हालांकि किसानों को यह उम्मीद है कि यह गिरावट अस्थायी है जल्द ही लहसुन अपने पुराने दामों पर लौट आएगा कुछ साल पहले तक यह कहा जाता था कि यदी किसान ठेली भर लहसुन बाज़ार ले जाता था तो वह वापस नए ट्रैक्टर पे लौटता था।
पर अब यह लगता है कि अपना खर्चा निकालने के लिए किसानों को अपना ट्रैक्टर बेचना पडें। मंदसौर के रहने वाले किसान संतोष राठौर का कहना है कि उन्होने एक हेक्टेयर ज़मीन पर लहसुन कि खेती करी थी इस उम्मीद जो घाटा सोयाबीन कि खेती में हुआ उसकी भरपाई कि जा सके पर लहसुन के दामों में गिरावट ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सही दाम ना मिलने के कारण उन्होने अब बज़ार जाना छोड़ दिया और अपनी उपज को संरक्षित करना शुरु किया इस उम्मीद में कि भविष्य में जब थोड़ा सुधार होगा तब वह अपनी फ़सल बेचेंगे।
लेकिन राठौर ने अपने उपगृह में जमा किए लहसुन कि तरफ देखते कि वह वर्षा-ऋतु आने के कारण ज्यादा दिनों तक इसे ज़मा करके नही रख सकते क्योंकि तब तक लहसुन सड़ना शुरु हो जाएगा और सर्दीयां आने तक शायद यह उन्हे सस्ती दरों पर बेचना पडें।
किसानों का संकटमोचन समझे जाने वाला लहसुन ने इस साल उन्हे निराश किया मंदसौर और नीमच मध्यप्रदेश में लहसुन उगाए जाने वाले प्रमुख क्षेत्र है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान और विकास नींव (एनएचआरडीएफ) के आंकडो के अनुसार पिछले साल कि तुलना में इस साल मई-जून के माह में मंदसौर और इंदौर कि मंडियों में लहसुन के दामों में लगभग 59 फीसदी कि गिरावट आई है।
यह साल लहसुन कि खेती वृद्धि के करण इसे राज्य कि भवंतर भुगतान योजना में रखा गया। पर इस योजना में लहसुन के शामिल किये जाने के बाद से इसके दामों में ज्यादा गिरावट आई। किसानों के मुताबिक पहले लहसुन 2500 रुपए प्रति क्विंटल बिकता था। पर जब से लहसुन को भवंतर भुगतान योजना के अंतर्गत लाया गया तो दाम घट के हो गए 800 रुपए प्रति क्विंटल। इसी बीच बुधवार को हुई कांग्रेस कि रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने इस मुद्दे को उठाया और प्रदेश सरकार पे जमकर निशाना साधा।
वहीं राज्य सरकार ने लहसुन कि अधिक बुआई को इस के दामों में गिरावट का प्रमुख कारण बताया हालांकि किसान इस बयान से सहमत नहीं उनका कहना है कि यदी अधिक बुआई इस का मुख्य कारण है तो पिछले साल भी तो इसी क्षेत्र में लगभग इतनी मात्रा में यह फसल उगाई थी। किसानों का कहना है कि भवंतर भुगतान योजना के तहत लहसुन का दाम 800 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है। लेकिन व्यपारी 300 रुपए प्रति क्वंटल से अधिक देके राजी नहीं इसे तो अच्छे हालात बगैर इस योजना के ही थे कम से कम तब किसान जब बाज़ार में ज्यादा मांग होती थी तब किसान खुद ही जाकर बेच लेता था। उड़द,चना,सोयाबीन के बाद लहसुन के घटते दामों के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ। पिछले दो सालो के दौरान कोई भी मुख्य फस़ल किसानों को ज्यादा मुनाफा नहीं दे सकी।
भानु प्रताप
कृषि जागरण
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