कुछ साल पहले तक तो वागड़ के डूंगरपुर जिले में लगभग सभी खेतों और खलिहानों में पीला सोना यानी मक्का की फसल दिख जाती थी. लेकिन यहां के काश्तकार अब मक्का का मोह छोड़कर सोयाबीन की खेती करने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
इस समय यहां के खेत सोयाबीन से सजे दिख रहे हैं. इस साल किसानो को मानसून की संतुलित बारिश से बम्पर सोयाबीन होने की उम्मीद है. इस समय सोयाबीन, धान, उड़द व मक्का की फसल पकाव बिंदू पर है, साथ ही इस समय खेतों के मेड़ो और परत भूमि की घास के कटान का समय आ गया है. अब यहां धान भी काटे जा रहे हैं.
पिछले कुछ साल से काश्तकार यहां की परंपरागत फसलों की खेती छोड़कर सोयाबीन को उगाने में लगे है. एक समय यहां की आसपुर में 60 फीसद से ज्यादा मक्का की बुआई होती थी. मक्के में भी सबसे ज्यादा सरकारी शंकर मक्का के साथ देशी पीली सफ़ेद मक्की की सब से ज्यादा प्रशिद्ध रही.
यहां 10 से 15 फीसदी धान एवं शेष 25 प्रतिशत में उड़द, मूंग, कलत, तिल, ग्वार, कूरी, बटी, मालकांगणी आदि फसलों आदि की रोपाई होती थी. धान में धनवारी हुतर व कंकू के साथ यहां कमोद के चावल के मुकाबले यहां बासमती चावल भी नहीं ठहरता था . अब यहां के हालात ही बदल चुके हैं अब तो किसान अपनी पुरानी फसलों को भूल कर नयी फसल सोयाबीन को उगाने में अपनी दिल चस्पी दिखा रहे हैं.
यहां के किसान अपनी परंपरागत फसल की खेती न करने का मूल कारण श्रम के मुकाबले इसकी कम लागत मिलना और जंगली जानवरों द्वारा इसकी तवाही होना बताया. किसानों का कहना है की यहां के जंगली बन्दर और रेजड़े आदि जंगली जानवर की ज्यादा बढ़ोतरी हो जाने से पक्की फसल को भी ज्यादा नुकसान पहुंचने लगा है.
दूसरी तरफ उपखंड क्षेत्र के अधिकांश गांवों में पैंथर कुनबे की मौजूदगी से काश्तकार दोहरी दुविधा में फंसे हुए थे.मानसून की बिगड़ी चाल ने क्षेत्र के गांवों में काश्तकारों ने मक्का के साथ ही उड़द, चंवला व तिल आदि फसलों को उगाना भी बेहद कम कर दिया है. क्षेत्र के कुछ खेतों में ही यह फसल दिखाई देती है.
अभी हाल ही में पहले के गिदवारी नमूने का सर्वे किया तो सर्वे से पता चला की अब इस क्षेत्र के दो तिहाई क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की जा रही है. आसपुर तहसील में कुल काबिल काश्त भूमि 10 हजार 871 हेक्टेयर होकर इस वर्ष खरीफ में दस हजार 516 हेक्टेयर भूमि में बुवाई की गई. इन सभी भूमि में 6898 हेक्टेयर की भूमि में सोयाबीन 1295 हेक्टेयर भूमि में मक्का हुए 516 हेक्टर भूमि में उड़द ज्वार तिल आदि की फसले हैं. अब इधर गन्ने की बात करे तो मात्र एक ही फीसद भूमि में इसकी बुआई हुई है.
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