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सोयाबीन बुवाई एवं क्षेत्रवार किस्मों के चयन के लिए पढ़ें पंतनगर विश्वविद्दालय की सलाह

पंतनगर के सोयाबीन वैज्ञानिकों ने इस फसल की बुवाई का समय नजदीक आते देख किसानों को इसके लिए तैयारी प्रारम्भ करने का सुझाव देते हुए इसके संबंध में आवश्यक जानकारी दी है। कृषि महाविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. पुष्पेन्द्र ने बताया कि मौसम विभाग के अनुसार उत्तराखण्ड में मानसून दस्तक देने वाला है इसलिए किसान सोयाबीन की बुवाई के लिए आवश्यक बीज खाद एवं अन्य सामग्री की समय से व्यवस्था कर लें।

पंतनगर के सोयाबीन वैज्ञानिकों ने इस फसल की बुवाई का समय नजदीक आते देख किसानों को इसके लिए तैयारी प्रारम्भ करने का सुझाव देते हुए इसके संबंध में आवश्यक जानकारी दी है। कृषि महाविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. पुष्पेन्द्र ने बताया कि मौसम विभाग के अनुसार उत्तराखण्ड में मानसून दस्तक देने वाला है इसलिए किसान सोयाबीन की बुवाई के लिए आवश्यक बीज खाद एवं अन्य सामग्री की समय से व्यवस्था कर लें। सोयाबीन की बुवाई पर्वतीय क्षेत्रों में 15 जून तक कर देनी चाहिए, जबकि मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई का समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है। सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए उत्तम किस्म के बीज विश्वसनीय संस्थानों से प्राप्त करें या स्वयं तैयार किया हुआ उपयुक्त किस्म का बीज का प्रयोग करना चाहिए।

क्षेत्र विशेष के लिए सोयाबीन की अनुमोदित किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए। डा. पुष्पेन्द्र ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुमोदित सोयाबीन की किस्में शिलाजीत, पीएस 1024, पीएस 1042, पीएस 1092, वीएल 2, वीएल 21, वीएल 47 इत्यादि हैं तथा मैदानी क्षेत्रों (तराई एवं भाबर) के लिए पीएस 1042, पीएस 1092, पीएस 1241, पीएस 1347, पीएस 1225 इत्यादि किस्में बुवाई के लिए उपयुक्त हैं। बुवाई के पहले उन्होंने यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि बीज का अंकुरण लगभग 70 प्रतिशत से अधिक हो। बीज को फंफूदनाशक, थायरम एवं बेविस्टीन, से (2:1 के अनुपात में) 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से मिलाकर बीज को उपचारित करने की भी उन्होंने सलाह दी। फफूंदनाशक के उपचार से बीज का जमाव अच्छा होने के साथ-साथ पौधे स्वस्थ उपजते हैं। उन्होंनें बुवाई के तुरंत पहले राइजोबियम कल्चर से बीज का शोधन अवश्य करने को कहा, जिसके लिए लगभग 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर की मात्रा 30 कि.ग्रा. बीज में पानी का हल्का सा छींटा लगाकर अच्छी प्रकार मिलाना चाहिए। सोयाबीन को सीड ड्रिल द्वारा हल के पीछे लाइनों में बोना चाहिए तथा लाइन से लाइन की दूरी 45 से 60 से.मी. रखनी चाहिए। प्रति हैक्टेयर सामान्य अंकुरण क्षमता वाला लगभग 65-70 कि.ग्रा. बीज बुवाई के लिए उपयोग करना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 1.5 कि.ग्रा. बीज प्रति नाली के लिए उपयुक्त है जिसकी बिजाई समय से करनी चाहिए। बुवाई के तुरंत बाद या अधिकतम 48 घंटे तक खरपतवार नियंत्रण के लिए लासो नामक रसायन की 4 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

डा. पुष्पेन्द्र ने यह भी बताया कि सोयाबीन की उन्नतशील किस्मों के विकास में पंतनगर विश्वविद्यालय की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्वविद्यालय से अब तक 24 किस्में विकसित की गई हैं जो देश व प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों द्वारा सफलतापूर्वक उगाई जा रही हैं। यहां से विकसित किस्में अधिक उत्पादन क्षमता के साथ-साथ पीला विषाणु प्रतिरोधी तथा मुख्यतः मध्य परिपक्व अवधि वाली होती है जो 115-120 दिन में तैयार हो जाती हैं। विगत वर्ष में विश्वविद्यालय से उत्तराखण्ड एवं उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए तीन उन्नतशील किस्में विकसित की गई हैं जिनमें पंत सोयाबीन 21 (पीएस 1480), 23 (पीएस 1521) और पंत सोयाबीन 24 सम्मिलित हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस वर्ष विश्वविद्यालय के नारमन ई. बोरलॉग फसल अनुसंधान केन्द्र व प्रजनक बीज उत्पादन केन्द्र द्वारा इनके बीजों का उत्पादन कराया जा रहे और आने वाले वर्षों में इसके बीज किसानों को उपलब्ध हो पाएंगे।

English Summary: For the selection of soya bean sowing and field varieties, read Pantnagar University Advice Published on: 23 June 2018, 06:37 AM IST

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