धरती के अंचल से लेकर
अंबर का अभिमान हूं
अन्नदाता कहता संसार मुझे
हां, मैं किसान हूं
खुशहाल रहे देश मेरा
शिकायत नहीं कि गुमनाम हूं
पर दर्द होता है मुझे भी
मैं भी आखिर इंसान हूं।
मस्त हूं अपनी धुन में
शायद इसलिए अनजान हूं
गांव,मिट्टी,धूल में सना
हां, मैं किसान हूं ।
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