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यूरोप की स्ट्राबेरी ने छत्तीसगढ़ में बढ़ा लिया अपना वजन

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने यूरोपियन स्ट्राबेरी की 14 किस्मों पर दो साल के अनुसंधान के बाद बड़ी सफलता पाई है। राजधानी से 80 किमी दूर स्थित पंडित किशोरी लाल शुक्ला कॉलेज ऑफ हार्टीकल्चर एंड रिसर्च केंद्र राजनांदगांव में इस पर रिसर्च चल रहा है। 14 किस्मों की खेती की गई। सिर्फ दो किस्मों-नाबिला और कामारोसा में सफलता मिली है। वह भी ऐसी कि कृषि वैज्ञानिक दंग रह गए हैं। इनसे 50 से 70 ग्राम तक फल उत्पादन होने से कृषि वैज्ञानिक भारी उत्साहित हैं। आमतौर पर प्रदेश में जो भी बाहर से स्ट्राबेरी आती है, उसका वजन मुश्किल 20 से 30 ग्राम होता है।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने यूरोपियन स्ट्राबेरी की 14 किस्मों पर दो साल के अनुसंधान के बाद बड़ी सफलता पाई है। राजधानी से 80 किमी दूर स्थित पंडित किशोरी लाल शुक्ला कॉलेज ऑफ हार्टीकल्चर एंड रिसर्च केंद्र राजनांदगांव में इस पर रिसर्च चल रहा है। 14 किस्मों की खेती की गई। सिर्फ दो किस्मों-नाबिला और कामारोसा में सफलता मिली है। वह भी ऐसी कि कृषि वैज्ञानिक दंग रह गए हैं। इनसे 50 से 70 ग्राम तक फल उत्पादन होने से कृषि वैज्ञानिक भारी उत्साहित हैं। आमतौर पर प्रदेश में जो भी बाहर से स्ट्राबेरी आती है, उसका वजन मुश्किल 20 से 30 ग्राम होता है।

ओपन कंडीशन में हुई खेती 

स्ट्राबेरी की खेती केवल ठंडे प्रदेशों, खासकर पहाड़ी इलाकों में ही होती है। छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्र में इसकी खेती कहीं नहीं होती है। हिमाचल प्रदेश और कश्मीर की तरह यहां के ओपन कंडीशन की नर्सरी में स्ट्राबेरी की खेती के लिए कॉलेज के डीन डॉ. आरएन गांगुली और प्रोफेसर डॉ. शिशिर प्रकाश शर्मा ने लगातार प्रयोग किया। इस सफलता के बाद कुलपति डॉ. एसके पाटिल ने मामले की जानकारी कुलाधिपति और राज्यपाल बलरामजी दास टंडन को भी दी।

क्या है स्ट्राबेरी 

स्ट्राबेरी फ्रागार्या जाति का एक पेड़ होता है। ब्रिटेन और फ्रांस में इसकी खेती पहले की गई। यूरोपीय देशों में इसकी पर्याप्त खेती होती है। इसके खेती के लिए न्यूनतम 10-15 डिग्री तापमान होना चाहिए।

ये है विशेषता 

जिस स्ट्राबेरी की खेती कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने की है, वह पूरी तरह से यूरोपीय स्ट्राबेरी है। इसकी विशेष गंध इसकी पहचान बन गई है। ये चटक लाल रंग की है। इसका स्वाद मीठा है।

किसानों की आय होगी दोगुनी 

स्ट्राबेरी को आमतौर पर फल के रूप में खाया जाता है, लेकिन इसे संरक्षित कर जैम, रस, पाई, आइसक्रीम, मिल्क-शेक आदि में इस्तेमाल कर सकते हैं। कृत्रिम स्ट्राबेरी खुशबू भी व्यापक रूप से कई औद्योगिक खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल की जाती है। बाजार में इसकी कीमत 1000 स्र्पए प्रति किलो है। स्ट्राबेरी के सफल प्रयोग के बाद अब राजनांदगांव में 10 किसानों के यहां स्ट्राबेरी की खेती करेंगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस महंगे फल से अच्छी खासी कमाई कर पाएंगे। बाजार में स्ट्राबेरी के फल दूसरे किसी भी फल की तुलना में चार गुना अधिक दाम पर मिलते हैं।

हिमाचल, कश्मीर के बाद छत्तीसगढ़ का नाम भी दर्ज 

स्ट्राबेरी के लिए पूरी तरह ठंड का वातारण चाहिए। ठंड वाले क्षेत्रों में ही स्ट्राबेरी की फसल तैयार होती है। कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, शिमला और महाबलेश्वर जैसे क्षेत्र में बड़ी तादाद में स्ट्राबेरी की खेती की जाती है। यहां पूरा मौसम ठंडा होता है, जो इस फसल के अनुकूल है। छत्तीसगढ़ का मौसम सामान्य और गर्म होता है। ऐसे में यहां खेती करना चुनौती थी।

चुनौती थी पर मिली सफलता

दो किस्मों में सफलता मिली है। स्ट्राबेरी की खेती राज्य में करना चुनौती थी, लेकिन कृषि विवि ने इस पर लगातार काम किया। तब जाकर सफलता मिली। बेहतर फल निकले। डॉ. एसके पाटिल, कुलपति, इंकृवि।

 

साभार

-नई दुनिया

English Summary: Europe's Strawberry boosts its weight in Chhattisgarh Published on: 07 January 2018, 05:55 AM IST

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