मैं कुछ लिखना चाहता हूं...
सुनों, आज एक कविता लिखना चाहता हूं,
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए,
मैं तुम्हारे लिए प्रेम नहीं लिखना चाहता,
मैं चाहता हूं इबादत लिखूं,
हिफाजत लिखूं,
किसी मन्दिर में होने वाली प्रार्थना लिखूं,
या मस्जिद में होने वाली अज़ान लिखूं,
जो लिखना चाहता हूं,
वो बस तुम्हारे लिए,
बंद अधरों से कुछ बोलना चाहता हूं,
बिन शब्द के कुछ लिखना चाहता हूँ,
लिखना चाहता हूँ,
बहती नदियों के स्वर को,
चिड़ियों की चहचहाहट को,
मेघ के गर्जन को
बारिश की बूँदों को
ओस की मोती को
और! और भी बहुत कुछ...
मैं अपनी कविता में महसूस करना चाहता हूं
ठण्डी हवा को,
शीतल जल को
पेड़ की छांव को
और, और उन सबमें तुमको
मैं खेत खलियान को लिखना चाहता हूँ
लहलहाती फसलों को छूना चाहता हूं
नदी के तीर से क्षितिज की रेखा देखना चाहता हूं
जहां से धरती आसमान से दूर होते हुए भी पास दिखती है,
उन क्षितिज की रेखा में तुमको महसूस करना चाहता हूं...
मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूं
उन सब में, मैं तुमको ही ढूंढना चाहता हूं
विषय वस्तु चाहे जो भी हो मैं तुमको ही लिखना चाहता हूं
हां, मैं कुछ लिखना चाहता हूं...
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