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गंदे पानी में खेती कर किसानों को मिला रोज़गार

बालोद गांव के किसानों ने गंदे पानी में खेती कर अपनी आजीविका को बेहतर बनाया है. वो कहते हैं न कि कीचड़ में ही कमल खिलता है, यह कहावत बालोद गाँव के किसानों पर सटीक बैठती है. कुछ ऐसा ही काम इन किसानों ने किया है. यहाँ के किसानों ने गंदे पानी में कमल की खेती कर के लाखों रुपये कमा रहे हैं. हालांकि इस खेती के लिए सरकार ने कोई अनुदान उपलब्ध नहीं करवाया है . इसके बावजूद भी किसान इस खेती को आराम से कर रहे हैं .

बालोद  गांव के किसानों ने गंदे पानी में खेती कर अपनी आजीविका को बेहतर बनाया है. वो कहते हैं न कि कीचड़ में ही कमल खिलता है, यह कहावत बालोद गाँव के किसानों पर सटीक बैठती है. कुछ ऐसा ही काम इन किसानों ने किया है. यहाँ के किसानों ने गंदे पानी में कमल की खेती कर के लाखों रुपये कमा रहे हैं.  हालांकि इस खेती के लिए सरकार ने कोई अनुदान उपलब्ध नहीं करवाया है . इसके बावजूद भी किसान इस खेती को आराम से कर रहे हैं .

छतीसगढ़ के ग्राम बघमरा, ओरमा, भोथली, सुंदरा, नेवारी कला , नेवारी खुर्द सहित अन्य नदी किनारे के गांवों में इसकी खेती पर ध्यान दिया जा रहा है . कृषि विभाग  के पास इस रकबे का वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है . आजतक इस खेती का कोई सर्वे जिले में नहीं करवाया गया जिस से पता चला की किस इलाके के किसानों ने ढेंस की खेती कर फसल परिवर्तन  का रास्ता चुना है

इस खेती में न नुकसान है न लागत :

 इसे करने के लिए सिर्फ कड़ी मेहनत और हौसला  की जरूरत है . ठहरे हुए पानी में खेती कर वह किसान  लाखों रुपये कमा रहे है  1  एकड़  में  हम खेती कर के 50,000 रुपये तक आसानी  से कमा सकते है . धान के तुलना में इसकी खेती ज्यादा फायदेमंद है और इसमें किसी नुकसान या लागत की भी गुंजाईश नहीं है . इसमें सिंचाई साधन वाले किसान यह खेती कर पाने में सक्षम है . खेत हमेशा पानी से लबालब होना चाहिए . तभी खेती अच्छी  होगी और ज्यादा मात्रा में फूल आएंगे .

सीजन में 20 -30 रुपये बंडल :

कई सारे जिलों में इसका उत्पादन कम होने के कारण दूसरे जिले वाले भी  हीरापुर के ढेंस के आने का इंतज़ार करते है . सीजन में 20 -30 रुपये प्रति बंडल ढेंस बिकता है . कई लोगों को यह काफी ज्यादा पसंद आता है इसका स्वाद थोड़ा अलग होता है पर तब भी यह काफी लोगों की पसंद बन गया है .

 4 महीने में यह फसल तैयार हो जाती है :

इसकी फसल साल में 3 बार ली जाती है . एक बार ढेंस के उत्पादन के लिए 8 से 10 हज़ार की लागत आती है . जड़ की बुआई करने के बाद हर 4 महीने में फसल तैयार हो जाती है . समय से कीटनाशक दवाइयों का भी छिड़काव भी करना पड़ता है .ढेंस की फसल में आमतौर पर बादल छाए रहने पर सुखड़ी बीमारी के लक्षण दिखाई देते है .

फूल से लेकर जड़ तक सब उपयोगी :

ढेंस के पौधे का कोई हिस्सा व्यर्थ नहीं जाता . ढेंस के फूल से लेकर जड़ तक सब उपयोगी है . दिवाली में माता लक्ष्मी की पूजा के लिए कमल फूल की मांग बढ़ जाती है, इसके फूल को चाव से खाते है .ढेंस की सब्ज़ी खाने वालों को बाजार में इस फसल की इंतज़ार रहता है . ढेंस का निर्यात राजधानी रायपुर के आलावा भिलाई -दुर्ग    धमतरी में होता है जहाँ ढेंस हाथों हाथ बिक जाता है . इसमें कोई नुकसान नहीं होता बल्कि इसकी खेती करने वालों  के लिए यह फायदे का ही  सौदा है .

English Summary: Farmers get farming by cultivating dirty water Published on: 27 September 2018, 06:47 AM IST

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