1. Home
  2. औषधीय फसलें

कालमेघ की खेती करें और पाये एनएमपीबी से 30 फीसद अनुदान, जानिये कैसे

औषधीय पौधों में कालमेघ को बहुवर्षीय शाक जातीय पौधों की श्रेणी में रखा जाता है. इस पौधें का वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है और इसकी पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक ये पौधा भारत का मूल निवासी है, जबकि कुछ इसे श्रीलंकाई पौधा भी कहते हैं. दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में इसकी मुख्य तौर पर खेती की जाती है.

सिप्पू कुमार
सिप्पू कुमार

औषधीय पौधों में कालमेघ को बहुवर्षीय शाक जातीय पौधों की श्रेणी में रखा जाता है. इस पौधें का वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है और इसकी पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक ये पौधा भारत का मूल निवासी है, जबकि कुछ इसे श्रीलंकाई पौधा भी कहते हैं. दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में इसकी मुख्य तौर पर खेती की जाती है.

इस पौधे का तना सीधा और होता है जिसमे से चार शाखाएँ निकलती हैं. प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं, जो देखने में बहुत ही मनमोहक लगती है. पत्तियों का रंग साधारण पत्तों की तरह हरा होता है. लेकिन इसके फूल सुंदर गुलाबी रंग के होते हैं. निसंदेह ये पौधा कम लागत में बड़ा मुनाफा दे सकता है. कालमेघ की महत्वता को समझते हुए सरकार इसकी खेती पर 30 फीसद अनुदान दे रही है. चलिये आपको बताते हैं कि कालमेघ की उन्नत खेती कैसे की जाती है.

साल भर विकसित रहने वाला पौधा है कालमेघः

कालमेघ साल भर रहने वाली एक जड़ी-बूटी पौधा है. लगभग 3 माह के बाद (90 से 100 दिन) ये पूरी तरह विकसित हो जाता है. इसके फलने-फूलने का मौसम अक्टूबर से दिसंबर तक है.

जलवायु और मिट्टीः

यह पौधा लगभग पूरे भारत में कहीं भी उगाया जा सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसे आराम से लगाया जा सकता है. इसके लिए बलुई मिट्टी या चिकनी मिट्टी उपयुक्त है.

नर्सरी की तैयारीः

बीजों को क्यारियों में बाने से पहले पानी में 24 घंटों तक भिगो दें. एक हेक्टेयर में नर्सरी लगाने के लिए करीब 650 से 750 ग्राम बीजों की जरूरत होती है. नर्सरी तैयार करने के लिए 1:1:1 के अनुपात में मिट्टी, बालू और जैविक खाद को मिलाकर नर्सरी तैयार की जाती है और 5 सेमी की दूरी के साथ कतारों में बोया जाता है. नर्सरी की खुराक के लिए 20 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से उर्वरक दी जाती है.

kalmegh

रोपण प्रक्रियाः

मिट्टी के भूरभूरे होने तक अच्छे से जुताई करें. आधारभूत उपयोग के तौर पर 20टन/हेक्टयर की दर से उर्वरक डालें. आप अतिरिक्त खुराक के लिए दूसरी पौधारोपण के 40 दिनों के बाद नाइट्रोजनः फोस्फोरसः पोटेशियम का उपयोग 75:75:50 किलो/हेक्टेयर के रूप में कर सकते हैं.

पौधारोपण और दूरीः

10 से 25 सेमी लंबे पौधों की कतार से कतार के बीच दूरी 30*15 सेमी होनी चाहिये.

सिंचाईः

फसल कटने तक हल्की सिंचाई 4-6 बार करें. जबकि पौधारोपण के 20 से 60 दिन पर दो से तीन बार निराई करना जरूरी है.

फसल प्रबंधनः

बुआई के 120 दिनों के बाद फसलों के तैयार होने पर कटाई प्रक्रिया प्रारंभ करें. कटाई के लिए पूरा पौधा उखाड़ें. हालांकि आप चाहें तो पौधों को जमीन से 4 से 6 इंच ऊपर काटकर भी कटाई कर सकते हैं.

कटाई के बाद का कामः

कटाई के बाद पौधों को दो दिनों तक धूप लगाएं और उसके बाद छाये में सुखाये. सुखाये गये सामाग्री को जूट के बोरों में भरकर अंधेरे, हवादार और नम रहित स्थान पर स्टोर करें

English Summary: national medicinal plants board give 30 percent subsidy on kalmegh farming Andrographis paniculata Published on: 13 November 2019, 06:18 IST

Like this article?

Hey! I am सिप्पू कुमार. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News