था मेरा स्वप्न बड़ा ही सुंदर
जिस जगह तुम निखर रही थी
सांसों में थी तुम सुगंधित
बाजुओं में बिखर रही थी
बड़ी ही जालिम थी निगाहें
चाबूक सी मुझ पर जो चल रही थी
कितना पावन था वो लम्हा, कितनी प्यारी सी जमीं थी
एक तरफ था संसार सारा, दूजी ओर तुम खड़ी थी
ज़रा सा हंस कर जो तुमको देखा, तेरे नैनों से अमृत झलक रही थी
था मेरा स्वप्न बड़ा ही सुदंर, जिस जगह तुम निखर रही थी
उन्माद राग से थी तुम नहाई, अनुराग राग से था मैं रंगा
था मेरा मन जैसे बनारस, जहां से तुम बह रही थी गंगा
पतझड़ से मेरे इस जीवन में, बनकर बसंत तुम लहलहाई
था मेरा स्वप्न बड़ा ही सुंदर, जिस जगह तुम निखर रही थी
Share your comments