![Farmer scientist Dr. Rajaram Tripathi developed a new variety of black pepper "Maa Danteshwari Black Pepper-16" (MDBP-16)](https://kjhindi.gumlet.io/media/90437/rajaram-tripathi-in-mdbp-16-farm-in.jpg)
Black Pepper MDBP-16: छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका, जो एक समय नक्सली हिंसा और संघर्ष के लिए जाना जाता था, अब एक नई पहचान बना रहा है. बस्तर अब अपने हर्बल और मसालों की खेती के कारण दुनिया भर में ध्यान आकर्षित कर रहा है. इस क्षेत्र की यह नई दिशा और पहचान किसानों के लिए एक उम्मीद और समृद्धि का प्रतीक बन चुकी है. यह बदलाव संभव हुआ है बस्तर के ही एक किसान वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी की मेहनत और समर्पण से.
डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने काली मिर्च की एक नई और अद्भुत किस्म विकसित की है, जो न केवल बस्तर के किसानों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात बन चुकी है. ऐसे में आइए इस खबर के बारे में विस्तार से जानते हैं-
मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 (MDBP-16)
डॉ. त्रिपाठी ने वर्षों की कड़ी मेहनत और शोध से काली मिर्च की एक नई किस्म "मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16" (MDBP-16) विकसित की है. यह नई किस्म विशेष रूप से कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और औसत से चार गुना अधिक उत्पादन देती है. यह काली मिर्च न केवल उत्पादन में अधिक है, बल्कि गुणवत्ता में भी सबसे बेहतर है. इसे भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (IISR), कोझिकोड, केरल द्वारा मान्यता प्राप्त हुई है और इसे भारत सरकार के प्लांट वैरायटी रजिस्टार द्वारा पंजीकृत भी किया गया है.
![Maa Danteshwari Black Pepper-16 (MDBP-16)](https://kjhindi.gumlet.io/media/90438/mdbp-16.jpg)
यह काली मिर्च की इकलौती उन्नत किस्म है, जिसे दक्षिणी राज्यों से इतर छत्तीसगढ़ के बस्तर में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है. यह बस्तर और छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि अब यह क्षेत्र अपने मसालों और हर्बल उत्पादों के कारण वैश्विक मान्यता प्राप्त कर रहा है.
कम पानी में अधिक उत्पादन और उत्कृष्ट गुणवत्ता
किसान वैज्ञानिक डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि काली मिर्च की यह नई किस्म खासतौर पर ऐसे क्षेत्रों के लिए बहुत लाभकारी है, जहां पानी की कमी है. इस काली-मिर्च को विकसित करने में 30 साल का समय लगा. वही, इस काली मिर्च को विशेष रूप से ऑस्ट्रेलियन टीक, सागौन, बरगद, पीपल, आम, महुआ, और इमली जैसे पेड़ों पर चढ़ाकर उगाया जाता है. इन पेड़ों पर उगाई गई काली मिर्च न केवल चार गुना अधिक उत्पादन देती है, बल्कि इसकी गुणवत्ता भी देश में उगाई जाने वाली अन्य किस्मों से कहीं अधिक होती है.
इस काली मिर्च की बढ़ती मांग का परिणाम यह है कि यह बाजार में हाथों हाथ बिकती है और अन्य किस्मों से महंगे दामों पर बिकती है. खास बात यह है कि यह किस्म कम सिंचाई और सूखे क्षेत्रों में भी बिना किसी विशेष देखभाल के अच्छे परिणाम देती है.
बस्तर की मसालों की दुनिया में नई पहचान
बस्तर एक समय अपने संघर्ष और हिंसा के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह इलाका अपनी हर्बल और मसालों की खेती के कारण वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण स्थान बना रहा है. डॉ. त्रिपाठी ने अपने वर्षों के अनुभव और शोध से काली मिर्च की इस नई किस्म को उगाने की तकनीक विकसित की है, जो अब बस्तर के 20 गांवों और भारत के 16 राज्यों में उगाई जा रही है.
सरकारी मान्यता मिलने के बाद, इस नई किस्म की खेती में और भी तेजी आने की उम्मीद है. इससे न केवल बस्तर के किसानों की आय में वृद्धि हो रही है, बल्कि इस क्षेत्र के विकास के लिए भी एक नई दिशा मिल रही है. अब बस्तर के किसान भी हर्बल और मसालों की खेती से अपनी जिंदगी बदलने में सफल हो रहे हैं.
भारत का गौरव और वैश्विक पहचान
डॉ. त्रिपाठी का मानना है कि भारत को अपने मसालों और हर्बल उत्पादों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि देश फिर से अपनी खोई हुई पहचान और गौरव को प्राप्त कर सके. उनका कहना है, "भारत को सदियों पहले मसालों के लिए 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था. अगर हम फिर से मसालों और जड़ी-बूटियों की खेती पर ध्यान दें, तो भारत एक बार फिर अपनी वैश्विक पहचान बना सकता है."
डॉ. त्रिपाठी की सफलता भारतीय किसानों के लिए एक प्रेरणा है, यह दिखाती है कि जब किसान सही मार्गदर्शन और संसाधन प्राप्त करते हैं, तो वे किस तरह कृषि क्षेत्र में नवाचार और बदलाव लाकर अपनी स्थिति को सशक्त बना सकते हैं.
प्रधानमंत्री से मिलेंगे डॉ. त्रिपाठी
डॉ. त्रिपाठी अपनी सफलता से उत्साहित हैं और उनका सपना है कि वह जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इस विषय में मार्गदर्शन प्राप्त करें. उनका उद्देश्य बस्तर और छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत पहचान दिलाना है, ताकि इस क्षेत्र के किसान और ज्यादा प्रेरित होकर कृषि क्षेत्र में और सफलता हासिल करें. डॉ. त्रिपाठी चाहते हैं कि उनकी काली मिर्च और अन्य हर्बल उत्पाद पूरी दुनिया में मशहूर हों और बस्तर को एक ‘ग्लोबल स्पाइस हब’ के रूप में स्थापित किया जाए.
नए साल में बस्तर का योगदान
2025 का यह नया साल बस्तर और छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक नई दिशा देने का वादा करता है. यह सिर्फ एक काली मिर्च की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, नवाचार, आत्मनिर्भरता और सकारात्मक बदलाव की एक मिसाल है. यह कहानी हमें यह बताती है कि जब किसानों को सही मार्गदर्शन, अवसर और संसाधन मिलते हैं, तो वे अपनी मेहनत और समर्पण से न केवल अपनी बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दे सकते हैं.
स्रोत: अनुराग कुमार, मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर, कोंडागांव बस्तर, छत्तीसगढ़
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