हाल ही में उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने अपने एक फैसले में कापरेटिव बैंक को बैंकिंग कंपनी मानते हुए कहा कि ऋण वसूली के लिए कापरेटिव बैंक एस.ए.आर. एफ. ए. इ. एस. आइ एक्ट (sarfaesi) अर्थात सिक्योरेटाइजेशन एंड रीकन्सट्रक्सन आफ फाइनेंशियल असेट एंड एनफोर्समेंट आफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट,का प्रयोग कर सकते हैं. इस फैसले के बाद कापरेटिव बैंको के लिए तेजी से ऋण वसूली संभव हो सकेगी.
एस. ए. आर. एफ. एम. इ.एस.आइ एक्ट को 2002,में पारित किया गया था, इसका उद्देश्य बैंको को ऋण वसूली के लिए अधिक सक्षम बनाना था. इस अधिनियम के तहत बैंक लोन के लिए बंधक रखी संपत्ति को बिना न्यायिक हस्तक्षेप के अधिग्रहीत कर सकते हैं, बेच सकते हैं. इसके अलावा यदि बैंक चाहें तो वो दिए गये ऋण की शर्तो में बदलाव कर सकते हैं. उदाहरण के लिये यदि बैंक चाहे तो वो लोन की अवधि बढा सकते हैं, तथा ब्याज दरों में भी परिवर्तन कर सकते हैं.
विदित हो कि सरकार ने 2003 में एक नोटिफिकेशन जारी करके कापरेटिव बैंको को भी इस एक्ट के दायरे में ले लिया, इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में वाद दाखिल किया गया जिस पर तीन जजो की बेंच ने निर्णय देते हुए कहा कि कापरेटिव बैंक अलग अलग एक्ट के तहत बनाय जाते हैं, अतः ये बैंकिंग कंपनी नहीं माने जा सकते हैं.-सन 2013 में सरकार ने एस. ए. आर. एफ. ए. इ. एस. आई. एक्ट में फिर संशोधन किया, जिस पर निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय की पांच जजो की बेंच ने कहा कि कापरेटिव बैंक बैंकिंग सेवाओं को प्रदान करते हैं, अतः इन्हें भी बैंकिंग कंपनी माना जाएगा. न्यायालय के इस निर्णय के बाद कापरेटिव बैंक भी ऋण वसूली के लिए एस. ए. आर. एफ. ए.इ .एस.आई.एक्ट का प्रयोग कर सकते हैं. जिससे तीव्रता से ऋण वसूली संभव हो सकेगी.
इस समय एन. पी. ए. की समस्या भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के आगे यक्ष प्रश्न की तरह खड़ी है. पंजाब व महाराष्ट्र कापरेटिव बैंक घोटाला सामने आया है, तब कापरेटिव बैंको को ऋण वसूली में अधिक सक्षम बनाकर स्थिति में कुछ सुधार अवश्य किया जा सकता है, परंतु सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंक छोटे ऋणधारको का वसूली के नाम पर उत्पीड़न न करें.
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