में हो रहा कार्यक्रम का संचालन
इस अवसर पर पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास ने कहा, “गया जिले की परती भूमि का उपयोग करना हमारी प्राथमिकता है. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत यह एक ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसका लक्ष्य किसानों को आयवर्धन के लिए सशक्त बनाना है. हमारा उद्देश्य है कि गया की 25,000 हेक्टेयर परती भूमि आने वाले वर्षों में हरित क्रांति का उदाहरण बने.”
किसानों को मिल रही है उन्नत तकनीकों की जानकारी
कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. मनोज कुमार राय ने किसानों को जलवायु अनुकूल तकनीकों की जानकारी दी. उन्होंने सीधी बुआई, ड्रम सीडर, कम जुताई और शून्य जुताई विधियों के बारे में बताया, जिससे दलहन और तिलहन फसलों की खेती आसान और लाभदायक हो सके. उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम किसानों को परती भूमि के बेहतर उपयोग के लिए प्रशिक्षित करेगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा. डॉ. देवेंद्र मंडल, सहायक प्रोफेसर ने कहा, इस कार्यक्रम की सफलता में किसानों की भागीदारी सबसे अहम है. हमारी तकनीकी टीम उन्हें प्रशिक्षण देगी और हर कदम पर सहयोग प्रदान करेगी ताकि वे नई तकनीकों को अपनाकर ज्यादा मुनाफा कमा सकें.
किसानों का मिला उत्साहजनक समर्थन
कार्यक्रम के दौरान तकनीशियन श्रीराम कुमार मीणा ने किसानों से सीधे संवाद किया और उन्हें नई कृषि तकनीकों के फायदे समझाए. किसानों ने भी इस पहल में पूरी गंभीरता से भागीदारी की और तकनीकों को अपनाने की प्रतिबद्धता जताई. इस प्रक्षेत्र भ्रमण कार्यक्रम का नेतृत्व ई. मनोज कुमार राय ने किया. उन्होंने बताया कि चयनित क्षेत्र में जल्द ही वैज्ञानिक विधियों से धान की सीधी बुवाई की शुरुआत होगी, जिसके बाद फसल प्रबंधन की प्रक्रिया भी अपनाई जाएगी.
किसानों ने जताया आभार
ग्राम गजाधरपुर के किसानों ने इस नई पहल पर खुशी जाहिर की और कहा कि अब तक उनकी परती भूमि बिना उपयोग के पड़ी थी, लेकिन इस योजना से उन्हें नई उम्मीद मिली है. उन्होंने वैज्ञानिकों एवं आयोजकों का आभार प्रकट किया और कहा कि इस कार्यक्रम से उन्हें नई तकनीकों को सीखने और आजमाने का मौका मिलेगा.
 
                 
                     
                     
                     
                     
                                                 
                                                 
                         
                         
                         
                         
                         
                    
                
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