कोर्ट का फैसला अपने पक्ष में हासिल करने के लिए कोर्ट से सच को छिपाकर रखना दो लोगों को भारी पड़ गया है. दरअसल हाई कोर्ट ने उनकी याचिका तो खारिज की ही, साथ में कोर्ट के साथ धोखा करने के लिए 50,000 रुपये प्रति केस का जुर्माना भी लगाया. भलस्वा गांव में 27 बीघा से थोड़ी ज्यादा जमीन के टुकड़े के लिए दो लोग करीब 20 साल से केस लड़ रहे थे. हाई कोर्ट ने जब इस केस के संदर्भ में नोटिस जारी कर केस की गहनता से तफ्तीश कराया तो पाया कि याचिकाकर्ता ने कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल करते हुए अदालत को अभीतक धोखे में रखा है और जमीन का मुआवजा लेने के बावजूद मालिकाना हक को लेकर केस लड़ता रहा है.
बता दे कि इस केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने खुशीराम और विमल जैन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए उन्हें आठ हफ्तों के भीतर यह रकम प्रतिवादियों यानी दिल्ली 'अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड'(डूसिब) के पास जमा कराने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा है कि 'वह याचिकाकर्ता को मुआवजे के तौर पर दिए गए 3,26,30,694 करोड़ रुपये अगले 6 महीनों तक के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट करा दे. इस बीच भी अगर याचिकाकर्ता मुआवजे की रकम लेने के लिए तैयार नहीं होता है, तो अगले साल मई तक इन 6 महीनों के पूरा होने के बाद उस रकम को फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) में रखा जाना जरूरी नहीं है. आदेश के मुताबिक, तब यह मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता ने यह रकम ले ली है.
गौरतलब है कि, खुशीराम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया कि भलस्वा गांव में मौजूद करीब 27 बीघा 16 बिसवा जमीन उसकी है. उन्होंने जमीन अधिग्रहण कानून, 1899 के प्रावधानों के तहत जारी 15 सितंबर 2000 के नोटिफिकेशन को चुनौती दी और डूसिब को यह निर्देश दिए जाने की मांग की कि वे विवादित जमीन में दखल न दें. साल 2000 में दायर इस याचिका के बाद तमाम अर्जियां और याचिकाएं दायर की गईं. फिर दूसरे याचिकाकर्ता विमल जैन आए और उन्होंने भी अधिग्रहण को लेकर सवाल उठाया और दावा किया कि उन्होंने साल 2004 में ही वह जमीन खुशीराम से खरीद ली थी. इसलिए वह जमीन अधिग्रहण से जुड़े संबंधित नोटिफिकेशन के दायरे में नहीं आती.
कोर्ट के साथ धोखा
हाई कोर्ट ने कहा, एक बार जब उचित मुआवजा देकर विवादित जमीन ले ली गई, तो वह राज्य की हो गई. अदालत को धोखे में रखे जाने की बात साबित होने के बाद याचिकाकर्ता को उस जमीन के टुकड़े को लेकर कोई सवाल करने का हक ही नहीं. न तो याचिकाकर्ता का दामन साफ है और न वह सही समय पर आया है. इसलिए 'दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड' ही उस जमीन का अब मालिक है
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