शासक या प्रशासक अन्नदाताओं की बेहतरी के लिए कई कदम उठाते हैं, लेकिन जब कुदरत का कहर ही अपने चरम पर पहुंच जाए, तो शासन और प्रशासन भी लाचार नज़र आता हैं. कुछ ऐसा ही नज़ारा यमुना नदी के किनारे नज़र आ रहा हैं जहाँ किसानों की फसलें हो गयी है बर्बाद. आखिर क्यों हुआ किसानों के साथ ऐसा पढ़ें इस लेख में. बरसात के इस मौसम में जहां दिल्ली के हर इलाके में जलभराव की समस्या आ रही है.
वहीं, यमुना नदी के बढ़ते जलस्तर से किसानों की बदहाली भी अपने चरम पर पहुंच चुकी है. उनकी खेती खतरे में आ चुकी है. वे कुछ समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या किया जाए.विगत दिनों जिस तरह से राजधानी दिल्ली समेत आसपास के इलाकों में भारी बारिश ने अपना कहर बरपाया है, उससे हमारे किसान भाई बेहाल हैं. मेहनत से उगाई गई उनकी फसलें बर्बाद हो गई हैं. जिन फसलों के साथ उनके अरमान जुड़ें हुए थे, वो फसलें चौपट हो गयी है. अब किसान सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार और प्रशासन किसानों के हित में आवश्यक कदम उठाएं. इस लेख में आगे पढ़िए किसानों की बदहाली उन्हीं की जुबानी. किसानों का यही दर्द है कि यमुना नदी के किनारे खेती करने वाले अधिकांश किसानों की फसल नदी के भारी बहाव के कारण बर्बाद हो गई.
उनका कहना है कि उनकी 300 से 400 बीघा जमीन पर उगाई गई फसलें नदी के तेज बहाव के कारण नष्ट हो गई हैं. पिछले कुछ दिनों से जिस तरह लगातार बारिश हो रही है, उससे हमारी खेती अब खतरे में आ चुकी है.
किसानों की बदहाली, उन्हीं की ज़ुबानी
वहीं, एक युवा किसान ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि उन्होंने पालक की खेती की थी, लेकिन यमुना नदी के पानी के बहाव ने उनका सब कुछ बर्बाद कर दिया. अब इसकी भरपाई कैसे की जाए. यह समझ नहीं आ रहा है. उधर, जलभराव की समस्या को लेकर लगातार विपक्षी दल भी दिल्ली सरकार पर निशाना साध रहे है.
ऐसे में किसानों का सहारा लेकर खुद की सियासत साधने वाले सियासी नेता इन अन्नादाताओं की बेहतरी के लिए क्या कुछ कदम उठाते हैं. यह तो समय के साथ पता चल ही जाएंगा. पर सरकार और प्रशासन को जल्दी ही अपनी जवाबदेही समझकर किसानो की समस्या का हल निकालना चाहिएं. कृषि जगत से जुड़ी हर बड़ी खबर से रूबरू होने के लिए पढ़ते रहिए...कृषि जागरण हिंदी .कॉम की ख़बरें एवं लेख...
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