Cotton Cultivation: कपास की खेती देश की आर्थिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण स्थान रखती है. कपास वस्त्र उद्योग के लिए कच्चा माल प्रदान करती है, इससे कपड़े, धागे और वस्त्र बनाए जाते हैं. इसके बीज से तेल और पशु आहार प्राप्त किया जाता है, जिससे किसान अतिरिक्त आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं. केन्द्रीय कपास अनुसंधान केन्द्र, नागपुर के निदेशक डॉ. वाई.जी.प्रसाद ने राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में अपने तीन वैज्ञानिकों के साथ कपास की फसल का अवलोकन किया. कृषि विज्ञान केन्द्र, संगरिया और कृषि विभाग के अधिकारियों को गुलाबी लट प्रबन्धन, टिण्डा गलन तथा नरमा कपास में आने वाली समस्याओं के प्रबंधन के सुझाव दिए. इसके साथ, उन्होंनें भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिये किये जा रहे अनुसधानों से भी अवगत कराया.
उनके साथ केंद्रीय कपास अनुसंधान केन्द्र, क्षेत्रीय स्टेशन, सिरसा के डॉ. ऋषि कुमार, डॉ. सतीश कुमार सैन और क्षेत्रीय स्टेशन, कोयम्बटूर के डॉ. एस. मनित्रम (प्रधान वैज्ञानिक (पादप प्रजनन)) ने जानकारी देते हुए बताया की एक साथ टिण्डे खिलने वाली किस्मों के बारे में तथा सघन पौधों की संख्या व कम अवधि की किस्मों पर चल रहे अनुसंधान के साथ विदेशों में नरमा में अपनाई जाने वाली तकनीकों से भी अवगत करावें. डॉ. एम.जी.वेणुगोपाल प्रधान वैज्ञानिक ने किसानों को केन्द्र द्वारा नरमा कपास में समय-समय पर दी जाने वाली सलाह से जुड़कर लाभ उठाने के लिए कहा.
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कृषि विज्ञान केन्द्र, संगरिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनूप कुमार ने केन्द्रीय कपास अनुसंधान केन्द्र, नागपुर व केन्द्र के सहयोग से गुलाबी लट प्रबन्धन के लिये 1एएमपी, दीनगढ़ में लगाये गये स्पलांट प्रबन्धन प्रदर्शन का भ्रमण करवाया. यह प्रदर्शन 10 एकड़ क्षेत्रफल में लगाया गया है. इसमें गुलाबी लट के प्रबन्धन हेतु पोधों पर एक पेस्ट मटर के दाने के आकार का लगाया जायेगा जिससे नर गुलाबी लट भ्रमित होकर संभोग नहीं करेगी तथा मादा अण्डे नहीं दे पाएगी.
इस तकनीक को मैटींग डीस्टरबैंस तकनीक कहते हैं. केन्द्र के पौध संरक्षक वैज्ञानिक डॉ. उमेश कुमार ने किसानों को सलाह दी की प्रति एकड़ दो फैरामोन ट्रैप लगाये जिससे किसान को गुलाबी लट के प्रकोप का पता चल सके और पहला स्प्रे समय आने पर नीम के तेल का करें.
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