नासिक को भारत का केलिफोर्निया माना जाता है. माना जाता है कि यहां की मिट्टी में ऑर्गनिक कार्बन की मात्रा अधिक है. जिससे यहां फल और सब्जियों की गुणवत्ता केलिफोर्निया के फलों और सब्जियों से मेल खाती है. इसीलिए यहां की सब्जी और फलों को विदेशी लोग बहुत पसंद करते है. इस बार अक्टूबर में टमाटर ने उत्पादन के रिकॉर्ड तोड़ दिए है. जिसका लाभ नासिक के टमाटर के विक्रेताओं को भी जम कर मिल रहा है. लेकिन नासिक का किसान खाली हाथ है और अपनी बेबसी पर आंसू बहाने को मजबूर है.
दलाल मालामाल, किसान बदहाल
भले ही केंद्र सरकार कृषि में दलाली करने वालों पर शिकंजा कसने के लिए कड़े नियम लागू करने की बात करती हो. बावजूद इसके आज भी कृषि और बागवानी में दलालों का दबदबा क़ायम है. इसका उदाहरण महाराष्ट्र के नासिक में देखने को मिल रहा है. नासिक का टमाटर बांग्ला देश और दुबई धडाधड बेचा जा रहा है, लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं बल्कि यहां के फल और सब्जी विक्रेताओं को मिल रहा है. मजे की बात तो यह है कि नासिक से बांग्लादेश और दुबई के लिए टमाटर से लदे हुए 50 ट्रक प्रतिदिन बेचे जा रहें है. परन्तु इतनी बिक्री होने के बावजूद भी किसानों को इसका कोई मुनाफा नहीं दिया जा रहा है. यहां के विक्रेता अपनी जेबे भरने में लगे हुए है.
जानकारी देते हुए स्थानीय हॉर्टिकल्चर कन्सल्टेंट बालासाहेब महेशदूने ने बताया कि नासिक का टमाटर प्रतिदिन बांग्लादेश और दुबई बेचा जा रहा है. जिसके लिए किसानों को टमाटर के दाम मात्र 120 रूपये प्रति क्रेट दिया जा रहा है. जबकि विक्रेता दुबई और बांग्ला देश में 2000 रूपये प्रति क्रेट बेच रहें है. जिसमे यदि 1700 रूपये का ट्रांसपोर्ट व अन्य ख़र्च भी मान लिया जाये तो भी विक्रेता प्रति क्रेट 150 फीसदी का मुनाफा कमा रहें है. जबकि किसानों को प्रति क्रेट लागत ही 150 रूपये का पड रही है. ऐसे में नासिक के किसान को प्रति क्रेट 30 रूपये का नुक़सान हो रहा है. उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार भी इस तरफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठा रही है. किसान घाटे पर घाटा झेल रहा है और यहां के विक्रेता चांदी लूट रहें है.
बाजार की स्थिति से बेबस हुए किसान
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गत माह पहले देश में टमाटर के दाम आसमान छूने लगे थे. आलम यह था कि किसानों ने टमाटर की एक क्रेट 3 से 4 हज़ार रुपये में बेचीं थी. जिसके बाद महाराष्ट्र. मध्य प्रदेश और कर्नाटका के किसानों के साथ वे राज्य भी टमाटर की फ़सल उगाने लगे जो कभी टमाटर नहीं उगाते थे. टमाटर में ज़्यादा मुनाफा देखकर उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, झारखण्ड व बिहार भी इस फ़सल को उगाने लगे. जिसके कारण बाज़ार में टमाटर का उत्पादन मांग से अधिक हो गया और टमाटर के भाव नीचे गिर गए. बाज़ार में टमाटर की भरमार से किसानों को खरीददार ही नहीं मिल रहें जिसके चलते किसान अपने टमाटर की फ़सल को ओने-पोने दामों पर बेचने के लिए लाचार है और इस मोके का लाभ बाज़ार में बैठे हुए दलाल उठा रहें है.
हॉर्टिकल्चर कन्सल्टेंट बालासाहेब महेशदूने बताया कि महाराष्ट्र सरकार किसानों के हित में कोई क़दम नहीं उठा रही है. न ही इस समस्या को दूर करने के लिए का कोई समाधान ही निकाला गया है. उन्होंने बताया महाराष्ट्र के नासिक में पेश आ रही इस समस्या को लेकर सोसल मीडिया पर भी बहस चल रही है. वही इस सम्बन्ध में जब महाराष्ट्र हॉर्टिकल्चर निदेशक डॉ मोते से सम्पर्क किया गया तो उनके द्वारा इस बारे में कोई भी टिप्पणी नहीं दी गई.
बाज़ार के बिगड़ते संतुलन की बीच विदेशी मुद्रा का नुकसान!
विशेषज्ञों की माने तो देश के कई राज्यों के किसानों ने अपनी परम्परिक फ़सल को छोड़ कर टमाटर की फ़सल उगाना शुरु कर दिया. जिससे सम्भावना बन रही है उस राज्य की विशेष फ़सल की आपूर्ति बाज़ार मांग के तहत पूरी नहीं हो सकेगी. इससे बाज़ार में एक फ़सल की अधिकता होगी तो दूसरी फ़सल की कमी होगी. इससे बाज़ार का संतुलन पूरी तरह बिगड़ सकता है. उत्पादन में कमी के चलते ऐसी फसलों की क़ीमत में भी तेजी से इज़ाफ़ा होने की संभावनाएँ बढ़ गई है.
वही दूसरी तरफ़ बाज़ार में आई ऐसी फसलों की मांग की आपूर्ति हेतु सरकार को अन्य देशो से आयत भी करना पड़ सकता है जिससे देश को विदेशी मुद्रा का नुक्सान भी झेलना पड़ सकता है.
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