विगत चार माह से आंदोलनरत किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलनस्थल पर मुस्तैद हैं, लेकिन सरकार है कि उनकी मांगों को मानने को तैयार ही नहीं हो रही. इसी कड़ी में तो गत शुक्रवार को आंदोलनकारी किसानों ने 'भारत बंद' का ऐलान किया था, लेकिन इसका कुछ खास असर नहीं दिखा है. बहरहाल, किसान अपने दिल को संतुष्टि देने के लिए इतना जरूर कह सकते हैं कि इस बार भारत बंद का मिला जुला असर दिखा.
हालांकि, किसान नेताओं ने अपनी तरफ से भारत बंद को सफल बनाने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें अपनी अपेक्षा के अनरूप सफल नहीं हो पाए. लगता है, अब इसी से खफा हुए किसान नेताओं ने भारत बंद के ऐलान के बाद कल यानी की छोटी होली के दिन होलिका दहन व तीनों कृषि कानूनों की कॉपियों को जलाने का ऐलान कर दिया है.
आंदोलनकारी किसान यह सब कुछ अपनी नाराजगी की नुमाइश करने के लिए कर रहे हैं. किसान भाई यह सब कुछ इसलिए कर रह हैं, ताकि उनकी बात शासन तक पहुंच सके. इस दिशा में उनकी पुरजोर कोशिश जारी है, मगर किसान भाइयों की शासन से यह शिकायत है कि उनकी सूध लेने वाला कोई नहीं है.
खैर, भारत बंद, ट्रैक्टर, किसानों के आंदोलन का अब तक शासन पर क्या कुछ असर पड़ा है. यह तो हम देख ही चुके हैं, लेकिन अब किसानों के होलिका दहन का शासन पर क्या कुछ असर पड़ता है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा.
चुनाव के लिहाज बहुत मायने हैं इसके
यहां हम आपको बताते चले कि किसानों द्वारा लगातार उठाए जा रहे इस तरह के कदम पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए खासा मायने रखते हैं. गौरतलब है कि अभी पांच राज्यों में चुनाव है. आज असम और बंगाल में पहले चरण का मतदान हो रहा है. हमने इस बात को भलीभांति देखा है कि किस तरह इस चुनाव प्रचार में किसानों के मसले को चुनाव प्रचार का मुद्दा बना बनाया गय है.
किस तरह बंगाल खुद पीएम मोदी, जेपी नड्डा सहित अमित शाह ने अपनी चुनावी जनसभा में प्रदेश की जनता से वादा किया है कि अगर हमारी सरकार सत्ता में आने में कामयाब रहती है, तो हम किसान सम्मान निधि योजना को लागू करेंगे, जिसके तहत प्रदेश के किसान भाइयों को 18 हजार रूपए की राशि दी जाएगी. खैर, अब इसका किसान आंदोलन पर क्या असर पड़ता है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा.
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