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ग्रीष्मकालीन फसलों का रकबा बढ़ा, 7.5% अधिक हुई बुवाई, बंपर उत्पादन होने का अनुमान

ग्रीष्मकालीन फसलों (जायद) का रकबा इस साल बढ़कर 71.80 लाख हेक्टेयर (एलएच) हो गया है, जो कि एक साल पहले की अवधि के 66.80 लाख हेक्टेयर से 7.5 प्रतिशत अधिक है.

बृजेश चौहान
ग्रीष्मकालीन फसलों का रकबा बढ़ा (Image Source: Twitter)
ग्रीष्मकालीन फसलों का रकबा बढ़ा (Image Source: Twitter)

गर्मी भले ही इस साल अपना रौद्र रूप दिखाने वाली हो. लेकिन, फसलों के मोर्चे पर एक अच्छी खबर है. ग्रीष्मकालीन फसलों (जायद) का रकबा इस साल बढ़कर 71.80 लाख हेक्टेयर (एलएच) हो गया है, जो कि एक साल पहले की अवधि के 66.80 लाख हेक्टेयर से 7.5 प्रतिशत अधिक है. खरीफ की बुआई से पहले और रबी की फसल के बाद उगाई जाने वाली जायद फसलों के तहत कुल सामान्य क्षेत्र (पिछले 5 साल का औसत) एक सीजन में 66.01 लाख टन होने का अनुमान है.

बिजनेसलाइन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीष्मकालीन धान की बुआई 3 मई तक बढ़कर 30 लाख टन हो गई है, जो कि एक साल पहले की अवधि में 27.55 लाख टन से 10 प्रतिशत अधिक है. इस वर्ष मूंग का अधिक कवरेज होने से रकबा 19.14 लाख टन से 4.3 प्रतिशत बढ़कर 19.96 लाख टन हो गया है. मूंग की बुआई पिछले साल की समान अवधि के 15.89 लाख टन के मुकाबले बढ़कर 16.76 लाख टन हो गई है और उड़द की बुआई 3.24 लाख टन से घटकर 3.19 लाख टन रह गई है. ग्रीष्मकालीन दालों के प्रमुख उत्पादकों में मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और गुजरात शामिल हैं.

वहीं, मूंगफली का रकबा 4.70 लाख घंटे और तिल का रकबा 4.89 लाख घंटे तक पहुंच गया, दोनों एक साल पहले की अवधि से क्रमशः 4.63 लाख घंटे और 4.61 लाख घंटे से बढ़ रहे हैं. सूरजमुखी का रकबा पिछले साल के 32,318 हेक्टेयर के मुकाबले 33,387 हेक्टेयर तक पहुंच गया.

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गर्मियों में उगाए जाने वाले पोषक अनाज और मक्के का रकबा 10.88 लाख टन से 10 फीसदी बढ़कर 11.95 लाख टन हो गया है, क्योंकि इस साल ज्वार, बाजरा और मक्के का अधिक कवरेज दर्ज किया गया है. वहीं, ज्वार की बुआई पिछले साल की समान अवधि के 22,000 हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 45,000 हेक्टेयर हो गई है, जबकि बाजरे का रकबा 4.45 लाख हेक्टेयर से 5 प्रतिशत अधिक यानी 4.66 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है. मक्के का रकबा भी 6.21 लाख टन से 10 प्रतिशत बढ़कर 6.84 लाख टन हो गया.

इस बीच, 1 मार्च से प्री-मानसून सीजन में संचयी वर्षा सामान्य से 15 प्रतिशत कम (63 मिमी) है, जबकि 3 मई तक अखिल भारतीय आधार पर सामान्य 74.3 मिमी है. जबकि मध्य भारत में इसकी लंबी अवधि की तुलना में 71 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है. 1 मार्च से 3 मई के बीच अवधि औसत (एलपीए) के अनुसार, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में सामान्य से 3 प्रतिशत अधिक बारिश होती है. लेकिन, भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि दक्षिण प्रायद्वीप क्षेत्र में 70 प्रतिशत की कमी है और पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत में औसत वर्षा से 28 प्रतिशत कम है.

English Summary: Area of summer crops increased by 7 percent bumper production expected Published on: 06 May 2024, 11:37 AM IST

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