ग्रीष्म ऋतु आते ही मनुष्य रुखापन महसूस करने लगता है. इस कारण उसका रुझान हरियाली की ओर होने लगता है. ऐसे समय में बाग-बगीचों के उद्यानों की हरी घास पर बैठ कर समय बिताने का मन करता है. हरे-भरे पौधों को देखने की इच्छा होती है, इससे मन को शांति मिलती है तथा मानसिक तनाव भी दूर होता है. इसके अतिरिक्त प्रदूषित पर्यावरण से दूर रह कर हरियाली के बीच में रहना स्वास्थ्यवर्धक होता है. हरियाली के साथ यदि कुछ रंग-बिरंगे फूलों का भी संगम हो जाए तो चित्त और भी प्रसन्न हो उठता है.
इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ग्रीष्म ऋतु में होने वाले कुछ प्रमुख शोभाकारी पौधों का रख-रखाव कैसे करें, इसकी जानकारी इस लेख में दी जा रही है.
कोचिया
गर्मी के मौसम में बगीचों, पार्कों और अपने आस-पास के वातावरण को हरा-भरा रखने तथा हरियाली का आनंद लेने के लिए सर्वोत्तम पौधा कोचिया है. कोचिया पत्तियों की सुंदरता वाला एक सजावटी पौधा है. यह शाकीय होता है, जो ‘चिनोपोडिएसी’ कुल से संबंधित है. इसका पौधा 2-3 फुट की ऊंचाई तथा 1.5 फुट की चैड़ाई तक फैलता है.
कोचिया का पौधा सुंदर, मनमोहक और बड़ा ही शोभावर्धक होता है. यह गुंबज जैसी आकृति का होता है, जो नीचे से ऊपर तक हल्के हरे रंग की पतली लंबी घनी पत्तियों से भरा रहता है. पत्तियों पर हाथ फेरने से लगता है मानो किसी मुलायम गलीचे पर हाथ फेर रहे हों. कोचिया का वानस्पतिक नाम, ‘कोचिया स्कापैरिया’ है. इसका दूसरा नाम ‘कोचिया ट्राइकोफाइला’ भी है. अंग्रेजी में कोचिया को ‘समर साइप्रेस’ तथा बर्निग बुश कहते हैं. साइप्रेस (क्यूप्रेसस सेंपरवाइरेंस) एक सदाबहार गुंबजाकार पौधा है, जिसे हिंदी में ‘सरो’ कहते हैं. इसकी हरी-पतली कटी हुई पत्तियां बड़ी सुंदर होती हैं. चूंकि कोचिया के पौधे की आकृति इससे मिलती-जुलती है परंतु इसे गर्मी के मौसम में ही उगाते हैं, इसलिए अंग्रेजी में इसको समर साइप्रेस का नाम दिया गया है. इसके अतिरिक्त इसका पौधा एक छोटे से मीनार की भांति खड़ा रहता है, जो उतार-चढ़ाव सहित ढालू आकार का होता है, इसलिए इसे ‘बेलबेडिअर (बुर्ज)’ का भी नाम दिया गया है.
गर्मी के पूरे मौसम में कोचिया के पौधे खूब हरे-भरे रहते हैं. यदि इनकी देखभाल होती रहे तो ये वर्षा ऋतु तक भी चलते रहते हैं. वर्षा ऋतु समाप्त होने से कुछ पहले इसकी पत्तियों की हरियाली में मामूली सा ताम्र रंग का अंश आ जाता है. इसके बाद पूरा पौधा लाल-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूलों से भर जाता है. इसलिए अंग्रेजी में इसे ‘बर्निंग बुश’ का नाम दिया गया है. इसमें अधिक तापमान सहन करने की क्षमता है. कोचिया की एक और जाति है, जिसका नाम ‘कोचिया चाइल्डसाइज’ है. इसका पौधा अपेक्षाकृत छोटा होता है जो केवल 1.5-2 फुट की ऊंचाई तक वृद्धि करता है तथा यह हमेशा हरा ही रहता है.
भूदृश्यावली में कोचिया का उपयोग एवं उत्पादन
कोचिया के पौधे जमीन में या गमलों में लगा सकते हैं. इसे लगाने के लिए 9-10 इंच माप के गमले प्रयोग में लाने चाहिए तथा एक गमले में केवल एक ही पौधा लगाना चाहिए. जमीन में लगाने के लिए इसे किसी कोने या कहीं एक किनारे पर अकेले या रास्तों के किनारे लगा सकते हैं. स्थायी रूप से इस पौधे को झाड़ या हेज के रूप में भी लगा सकते हैं. कोचिया की अच्छी बढ़वार के लिए खादयुक्त, उत्तम जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी तथा प्रकाशयुक्त स्थान की आवश्यकता होती है. पौधशाला में इसकी बीजाई फरवरी महीने में करनी चाहिए. जब पौधे 3-4‘‘ के हो जाए तब इन्हें उपयुक्त स्थान पर लगा देना चाहिए. अलग लगे हुए पौधों के लिए अनुकूल वातावरण रहने पर कभी-कभी वे बहुत बड़े हो जाते हैं. इसके पौधे धूप-छांव को बराबर सह सकते हैं. इसके गमलों में लाबी में, सीढ़ियों पर तथा छज्जों एवं खिड़कियों पर और दरवाजे के सामने उपयुक्त स्थान पर रखकर हरियाली और सजावट का आनंद ले सकते हैं.
