
आज हम आपको अरंडी की खेती के बारे में बताएंगे. अरंडी का इस्तेमाल औषधीय तेल बनाने के लिए किया जाता है. इसकी खेती करने वाले किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं. अरंडी के पौधे पूरी तरह विकसित हो जाने के बाद इसमें अरंडी के बीज आते हैं जिसमें 60 फ़ीसदी तक तेल होता है. इस तेल का इस्तेमाल बतौर आयुर्वेदिक औषधि पाचन, पेट दर्द और बच्चों की मालिश में किया जाता है इसके अलावा इस तेल से वॉर्निश, साबुन, कपड़ा रंगाई भी की जाती है. इसलिए आर्थिक नज़रिये से इसकी खेती बहुत फ़ायदेमंद है.
भारत दुनिया में प्रमुख अरंडी उत्पादक देश-
ब्राजील और चीन के बाद इंडिया तीसरे नम्बर पर अरंडी तेल उत्पादक देश है. हमारे देश में हर साल तक़रीबन 10 लाख मिट्रिक टन अरंडी का उत्पादन हर साल होता है. इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं- गुजरात, हरियाणा, तेलंगाना और राजस्थान.
मिलता है अच्छा भाव-
जैसा कि हमने पढ़ा भारत अरंडी के तेल को दुनियाभर में निर्यात करने वाला बड़ा देश है. इसकी मांग ज़्यादा होने के नाते अरंडी की क़ीमत अच्छी मिलती है. अरंडी का बाज़ार भाव 5400 से लेकर 7200 तक के उतार-चढ़ाव के साथ रहता है. (अलग-अलग मंडियों में भाव अलग-अलग हो सकता है)
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कम उपजाऊ ज़मीन में होती है फ़सल-
अच्छी बात ये है कि अरंडी की खेती कम उपजाई ज़मीन में भी की जा सकती है. ऐसी ज़मीन में जहां बहुत सारी फ़सलें नहीं लग पाती हैं ऐसी कम फ़र्टाइल भूमि पर भी अरंडी की खेती की जा सकती है. इसकी खेती की ज़मीन में पानी की निकासी के इंतज़ाम होने चाहिए और ज़मीन का पीएच मान (pH level) क़रीब 6 के बीच होना चाहिए. जलवायु अगर शुष्क और आद्र हो तो पौधे का विकास अच्छा होता है. इसके पत्ते काफ़ी बड़े होते हैं.
ऐसे होती है खेत की तैयारी-
पहले खेत की जुताई की जाती है फिर उसमें ज़रूरी मात्रा में गोबर की खाद डाली जाती है. फिर इसे दोबारा जोतकर जैविक खाद को पूरी तरह मिला दिया जाता. इसके बाद खेत में पानी डालकर पलेवा किया जाता है. खेत सूखने के बाद फिर से जुताई कर पाटा लगाकर ज़मीन को बराबर किया जाता है. इसके बाद जिप्सम और सल्फ़र डाला जाता है. अंत में ड्रिल विधि से अरंडी की बुवाई कर दी जाती है. 1 हेक्टेयर खेत में लगभग 20 किलो बीज का उपयोग होता है.
ये महीनें है रोपाई के लिए सही-
जून और जुलाई महीने को इसकी रोपाई के लिए सबसे सही माना जाता है. पौधों को निकालने के बाद ज़रूरत के हिसाब से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाती है.
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