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ऐसा जहर जो विदर्भ किसानों की खुशियां छीन, ले रहा है उनकी जान..

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र का यवतमाल ज़िला दो दशकों से कपास के किसानों की ख़ुदकुशी के लिए बदनाम रहा है. लेकिन पिछले दो हफ्ते में कथित तौर पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव के चलते इस ज़िले में 18 किसान और खेतिहर मज़दूरों की मौत हो गई है. हालांकि मंगलवार को राज्य सरकार ने सचिव स्तरीय जाँच भी बिठाई और ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम भी घोषित कर दिए. लेकिन विषैली होती जा रही रासायनिक खेती ने खेती के आधुनिक तौर-तरीकों और इंसानी ज़िंदगी पर इसके ख़तरों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र का यवतमाल ज़िला दो दशकों से कपास के किसानों की ख़ुदकुशी के लिए बदनाम रहा है. लेकिन पिछले दो हफ्ते में कथित तौर पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव के चलते इस ज़िले में 18 किसान और खेतिहर मज़दूरों की मौत हो गई है. हालांकि मंगलवार को राज्य सरकार ने सचिव स्तरीय जाँच भी बिठाई और ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम भी घोषित कर दिए. लेकिन विषैली होती जा रही रासायनिक खेती ने खेती के आधुनिक तौर-तरीकों और इंसानी ज़िंदगी पर इसके ख़तरों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.

कीटनाशकों का छिड़काव

हाल ही में यवतमाल का दौरा कर चुके किशोर तिवारी दावा करते हैं, "पिछले पंद्रह दिनों में यवतमाल ज़िले में कीटनाशकों के छिड़काव का विषैला असर होने से 18 लोगों की मौत हुई है. मरने वाले किसान और खेतिहर मज़दूर हैं. सैंकड़ों लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा है."

कृषि कार्यकर्ता किशोर तिवारी महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे वसंतराव कृषि स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष हैं. ये मिशन किसानों की आत्महत्याओं पर रोकथाम और उनसे जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं के अमल पर नज़र रखता है. उधर, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के निर्देशों पर इन घटनाओं के लिए राज्य सरकार ने गृह मंत्रालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव से जाँच कराए जाने की घोषणा की है.

सरकार का पक्ष

यवतमाल से ही भाजपा विधायक और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री मदन येरावार का कहना है, "किसान और खेतिहर मज़दूरों को छिड़काव के लिए मास्क और दस्तानों का मुफ्त वितरण शुरू हो चुका है. अब सभी अस्पतालों में ज़रूरी चीज़ों के लिए आदेश दिए गए हैं. इनसे पिछले कुछ दिनों में इन मामलों में कमी आई है."

मरने वालों में एक नाम सावरगाँव के गजानन फूलमाली भी थे. वे तीन एकड़ ज़मीन पर कपास की खेती करते थे. दावा किया जा रहा है कि कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव का खुद उन पर ऐसा असर हुआ कि जान चली गई. अब ये परिवार ऐसे सदमे में है कि माता-पिता, पत्नी, दो अविवाहित बेटियाँ और 18 साल के इकलौते बेटे को कुछ सूझ नहीं रहा है.

 

 

परिवार का हाल

नर्सिंग की पढ़ाई कर रही प्रतीक्षा बताती हैं, "पहली बार छिड़काव के दौरान रसायन से पिता को कंधे पर ज़ख्म हो गया था. फिर 10-12 दिनों के बाद दोबारा माँ के साथ वो छिड़काव के लिए गए थे. लौटने पर उल्टियाँ शुरू हो गई.

प्रतीक्षा आगे कहती हैं, "उन्हें सावरगाँव प्राथमिक चिकित्सा केंद्र ले गए जहाँ उन्हें स्लाइन चढ़ाया गया. फिर कलम्ब शहर के ग्रामीण अस्पताल ले जाना पड़ा. उन्होंने भी रेफर कर दिया. हालत बिगड़ती देख निजी अस्पताल ले गए लेकिन उनकी फीस ज्यादा थी. सो दुबारा सरकारी अस्पताल ले आए, जहाँ उनकी मौत हो गई." छिड़काव के दौरान ज़रूरत से अधिक कीटनाशकों के इस्तेमाल की बात से प्रतीक्षा इनकार करती हैं.

यवतमाल ज़िले में तेज कीटनाशकों का लोगों की आँखों पर पड़ने वाले असर के 25 मामले सामने आए हैं. इनकी पूरी दृष्टि लौट तो आएगी लेकिन भविष्य में आंखों पर दीर्घ कालीन असर हो सकता है.

किशोर तिवारी कहते हैं, "बीज कंपनियों और उनके वितरकों की यह जिम्मेदारी होती है कि छिड़काव के तौर-तरीकों की पर्याप्त जानकारी और ट्रेनिंग किसानों को दें. इन सब पर नज़र रखने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की होती है. और यदि छिड़काव करने वालों पर असर दिखाई दे तो फ़ौरन राहत देनेका और जान बचाने का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग का होता है. मेरी माँग है कि इस घटना से सम्बंधित बीज उत्पादक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, महाराष्ट्र के कृषि विभाग और स्वास्थ्य विभाग के संबंधित अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाए."

महाराष्ट्र के मंत्री मदन येरावार बताते हैं छिड़काव के वक्त मुँह पर मास्क लगाने, हाथों मे दस्ताने और शरीर पर ऐप्रन पहनने की ज़रूरत थी. लेकिन ये नहीं हुआ. लोगों ने हमेशा की तरह शर्ट निकालकर सिर्फ बनियन पहने छिड़काव किया. इससे ज्यादा छिड़काव वाले रसायन सीधे शरीर पर आने से त्वचा के भीतर पसीने के जरिए जाने से भी इन्फेक्शन हुआ हो सकता है. हाथ में छिड़काव वाले रासायनिक जहर का अंश होता है, फिर भी उसी हाथ से तम्बाकू या गुटखा खा लिया तो रासायनिक ज़हर सीधे पेट में उतरता है. छिड़काव के लिए दवाइयों का मिश्रण सही तरह से हुआ या नहीं ये भी देखना होता है. ये सारी बातें बीज कंपनियां सबको बताती नहीं, बस लिफलेट पर छापती हैं. लेकिन, खेत मजदूर या किसान उसे कितना पढ़ते हैं? कोई पालन नहीं होता."

अमूमन हर किसान को किटनाशक छिड़काव करनेकी इजाजत नहीं है. हर गाँव में ख़ास तौर पर प्रशिक्षित मजदूरों की टीम छिड़काव करती है. लेकिन फिर भी लोग खुद करते हैं.

English Summary: A poison that snatches the happiness of the farmers of Vidarbha and is taking his life. Published on: 06 October 2017, 02:00 AM IST

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