सोमवार को किसान नेता और स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने अपनी किताब का विमोचन किया. 'मोदी राज में किसान: डबल आमद या डबल आफत' नाम की इस किताब में किसानों और मौजूदा सरकार की नीतियों का विश्लेषण किया गया है. हिंदी में प्रकाशित इस किताब से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि किसानों की लगातार बिगड़ते हालातों का जिम्मेदार कौन है.
किताब का विमोचन लोधी रोड स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में किया गया. इस दौरान योगेंद्र यादव ने कहा कि आजादी के बाद से किसानों की दशा खराब होती रही लेकिन सरकारों का ध्यान इस तरफ बिल्कुल भी संजीदा नहीं रहा. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार अब तक की सबसे किसान विरोधी सरकार है. हालाँकि देश में कोई भी किसान हितैषी सरकार नहीं रही है लेकिन मौजूदा सरकार ने इस मोर्चे पर बेहद ही दोयम रवैया दिखाया है. इसके अलावा उन्होंने मोदी सरकार के पिछले चार साल के कार्यकाल के दौरान किसान विरोधी फैसलों और नीतियों की जमकर आलोचना की. इस कड़ी में उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से देश में सूखा से निपटने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाये और साथ ही भूमि अधिग्रहण विधेयक में बदलाव करने की भरपूर कोशिश की. इस विधेयक से वह छोटे किसानों व आदिवासियों की कमर तोड़ने वाली नीतियां लागू करना चाहती थी.
किताब के बारे में उन्होंने कहा कि देश में अब तक कृषि और किसानों से संबंधित कोई किताब उपलब्ध नहीं है. इस विषय पर एक प्रासंगिक और भरोसेमंद दस्तावेज उपलब्ध कराने के मकसद से ही यह किताब लिखी है.
इस मौके पर एक पैनल वार्ता का भी आयोजन किया गया. पैनल में शामिल प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने भारतीय कृषि में सुधार से जुड़े मुद्दों पर बात की. उन्होंने कहा कि सरकार को बाजार की मांग और खपत के मुताबिक फसलों के दाम तय करने की जरुरत है. उन्होंने चीन का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि एमएसपी की मौजूदा व्यवस्था न तो किसान हित में है और न ही निवेशकों को प्रोत्साहित करने में सक्षम है. इसके अलावा उन्होंने देश में फसलों के खरीद मूल्य में असंतुलन की समस्या को भी सुलझाने की बात कही. चर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह ने कहा कि किसान कृषि भवन, उद्योग भवन और खाद्य आपूर्ति मंत्रालय के बीच में पिस रहा है. उन्होंने कहा कि किसानों के लिये नीतियां बनाते वक्त किसानों की राय जानना भी जरुरी है.
इसके अलावा पैनल के अन्य वक्ता अजयवीर जाखड़ ने कहा कि नोटबंदी ने किसानों को भारी नुकसान पहुँचाया है. साथ ही फसल बीमा योजना जैसी योजनाएं पूरी तरह विफल साबित हुई हैं. इसके अलावा उन्होंने किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक सातवें वेतन आयोग से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ा है इन धन का इस्तेमाल किसान कल्याण संबंधी योजनाओं पर खर्च किया जा सकता था. साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों के लिए खेती के साथ ही रोजगार के दूसरे विकल्प पैदा करने होंगे.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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