महाराष्ट्र में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ कोर्ट में किसान

महाराष्ट्र, पालघर के दो किसानों ने मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन गलियारे के निर्माण के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. उन्होंने राज्य के भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास(संशोधन) अधिनियम, 2018 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार की संवैधानिकता को चुनौती दी है.
किसान, सदानंद रावते (46) और नाथू पाठारे (37) ने कहा कि जब उन्हें पता चला कि बुलेट ट्रैन परियोजना के लिए राज्य सरकार का उनकी जमीन अधिग्रहण का प्रस्ताव है तो उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया। वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई और एडवोकेट मिहिर जोशी के माध्यम से उन्होंने यह याचिका दायर की है. फिलहाल, उनकी भूमि के अधिग्रहण की बातचीत चल रही है।
न्यायमूर्ति ए ए सईद और न्यायमूर्ति संदीप के. शिंदे की खंडपीठ सोमवार को इस मामले की सुनवाई कर सकती है.
रावते और पाठारे ने न केवल भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास (महाराष्ट्र संशोधन) अधिनियम, 2018 में निष्पक्ष मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार की संवैधानिकता को चुनौती दी है बल्कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिग्रहण के संबंध में भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास अधिनियम, 2013 निष्पक्ष मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के तहत इस्तेमाल की गई शक्तियों के अधिकार को भी चैलेंज किया है.

उन्होंने तर्क दिया है कि 1.08 लाख करोड़ रुपये की उच्च गति वाली रेल परियोजना, दो राज्यों से गुजर रही है. इस संबंध में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 क़ानून का पालन किया जाना चाहिए। इस अधिनियम के तहत दो या दो से अधिक राज्यों में प्रस्तावित योजना के लिए भूमि अधिग्रहण, राज्य सरकार की बजाय केंद्र सरकार के अधीन होगा। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार पर इस कानून के उल्लंघन का मामला बनता है.
याचिका में कहा गया है कि इस परियोजना के लिए राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण, ना सिर्फ याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि केंद्र सरकार के अधिनियम का पालन करने के उद्देशय के भी खिलाफ है.
याचिका में कहा गया है कि वे पालघर के खानीवाड़े गांव में रहते हैं. रावटे के पास 1 हेक्टेयर और पठारे के पास 0.81 हेक्टेयर भूमि है। वे अपनी जमीन पर चावल की खेती करते हैं और यही उनकी कमाई आय का एकमात्र जरिया है.
याचिका में राज्य द्वारा जारी किये गए उस आदेश का भी उल्लेख किया गया है जिसमें राष्ट्रीय हाई स्पीड रेल निगम लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) और केंद्र सरकार द्वारा बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए 2018 के अंत तक भूमि अधिग्रहण की समयसीमा तय की गई है.

याचिका में बताया गया है कि राज्य ने केंद्रीय अधिनियम की धारा 3 (ई) के अंतर्गत भूमि अधिग्रहणकर्ताओं के अधिग्रहण की घोषणा के बारे में चर्चा और वार्ता के माध्यम से सर्वसम्मति किये बगैर ही 31 मार्च, 2018 की अधिसूचना जारी कर दी थी.
याचिका में आगे कहा गया है कि केंद्रीय अधिनियम में एक महीने बाद महाराष्ट्र संशोधन 26 अप्रैल, 2018 को किया गया. इसमें राज्य ने परियोजना की कुछ श्रेणियों को केंद्रीय अधिनियम के मूल प्रावधानों से बाहर करने की मांग की थी. राज्य सरकार ने बुलेट ट्रेन परियोजना को पहले से ही सार्वजानिक हित वाली परियोजना माना है. याचिका के अनुसार राज्य सरकार पहले से ही केन्द्रीय अधिनियम के अधिकार क्षेत्र के बावजूद 'उपयुक्त सरकार' की शक्तियों का इस्तेमाल कर रही है. इसके साथ ही बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के एवज में केंद्रीय अधिनियम के तहत किसानों को मिलने वाले लाभकारी प्रावधानों से वंचित कर दिया गया है.
किसानों ने अदालत से 31 मार्च, 2018 की अधिसूचना को रद्द करने और केंद्रीय अधिनियम से महाराष्ट्र संशोधन को हटाने का आग्रह किया है. साथ ही उन्होंने अदालत से अपील की है कि जब तक याचिका पर अंतिम सुनवाई ना हो तब तक इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण का कदम ना उठाया जाये।
English Summary: Farmers in court against land acquisition in Maharashtra
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