अरंडी के बीजों पर हाल में एक नया प्रयोग किया गया. विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रयोग के बाद अरंडी का उत्पादन दोगुना बढ़ जाएगा. उत्पादन बढाने के लिए आपको न खेती का तरीका बदलना पड़ेगा और ना ही ज्यादा पैसा लगाना होगा. सरदार कृषि नगर दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय (एसडीएयू), पालनपुर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उच्च उपज की जीसीएच-7 किस्म ने किसानों की आमदनी का मार्ग खोल दिया है.
अगर परम्परागत तरके से अरंडी की खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 2 टन से अधिक उत्पादन नही मिल पाता है, लेकिन इस तरीके से खेती करने पर अरंडी की पैदावार प्रति हेक्टेयर 4 टन तक बढ़ जाती है.
जीसीएच-7 किस्म विपरीत जलवायु स्थिति को झेलने में सक्षम है। कीटों का हमला एक दूसरी समस्या है और एसडीएयू ऐसे बीजों के विकास के लिए काम कर रहा है जो इनके प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता वाला हो।
इस प्रयोग को इस्तेमाल करने के बाद गुजरात समेत तेलंगाना, राजस्थान तथा अन्य अरंडी उत्पादक दूसरे बड़े राज्यों को भी बहुत मुनाफा होगा, सबसे खास बात यह कि यहाँ के किसानों के जीवन में भी एक क्रन्तिकारी बदलाव आएगा.
भारत अरंडी तेल और अरंडी खली की वैश्विक मांग के करीब 90 प्रतिशत की आपूर्ति करता है। विदेशों से मांग में लगातार बढ़ोतरी हुई है। अरंडी तेल का उपयोग फार्मास्यूटिकल्स और विमानन (एक ईंधन के तौर किया जाता है क्योंकि यह शून्य से 40 डिग्री नीचेतापमान पर भी नहीं जमता है) सहित विभिन्न उद्योगों में किया जाता है।
अरंडी की मांग वैश्विक स्तर पर अधिक होने के कारण अगर इसका उत्पादन अधिक हुआ तो भी इसकी कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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