खेती बाड़ी के लिए जो सबसे ज्यादा जरूरी है वह है, जमीन, बीज और पानी. इस पर मेहनत करने से किसान अपना पेट तो भरता ही है. लाखों लोगों के पेट भरण और पोषण का भी काम करता है. किसानों को पानी की आवश्यकता हमेशा से ही रही है. किसान का आसमान की और देखना, बादलों और बारिश पर निर्भर रहना अब गए ज़माने की बात हो गयी है. नदियां नालों से पानी लेकर सिंचाई करना भी परम्परागत तरीकों में शामिल है और नवीनीकरण के युग में सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन को बहुत महत्व दिया गया है.
प्रधान मंत्री जी का भी कहना है कि 'मोर क्रॉप पर ड्राप' से काम पानी में अधिक फसल और सिंचाई की जा सकती है. चलिए जानते हैं कि ड्रिप इरीगेशन में कौन कौन से राज्यों में क्या सुविधा और कितनी सब्सिडी मिलती है.
अगर आप ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करना चाहते हैं, तो इस योजना का लाभ ले सकते हैं. उद्यान विभाग इन्हें खरीदने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रहा है. इसके लिए किसानों को आवेदन करना होगा. लघु सीमांत किसानों को 90 तो सामान्य को 80 प्रतिशत का अनुदान योजना पर दिया जा रहा है. यही नहीं ड्रिप सिंचाई व स्प्रिंकलर विधि का इस्तेमाल कर किसान कम पानी में फसलों को अधिक पानी दे सकते हैं. उद्यान विभाग सिंचाई के इन साधनों के लिए किसानों को सब्सिडी भी देता है. सिंचाई के दौरान पानी की बर्बादी को रोकने के लिए उद्यान विभाग ने भी कवायद तेजी की है. प्रदेश में सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है. किसानों को प्रेरित किया जा रहा है कि वह ड्रिप इरीगेशन को अपना कर फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. वहीं अनुदान मिलने से भी उन्हें फायदा होगा.
"पहले नालियों से सिंचाई करते थे, जिसमें समय और पानी दोनो बहुत लगता था, लेकिन अब उद्यान विभाग की मदद से ड्रिप विधि से ही सिंचाई करते हैं. इससे कम पानी में ही पूरी सिंचाई हो जाती है." उद्यान विभाग के अंतर्गत राष्ट्रीय बागवानी मिशन के निदेशक धर्मेंद्र पांडेय बताते हैं, "सिंचाई के दौरान पानी की बर्बादी रोकने के लिए बेहतर विकल्प है. फसल के उत्पादन पर भी इसका अच्छा असर होता है. किसानों को इन नयी विधियों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, उद्यान विभाग इसके लिए सब्सिडी देता है."
"योजना का लाभ सभी वर्ग के किसानों के लिए मान्य है, योजना का लाभ लेने के लिए किसान के पास की खुद की जमीन होनी चाहिए." प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, 'पर ड्रॉप मोर क्रॉप- माइक्रो इरीगेशन योजना' के तहत उद्यान विभाग किसानों को स्प्रिंकलर पोर्टेबल, ड्रिप इरीगेशन, रेन गन अनुदान पर दे रहा है. इस योजना से फसल में लगने वाले पानी की खपत भी कम होगी और पौधे को पर्याप्त मात्रा में पानी भी मिल जाएगा. इससे पौधे की जहां ग्रोथ अच्छी होती है, वहीं किसानों की जेब भी हल्की होने से बचती है. स्प्रिंकलर पोर्टेबल, ड्रिप इरीगेशन और रैन गन लेने के लिए किसान को आनलाईन पंजीकरण कराना होगा.
