हर साल हमारे किसान सूखे का शिकार हो जाते है. देश में ऐसे कई राज्य हैं जहाँ पर किसान सूखे से पीड़ित रहने के चलते अच्छी फसल नही ले पाते है. लेकिन इस खबर से उन किसानों को थोड़ी राहत मिल सकती है. किसानों को कम बारिश में भी बाजरे की भरपूर पैदावार देने वाली बाजरे की वैरायटी मिलेगी. अक्सर किसानों को फसल की पूरी सिंचाई न होने के चलते नुकसान उठाना पड़ता है. जिससे उनको कम उत्पादन जैसी समस्या का सामना भी करना पड़ता है. इस क्षेत्र में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने इस क्षेत्र में नयी खोज की है. चौधरी चरण सिंह युनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग विभाग में कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव वार्ष्णेय का नया शोध इन चिंताओं से राहत देने वाला है.
इस मामले में डॉ. राजीव का कहना है कि उन्होने बाजरे का ऐसा जीन खोज निकाला है, जिसे गेहूं, धान, दलहन, तिलहन में प्रत्यारोपित कर सूखे में भी उत्पादकता बरकरार रखी जा सकती है. कृषि वैज्ञानिक इस नये जीन की खोज को जेनेटिक्स और प्लांट ब्रीडिंग की दुनिया में मील का पत्थर मान रहे हैं. सूखे से निपटने में यह कारगार साबित होगा। इसके जरिए कम बारिश वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज लेने में यह सहायक होगा.
न जाने कितने किसान हर साल सूखाग्रस्त इलाकों में अच्छी पैदावार नहीं ले पाते है. ऐसा बहुत कम कि सूखाग्रस्त इलाकों में पैदावार बढाने के लिए लगातार अनुसंधान किये जा रहे है, लेकिन अभी पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिल पायी है. डॉ.राजीव ने बाजरे के जीनोम पर रिसर्च के दौरान उनके 38 हजार जीन्स का अध्यन किया. इस दौरान उन्होंने बाजरे में वैक्स बायो सिंथेसिस जीन खोज निकाला. यह जीन वह प्रमुख कारक हैं जो सूखे के हालात में भी बाजरे की हरियाली और उत्पादन बरकरार रखता हैं। यह बाजरे की पत्तियों पर एक बारीक परत बना देता है. जो तेज गर्मी में भी पत्तियों से पानी का उत्सर्जन नहीं होने देता है.
बाजरे की फसल 42 डिग्री तापमान पर भी बेहतर उत्पादन देती हैं. डॉ. राजीव कहते है कि बाजरे में वैक्स बायोसिंथेसिस जीन में वह सभी कारक हैं, जो कम वर्षा व सूखे में भी फसल को बचाता है। इसे हम धान, गेहूं, दलहन किसी भी फसल में प्रत्यारोपित कर सकते हैं. इससे अन्य फसलों में भी बाजरे की तरह ही सूखा और उच्च तापमान से निपटने की क्षमता बढ़ेगी.
Share your comments