पारचूलाका
ग्रीष्म ऋतु के फूल वाले पौधों में पारचूलाका एक प्रमुख पौधा है. यह एक फैलने वाला पौधा है जो अधिक से अधिक 5-6 इंच ऊपर तक बढ़ता है. इसकी टहनियां मुलायम तथा गूदेदार होती है. पत्तियां छोटी लगभग 2 सें.मी. लम्बी, पतली (2-3 मि.मी. चैड़ी) मासल एवं बेलनाकार होती है. फूल पौधों की टहनियों की शिखाओं पर अकेले लगते हैं. इसके फूल गुलाब के फूल की आकृति के तथा कटोरीनुमा लगभग 1 इंच चैड़ाई के विविध रंगों में खिलते हैं, तब वे बडे आकर्षक लगते हैं. ये फूल दोहरी या एकहरी पंखुड़ियों वाले होते हैं जो लाल, गुलाबी, नारंगी, पीले, सिंदूरी, हल्के गुलाबी तथा बैंगनी रंगों में खिलते हैं. कुछ किस्मों की पंखुड़ियों में लकीरें व धारियां भी होती है जिससे फूल की सुंदरता और भी बढ़ जाती है.
पारचूलाका आलरैसिया की जाति का शाकीय पौधा, जो ‘परचूलेकेसी’ कुल का होता है. इसका पौधा वार्षिक होता है जिसे फरवरी-मार्च में लगाते हैं. पौधें का प्रसारण बीज तथा टहनियों की कटिंग द्वारा किया जाता है. पौधे की टहनियां जब फैलती हैं तो भूमि या गमले की मिट्टी के संपर्क में आने पर इसकी गांठों से जड़ें स्वतः फूल जाती हैं जिससे गमले तथा पूरी भूमि पौधे की टहनियों और फूलों से भर जाते हैं. इसके फूल ग्रीष्म ऋतु भर खिलते रहते हैं. यदि इन्हें छोड़ दिया जाए तो वर्षा ऋतु में भी जीवित रहते हैं.
इसके बीज बड़े बारीक होते हैं. इन्हें सतर्कतापूर्वक पौधशाला की क्यारियों में फरवरी के महीने में बो देना चाहिए तत्पश्चात् 1-2 इंच के होने पर इन्हें लगाना चाहिए. पारचूलाका का फूल सूर्य निकलने पर धूप में खिलता है और फिर शाम के समय या बादल हो जाने पर बंद हो जाता है. इसी कारण इसको ‘सनप्लांट’ भी कहते हैं. इसे प्लावरिंग पर्सलेन अर्थात् फूलवाला या फूलने वाला कुलफा भी कहते हैं.
भूदृश्यावली में पारचूलाका का उपयोग
इसका पौधा सूर्य का प्रकाश पहुंचने वाले स्थान पर लगाना चाहिए. इसके लिए मिट्टी खादयुक्त, अच्छे जल निकास वाली परन्तु नम होनी चाहिए. इसके पौधे गर्मी-सर्दी सहने की काफी क्षमता रखते हैं. पारचूलाका को बगीचों की क्यारियों में, रास्तों व खड़ंजों के किनारे, खाली स्थानों को ढ़कने के लिए तथा रॉकरी में भी लगा सकते हैं. इन्हें गमलों तथा लटकने वाली टोकरियों में भी लगाकर स्थान को सुशोभित कर सकते हैं.
सदाबहार
सदाबहार एपोसाइनेसी कुल का एक शाकीय पौधा है. अंग्रेजी में इसका नाम पेरिविंकल है. इसे सदा-सुहागिन भी कहा जाता है. इसका मुख्य कारण यह है कि यदि एक बार इसका पौधा लगा दिया जाए तो इसमें हर मौसम में वर्षभर थोड़े-बहुत फूल हमेशा खिलते रहते हैं. सदाबहार के पौधे मुख्य रूप से ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में ही फूलों से अधिक लदे रहते हैं. फिर भी वर्षभर पुष्प प्राप्त होते रहने के कारण ही अपने निवास स्थानों में जगह की उपलब्धता के अनुसार लोग इसके पौधे क्यारियों, गमलों में या अन्य उपलब्ध स्थानों पर अवश्य ही लगाए रहते हैं. वैसे तो पिंका का पौधा कई वर्षों तक चलता है, परंतु वार्षिक मौसमी पौधे के रूप में इसे केवल गर्मी के मौसम में भी लगा सकते हैं, जबकि गर्मी के मौसम में पुष्पों का प्रायः अभाव रहता है. इन्हें केवल वर्षा ऋतु के लिए भी लगा सकते हैं. विंका का फूल चपटा होता है जो 1-1.4 इंच की गोलाई में चारों ओर फैला रहता है. इसमें आमतौर पर 5 पंखुड़ियां होती हैं, जो आधार की ओर पतली और शिखा की ओर चैड़ी होती है. पंखुड़ियों के आधारिक भाग लगभग 1 इंच लंबे और 2 मि.मी. चैड़े हरे रंग के नलिकाकार डंठलों पर इस प्रकार टिके रहते हैं कि पुष्प के केन्द्र पर छोटा सा एक सुराख दिखाई देता है, जिससे पुष्प सुंदरता और बढ़ जाती है.
