साल 2022 किसानों के लिए खुशियाँ लेकर आया है. पहले कृषि कानून के बंधन से किसानों को छुटकारा मिला और अब कृषि बजट में होने जा रही वृद्धि की ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं. ऐसे में राजस्थान की अगर बात करें, तो यहाँ इस बार अलग कृषि बजट (Agriculture Budget) पेश होगा. इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है.
बता दें कि पिछले साल कृषि क्षेत्र में नई सुविधाएं प्रदान करने के लिए 3,756 करोड़ का बजट पारित किया गया था. जिसमें कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने इस बात का उल्लेख किया था कि जैविक खेती (Organic farming) को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जाएगा. राजस्थान के जनजातीय समुदाय के किसानों (Farmers) ने भी इस बजट में अपने लिए कुछ मांगें रखी हैं, क्योंकि आदिवासी समुदाए का जैविक और प्राकृतिक खेती में महत्वपूर्ण योगदान है. प्रदेश में जनजातीय समुदाय की जनसंख्या लगभग 8.6 फीसदी है. जिसको देखते हुए इन्होंने कृषि बजट में अपने लिए छह प्रमुख मांगें रखी हैं.
जनजातीय समुदाय के बीच जैविक खेती के लिए काम करने वाले संगठन वागधारा के सेक्रेटरी ने इस समुदाय की मांगों को लेकर विस्तार से जानकारी दी. जोशी ने बताया कि किसानों ने आदिवासी जिलों के प्रत्येक पंचायत मुख्यालय पर बायोचार और सूक्ष्म जीव बैंक बनाने की मांग की है. मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने के उपाय के रूप में बायोचार (पौधे के पदार्थ से उत्पन्न चारकोल जो कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के साधन के रूप में मिट्टी में संग्रहित किया जाता है और सूक्ष्मजीवों के उपयोग के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है.
बजट में क्या है किसानों की मांग
बीज उत्पादन बोनस (Seed Production Bonus)
जनजातीय समुदाय के उन्नत बीज उत्पादन एवं पारिवारिक आय के लिए बोनस राशि में 200 से 400 रुपये तक की वृद्धि की जानी चाहिए.
बीज परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना (Establishment of Seed Testing Laboratory)
वर्तमान में, बांसवाड़ा या आसपास के जिलों में कोई बीज परीक्षण प्रयोगशाला (STL-Seed Testing Lab) नहीं है. बीज जांच के लिए चित्तौड़गढ़ या जयपुर भेजा जा रहा है, जिसमें बहुत समय लगता है. इसलिए किसान बांसवाड़ा में एसटीएल की स्थापना की मांग कर रहे हैं.
दुग्ध डेयरी एवं संबंधित गतिविधियां (Milk Dairy and Allied Activities)
वर्ष 1986 में बांसवाड़ा में एक दूध डेयरी थी, जो अब काम नहीं कर रही है. डेयरी (Dairy) को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि कृषक समुदायों को इससे आय का अवसर मिल सके. इसके अलावा, हरे चारे के उन्नत बीज की मिनी किट, रियायती दर पर पशु चारा और मवेशी शेड सब्सिडी एक प्रमुख मांग है.
मिश्रित फसल पैटर्न वाली प्राकृतिक खेती (Natural Farming with mixed Cropping Pattern)
आदिवासी बेल्ट के किसान मिश्रित फसल का पालन कर रहे हैं, जिसमें मुख्य फसल के रूप में मक्का और उरद, अरहर, कपास, सोयाबीन (Soybean), लोबिया, तिल, धान शामिल हैं. यह एक सामान्य पारंपरिक प्रथा है जिसे इस क्षेत्र के किसान बिना अधिक तकनीकी, वित्तीय और सरकारी सहायता के निभा रहे हैं. इसलिए, प्रमुख मांगों में से एक तकनीकी सहायता और वित्तीय सहायता भी है.
बाजरे की छोटी फसलों के उन्नत किस्म के बीज की मिनी किट (Mini kit of improved variety seeds of small millet crops)
आदिवासी क्षेत्र के किसानों को छोटी बाजरा फसलों की उन्नत किस्मों के बीजों की आवश्यकता होती है. जैसे कि प्रोसो बाजरा, बार्नयार्ड बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा. ये बाजरा आदिवासी समुदाय की पारंपरिक फसलों का एक हिस्सा रहा है. यह बारिश आधारित पारिस्थितिक तंत्र में मौजूदा ढीली भूमि और भौगोलिक स्थिति का समर्थन करता है. इसलिए, प्रमुख मांग बेहतर बीज और तकनीकी सहायता है.
जैविक खाद की उपलब्धता (Availability of Organic Fertilizers)
आदिवासी बेल्ट में ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं. वे अपने पोषण और आजीविका के लिए कृषि उपज पर निर्भर हैं. उनके सामने सबसे बड़ी समस्या रासायनिक खाद और इसका असंतुलित उपयोग है जो मिट्टी को अनुपजाऊ बना रहा है. उसकी भौतिक स्थिति को खराब कर रहा है. इसलिए, किसानों की मांग है कि जैविक उर्वरक को तैयार करने वाले उपकरण उन्हें भारी छूट पर उपलब्ध कराया जाए.
Share your comments