कपास की फसलों में लगे गुलाबी सूंडी रोग की वजह से पहले ही किसान परेशान चल रहे थे. अब उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से एक खबर आ रही है. दरअसल, मुरादाबाद में गन्ने की फसल में रेड रॉड नामक कैंसर रोग पाई गयी है.
आपको बता दें गन्ना की फसल पिछले कुछ दिनों में सूखने लगी, जब किसानों ने गन्ने को बीच से फाड़कर देखा तो पूरा गन्ना अंदर से लाल होकर सड़ गया था. ऐसा सिर्फ एक किसान की गन्ने में ही नहीं, बल्कि आस पास के कई किसानों की गन्ने की फसल का यही हाल है.
रजाउल हाजी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कुंदरकी ब्लॉक के मलक फतेहपुर गाँव के रहने वाले हैं. रजाउल हाजी के बेटे सदफ अली ने बताया, शुरू में गन्ने की फसल सूखने लगी थी, पहले तो समझ ही नहीं पाए कि क्या है. कई लोगों की फसल की हालत ऐसी ही हो गयी थी. मेरे 10 बीघा में यही बीमारी लगी है और चाचा के यहां 7 बीघा में गन्ने का यही हाल है. इतना ही नहीं एक किसान ने तो अपनी पांच बीघा फसल काट दिया है. रजाउल हाजी और दूसरे किसानों ने गन्ना की 0238 किस्म लगाई है. जिसमें रेड रॉट बीमारी का सबसे अधिक खतरा रहता है. इस बीमारी को गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है.
यह रोग देखते ही देखते पूरी फसल बर्बाद कर देता है. सदफ अली आगे बताते हैं, हमारे तरफ यह रोग पहली बार आयी है. इसलिए इसको लेकर कुछ खास जानकारी हमारे पास भी नहीं है. इस बीमारी को पहले गन्ना की फसल में नहीं देखा था. गन्ना की किस्म 0238 को गन्ना प्रजनन संस्थान के करनाल क्षेत्रीय केंद्र पर विकसित किया गया था. साल 2009 के बाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों तक गन्ने की किस्म पहुंच गई.
पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में किसान इसी किस्म की खेती करते हैं. जैसे-जैसे सभी जिलों में इस किस्म का रकबा बढ़ा, वैसे-वैसे ही इस में रोग बढ़ने लगी, सबसे ज्यादा असर रेड रॉट (लाल सड़न) का रोग रहा है. सोचने वाली बात ये है कि रेड रॉट रोग का असर इसी किस्म पर ज्यादा क्यों है?
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इस बारे में भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजीव कुमार ने बताया, जब कोई किस्म ज्यादा एरिया में हो जाती है, जिसे मोनो कल्चर कहते हैं, जिसमें एक ही किस्म को किसान अधिक जगहों में लगाते हैं. वैसी स्थिति में बीमारी बढ़ने लगती है. उत्तर प्रदेश में 90% जगहों में इसी किस्म को किसान लगा रहे हैं. जिससे रेड रॉट की सक्रमण काफी बढ़ गयी है. रेड रॉट बीमारी में तने के अन्दर लाल रंग के साथ सफेद धब्बे के जैसे दिखते हैं.
फिर धीरे- धीरे पूरा पौधा सूख जाता है. पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखायी देते हैं. पत्ती के दोनों तरफ लाल रंग दिखायी देता है. इतना ही नहीं गन्ने को तोड़ने से वो आसानी से टूट जाता है और चीरने पर एल्कोहल जैसी महक आती है.
ऐसा नहीं है कि गन्ने में रेड रॉट सिर्फ यूपी में ही दिख रहा है, यह पंजाब, हरियाणा और बिहार में भी पाया गया है. पिछले कुछ साल में जैसे-जैसे गन्ना की खेती बढ़ी, उसी तरह ही यह रोग भी बढ़ती जा रही है. यह रोग साल 2017-18 में भी देखा गया था, लेकिन उस समय लोग इसे छिपाते रहे, जिससे एरिया बढ़ता गया.
अगर उसी समय उस पर रोक लग जाती और एरिया कम हो जाता तो इतना फैल ही न पाता. जैसे लखीमपुर, बहराइच और कुशीनगर जिले जहां जो तराई एरिया हैं, जहां पानी ज्यादा लगता है. वहां भी 2018-19 में यह बीमारी देखी गई, पिछले साल तो कुशीनगर और लखीमपुर में तो बहुत नुकसान हुआ. इस बार भी यही हाल हुआ है, मान के चलिए तो किसान रोने की स्थिति में पहुंच गए हैं.
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