विकां की दो प्रमुख जातियां ‘रोजिया’ और ‘अल्वा’ हैं. विकां रोजिया के फूल गुलाबी रंग के और विकां अल्वा के फूल सफेद रंग के होते हैं. इनके पौधे 1.5-2 फुट की ऊंचाई तक बढते हैं. इसकी पत्तियां लगभग 3.5 इंच लंबी और 1.25 इंच चैड़ी, अंडाकार, चमकीली गाढ़े हरे रंग की होती है. पौधे के तने व टहनियां विकां रोजिया में गुलाबी रंग की आभा लिए होती है तथा विकां अल्बा में ये हल्के रंग (हरे) की होती है. विकां वंश की दो अन्य जातियां भी पाई जाती हैं, उन्हें भी उद्यानों में सजावट के लिए लगाते हैं. वे हैं विकां मेजर और विकां माइनर. विकां मेजर के फूल बड़े तथा गुलाबी रंग के होते हैं परन्तु ये पर्वतीय क्षेत्रों में ही अच्छे लगते हैं. हिमालय की पहाड़ियों में इसके पौधे अधिक पाए जाते हैं. विकां माइनर को अंग्रेजी में लेसर पेरिविंकल कहते हैं. इसकी जड़ों और पत्तियों का उपयोग पेचिश, डायरिया, बवासीर संबंधी रोगों में औषधि के रूप में भी किया जाता है. विकां के पौधों का प्रवर्धन बीज द्वारा होता है.
गेलार्डिया
गर्मियों के मौसम में लगाने के लिए गेलार्डिया एक ऊतक पुष्पीय पौधा है. अंग्रेजी में इसे ‘ब्लैकेट फ्लावर’ कहते हैं. यह कम्पोसिटी कुल का पौधा है. इसका वानस्पतिक नाम गेलार्डिया पलंचेला है. इसका प्रवर्धन पौधशाला में फरवरी-मार्च के महीने में बीज द्वारा किया जाता है. एक महीने के पश्चात् तैयार पौधों को क्यारियों में 9-12 इंच के अंतर पर लगानाचाहिए. इसके फूल गर्मी भर तथा लंबे समय तक फूलते हैं और प्रफुल्लित करते रहते हैं.
इसका पौधा शाकीय होता है जो 1.5 -2 फुट की ऊंचाई तक बढ़ता है. इसकी पत्तियां लंबी और हरे रंग की होती हैं. इसके फूल 2-2.5 इंच चैड़े तथा गोलाई में चारों ओर नलिकाकार कुप्पीनुमा पतली -2 असंख्य पंखुड़ियों से भरे रहते हैं. फूलों की पंखुड़ियां लालिमाचुक्त, तांबे के रंग की पीली, कत्थई, नारंगी तथा दोरंगी भी होती हैं. गैलार्डिया के फूल 2 प्रकार के होते हैं. गैलार्डिया पलचेला पिक्टा के फूल एकहरी पंखुड़ियों वाले तथा गोलार्डिया पलचेला लोरजिआना के दोहरी पंखुड़ियों वाले होते हैं. यदि इसके पौधों के सूखे फूलों को नियमित रूप से अलग करते रहें तो गर्मी के मौसम में लगाए गए गेलार्डिया के पौधे ही वर्षा ऋतु में भी अपने फूलों की सुंदरता से आनंदित करते रहते हैं. गेलार्डिया की बहुवर्षीय किस्में भी होती हैं जिनमें ग्रेंडीफ्लोरा किस्म मुख्य है. इसके पौधे क्यारियों के अतिरिक्त गमलों में, बगीचों में, रास्तों के किनारे, राॅकरी में, फूलदानों में लगाकर स्थान को सुंदर और सुशोभित कर सकते हैं. गेलार्डिया के पौधे प्रकाशयुक्त खुले स्थानों पर अधिक अच्छे चलते हैं. बहुवर्षीय पौधों को पहाड़ीनुमा भूदृश्य पर भी लगा सकते हैं.
बबीता सिंह, ऋतु जैन, एस.एस. सिंधु एवं ए. के. तिवारी
पुष्पविज्ञान एवं भूदृश्य निर्माण संभाग
भा.कृ.अ.सं., पूसा, नई दिल्ली-110012
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