सरकार देती है सब्सिडी लघु सीमांत किसानों को 90 प्रतिशत का और सामान्य किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान डीबीटी के द्वारा दिया जाता है, चयनित होने के बाद किसान किसी भी अपनी पसंदीदा कंपनी से खरीददारी कर सकता है. स्प्रिंकलर पोर्टेबल और रैन गन के लिए किसान को पहले अपनी जेब से पैसा लगाना होगा. इसके बाद बिल और बाउचर विभाग में सम्मिट करने पर अनुदान की धनराशि किसान के खाते में जायेगी. ऐसे कराएं पंजीकरण इच्छुक लाभार्थी कृषक किसान पारदर्शी योजना के पोर्टल www.upagriculture.com पर अपना पंजीकरण कराकर प्रथम आवक प्रथम पावक के सिंद्धात पर योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं. पंजीकरण के लिए किसान के पहचान के लिए आधार कार्ड, भूमि की पहचान के लिए खतौनी एवं अनुदान की धनराशि के अन्तरण के लिए बैंक पासबुक के प्रथम पृष्ठ की छाया प्रति अनिवार्य है. टपक (ड्रिप) सिंचाई अगर किसान खेत में साधारण सिंचाई के बजाय ड्रिप सिंचाई विधि का प्रयोग करे तो तीन गुना ज्यादा क्षेत्र में उतने ही पानी में सिंचाई कर सकते हैं. ड्रिप सिंचाई का प्रयोग सभी फसलों की सिंचाई में करते हैं, लेकिन बागवानी में इसका प्रयोग ज्यादा अच्छे से होता है. बागवानी में जैसे केला, पपीता, नींबू जैसी फसलों में सफलतापूर्वक करते हैं.
बागवानी की तरह ही ड्रिप सिंचाई विधि का प्रयोग गन्ना और सब्जियों में भी कर सकते हैं. ड्रिप सिंचाई से लाभ टपक सिंचाई में पेड़ पौधों को नियमित जरुरी मात्रा में पानी मिलता रहता है ड्रिप सिंचाई विधि से उत्पादकता में 20 से 30 प्रतिशत तक अधिक लाभ मिलता है. इस विधि से 60 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है. इस विधि से ऊंची-नीची जमीन पर सामान्य रुप से पानी पहुंचता है. इसमें सभी पोषक तत्व सीधे पानी से पौधों के जड़ों तक पहुंचाया जाता है तो अतिरिक्त पोषक तत्व बेकार नहीं जाता, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है. ये छोटे सिंचाई पंप इस विधि में पानी सीधा जड़ों तक पहुंचाया जाता है और आस-पास की जमीन सूखी रहती है, जिससे खरपतवार भी नहीं पनपते हैं. ड्रिप सिंचाई में जड़ को छोड़कर सभी भाग सूखा रहता है, जिससे खरपतवार नहीं उगते हैं, निराई-गुड़ाई का खर्च भी बच जाता है. फव्वारा (स्प्रिंकल) सिंचाई स्प्रिंकल विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में किया जाता है, जिससे पानी पौधों पर बारिश की बूंदों की तरह पड़ता है.
पानी की बचत और उत्पादकता के हिसाब से स्प्रिंकल विधि ज्यादा उपयोगी मानी जाती है. ये सिंचाई तकनीक ज्यादा लाभदायक साबित हो रहा है. चना, सरसो और दलहनी फसलों के लिए ये विधि उपयोगी मानी जाती है. सिंचाई के दौरान ही पानी में दवा मिला दी जाती है, जो पौधे की जड़ में जाती है. ऐसा करने पर पानी की बर्बादी नहीं होती. विधि से लाभ इस विधि से पानी वर्षा की बूदों की तरह फसलों पर पड़ता है, जिससे खेत में जलभराव नहीं होता है. जिस जगह में खेत ऊंचे-नीचे होते हैं वहां पर सिंचाई कर सकते हैं. इस विधि से सिंचाई करने पर मिट्टी में नमी बनी रहती है और सभी पौधों को एक समान पानी मिलता रहता है. इसमें भी सिंचाई के साथ ही उर्वरक, कीटनाशक आदि को छिड़काव हो जाता है. पानी की कमीं वाले क्षेत्रों में विधि लाभदायक साबित हो रही है.
अनुदान देता है विभाग टपक व फव्वारा सिंचाई के लिए लघु एवं सीमांत किसान को 90 फीसदी अनुदान सरकार की तरफ से दिया जाता है. इसमें 50 प्रतिशत केंद्रांश व 40 फीसदी राज्यांश शामिल है. दस फीसदी धनराशि किसानों को लगानी होती है. सामान्य किसानों को 75 प्रतिशत अनुदान मिलेगा. 25 प्रतिशत किसानों को अपनी पूंजी लगानी होती है.
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