केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि पादप आनुवंशिक संसाधन प्रजनन चुनौतियों के समाधान का स्रोत है. मूल उत्पत्ति वाले स्थान के विनाश और जलवायु परिवर्तन के कारण पादप आनुवंशिक संसाधन भी कमजोर हैं. उनका संरक्षण "मानवता की साझा जिम्मेदारी" है. हमें इन्हें संरक्षित करने और सतत रूप से उपयोग करने के लिए सभी आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना चाहिए.
केंद्रीय मंत्री तोमर ने यह बात आज अंतर्राष्ट्रीय खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन संधि (आईटीपीजीआरएफए) के शासी निकाय के नौवें सत्र (जीबी-9) की बैठक का उद्घाटन करते हुए कही. भारत इसकी मेजबानी कर रहा है. बैठक नई दिल्ली में 24 सितंबर तक चलेगी. यह संधि संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के 31वें सत्र के दौरान नवंबर-2001 में रोम में की विधिक रूप से बाध्यकारी व्यापक समझौता है, जो 29 जून 2004 से प्रभावी हुआ, में इसमें भारत सहित 149 अनुबंधित पक्ष हैं. यह संधि, जैविक विविधता कन्वेंशन के सामंजस्य में विश्व के खाद्य एवं कृषि पादप आनुवंशिक संसाधनों (पीजीआरएफए) के संरक्षण, विनिमय और सतत उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, इसके उपयोग से होने वाले लाभ के समान बंटवारे के साथ-साथ किसानों के अधिकारों की मान्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. पीजीआरएफए खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथ-साथ जलवायु अनुकूल कृषि प्राप्त करने के लिए पैमाना-मुक्त समाधान प्रदान करता है. पीजीआरएफए के लिए देशों की पारस्परिक निर्भरता है, जिसके परिणामस्वरूप पहुंच और लाभ साझा करने की सुविधा के लिए एक वैश्विक व्यवस्था होनी आवश्यक है. जीबी-9 का आयोजन "सेलिब्रेटिंग द गार्जियंस ऑफ क्रॉप डायवर्सिटी: टूवर्ड्स ए इनक्लूसिव पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क" थीम के तहत किया जा रहा है. इस थीम का उद्देश्य पीजीआरएफए के प्रभावी प्रबंधन में विश्व के छोटे किसानों के योगदान को महत्त्व देना और यह विचार करने का अवसर प्रदान करना है कि यह संधि और इसका समुदाय नए वैश्विक जैव विविधता ढांचे में अपना योगदान किस प्रकार दे सकता है.
उद्घाटन सत्र में तोमर ने कहा कि पादप संधि का उद्देश्य फसलों की विविधता में किसानों और स्थानीय समुदायों के योगदान को मान्यता देना है. सदियों से जनजातीय व पारंपरिक कृषक समुदायों ने अपने पास उपलब्ध समृद्ध आनुवंशिक सामग्री के आयामों का निरंतर अनुकूलन किया है, इसने विशाल और विविध सांस्कृतिक (पौधों की विविधता के आसपास जीवन और वाणिज्य), पाक (उद्देश्य और मौसम के अनुसार अविश्वसनीय किस्म, स्वाद और पोषण) और उपचारात्मक (दवा के रूप में भोजन) प्रथाओं को जन्म दिया है. तोमर ने कहा कि कोविड महामारी ने हमें कुछ सबक सिखाए हैं. भोजन की उपलब्धता व पहुंच, स्थिरता- शांति के लिए सर्वोपरि है. भारत नागरिकों के लिए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध रहा है. तोमर ने कहा कि हमें वर्ष-दर-वर्ष भरपूर फसल उत्पादन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. इसका उत्तर फसल विविधता व विविधीकरण है.
तोमर ने कहा कि खाद्य सुरक्षा की कीमत पर कोई बातचीत संभव नहीं है. सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भोजन अत्यावश्यक मौलिक अधिकार है. विकासशील देश यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित होंगे कि खाद्य उत्पादन करने वाले किसानों के अधिकारों से कभी समझौता न किया जाए. यह समुदाय पादप आनुवंशिक संसाधनों के अस्तित्व के लिए भी जिम्मेदार है, जो आज हमारे पास हैं. हमारे पास दुनियाभर में ऐसी कई जगह और ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अमूल्य आनुवंशिक संसाधनों और बहुमूल्य पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण किया है. उन्होंने कम उपयोग की जाने वाली संभावित फसलों के साथ ही फसलों की वन्य प्रजातियों का समय रहते संरक्षण और उपयोग पर जोर देते हुए कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि और पोषण सुरक्षा के लिए हमारा संघर्ष आपके निर्णयों और कार्यों पर बहुत अधिक निर्भर करता है. तोमर ने कहा कि उन्नत जीनोमिक और जैव-सूचनात्मक उपकरणों के उपयोग से प्राप्त आनुवंशिक जानकारी में आईपीआर का विषय बनने की क्षमता है. दूसरी ओर, पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोया और समृद्ध किया गया पारंपरिक ज्ञान सामान्य ज्ञान बन जाता है. पृथ्वी पर पीजीआर संरक्षण की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए वाणिज्यिक हितों और विरासती जीवन-मूल्यों को संतुलित करने की जिम्मेदारी आईटीपीजीआरएफए जैसे बहुपक्षीय मंचों पर है.
केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि भारत पादप आनुवंशिक संसाधनों की संपदा को साझा करने का एक दृढ़ समर्थक रहा है. आईएआरसी जीनबैंक और अन्य राष्ट्रीय जीन बैंकों पर निगाहें डालें तो से पता चलता है कि लगभग 10% जर्मप्लाज्म भारतीय मूल का है. हमारी सोच बिल्कुल स्पष्ट है कि पौधों के आनुवंशिक संसाधनों को अनुसंधान और सतत उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए. तोमर ने कहा कि हम समय के साथ पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और चयन में किसानों, स्वदेशी समुदायों, आदिवासी आबादी और विशेष रूप से समुदाय की महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते. इसलिए, जब तक संधि में संशोधन और सुधार पर विचार करते समय उनके हितों को ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है. भारत बहुपक्षीय समझौते की प्रतिबद्धताओं पर अपने विश्वास और कार्यों में दृढ़ है. उन्होंने बताया किआईटीपीजीएफआरए का अनुच्छेद 9 किसानों के अधिकारों से संबंधित है,जिसका भारत पूर्ण रूप से अनुपालन करता है और इसके लिए पीपीवी एवं एफआर अधिनियम, 2001 में प्रासंगिक प्रावधान निहित हैं. 166 किसानों/कृषि समुदायों को प्लांट जीनोम सेवियर अवार्ड्स से सम्मानित किया है.
तोमर ने कहा कि वैश्विक कृषि अनुसंधान स्पष्ट कारणों से कुछ प्रमुख फसलों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. उन्होंने छोटे मिलेट्स , छोटी दालों, छोटे फलों व पत्तेदार सब्जियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पास इन फसलों पर काम करने वाले संस्थानों का नेटवर्क है. हमने अपने किसान-संरक्षकों को GB-9 के लिए हमसे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया है. तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में किसानी बढ़ रही है,तोमर ने किसानों की प्रदर्शनियों को अन्य अतिथियों के साथ देखा व उनसे चर्चा की.
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव मनोज आहूजा ने कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के सचिव व आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, जीबी-9 ब्यूरो की अध्यक्ष सुश्री यास्मीना अल-बहलौल के समन्वयक शोम्बी शार्प, कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव अश्विवनी कुमार व अन्य ने स्वागत किया. जीबी-9 के महासचिव केंट नेन्डोजे आभार माना.
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