उपयोग : गेंदा के फूलो का प्रयोग विभिन्न प्रकार से जैसे खुले फूलो के रूप मे माला बनाने मे, मंडप सजाने मे, पुजा करने मे, सुगन्धित तैल निकालने मे, पिगमेन्टस तैयार करने मे तथा मुर्गी के दाने के साथ खिलाने मे प्रयोग होता है.
इसके फूल एवं पत्तिया दवा एवं सुगंधित उत्पाद बनाने के कम आते है. पत्तियो की तीव्र महक मक्खियों एवं मच्छरों को भगाती है. गेंदा की सुगन्ध में एल-लेनोनेन, ओसीपेन, एल-लिनाईन एसीटेट, एल लिनालूल अफ्रीकी तथा फ्रासीसी प्रजातियों में मिलते है. गेंदा में खाने योग्य रंग भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. जैसे हैलेनीन/अन्य फसलों के साथ गेंदे को उगाने से भूमि में सुत्रकृमियों की संख्या कम होती है, या दूसरी फसलें सुत्रकृमिक के प्रभाव से बच जाती है.
अतः वैज्ञानिक तरीके से भी गेंदे की खेती करके किसान अधिक लाभ कमा सकते है.
जलवायु : गेंदे की उचित बढ़वार तथा अधिक उपज प्राप्त करने के लिए नम जलवायु की आवश्यकता है. इसके लिए अधिक व कम तापमान दोनो इसके लिए हानिकारक है. गेंदे के पौधों के लिए धूप वाली जगह उपयुक्त होती है, छाया वाली नहीं.
भूमि एंव उसकी तैयारी : बलुई एंव बलुई दोमट भूमि जिसका पी. एच. मान 6-7-5 के बीच हो तथा भूमि मे जल भराव की समस्या ना हो, गेंदे की खेती व्यवसायिक खेती के लिए उपयुक्त रहती है. भूमि को एक जुताई मिटटी पलट हल से व 2 जुताई देशी हल से करके पाटा लगा देते है, जिससे भूमि भुरभुरी हो जाये. भूमि तैयार करते समय अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 30 टन प्रति हैक्टेयर की दर से मिलानी चाहिए.
प्रजातिया एवं किस्में : गेंदा एस्ट्रेसी कुल से सम्बंधित है. इसकी लगभग 33 प्रजातियां है जिनमें मुख्य निम्न है.
1. अफ्रीकन गेंदा (टेजेटिस एरेकटा) :
इसके पौधे 80-100 सेमी. लम्बे होते है। इनकी पत्तीयां चोडी तथा फल पीले, नारंगी व सफेद रंग वाले गोलाकार होते है।
अ. कारनेशन के समान फूल वाले
ब. गुलदाउदी के समान फूल वाले
मुख्यतया कारेनेशन के समान फूल वाली नारंगी रंग की किस्में व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
2. फ्रान्सीसी गेंदा (टेजेटिस पेटुला) :
इसे फ्रेंच या जाफरी गेंदा भी कहते है। इसके पौधे 20-60 सेमी. लम्बे होते है. पत्तियां गहरी हरी व तना लाल होता है. फूलों का रंग गहरा पीला नारंगी, लाल, चित्तीदार या मिश्रित होता है.
किस्म : अफ्रीकन गेंदा
इसमे पुसा नारंगी गेंदा एंव पुसा बसन्ती गेंदा मुख्य किस्म है अन्य किस्मे के्रकर जैक, गोल्डन एज, क्राउन आफ गोल्ड एंव सनसेट जाइटे है.
फ्रांसीसी गेंदा -
इसकी प्रमुख किस्मे पुसा अर्पिता, पिटाइट आरेज, पिटाइट येलो लेमन डाप, रस्टी रेड, बटर स्काय, डबल हामोनी, रेड ब्र्रोकेड़ आदि है.
प्रर्वधन :
गेंदे मे प्रर्वधन मुख्यतः बीज द्वारा की किया जाता है जबकि शुध्दता बनाये रखने के लिए कटिंग से भी प्रर्वधन कर सकते है। एक हैक्टेयर के लिए 1-1.5 किग्रा. बीज पर्याप्त रहता है.
गर्मी की फसल के लिए जनवरी – फरवरी, वर्षा ऋतु के लिए जून – जुलाई, सर्दी की फसल के लिए सितम्बर – अक्टूबर मे बीज नर्सरी मे बोया जाता है.
इसके लिए 3 मी. लम्बाई की एक मी. चैडी एंव 15 से.मी. की क्यारी बनाते है एंव उसमे 10 कि.ग्रा/मी. दर से क्मपोस्ट खाद मिला देते है बीज बोने से पूर्व भूमि को उपचारित कर लेना चाहीए. बीजों को 6-8 सेमी. की दूरी पर तथा 2 सेमी. गहराई पर बोते है. इसके बाद बीजों को छनी हुई गोबर या पत्ती की खाद की हल्की परत से ढ़क देते है व हजारे से रोजाना आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहते है.
पौधरोपण :
प्रमुखतः बीज बुवाई के 1 माह बाद या जब पौधे मे 3-4 पत्तिया आ जाती है तो रौपाई कर देना चाहिए। पौधे नर्सरी से निकालने से 2-3 दिन पूर्व सिंचाई करनी चाहिए एंव अफ्रिकन गेंदे को 40x30 या 40x40 सें.मी. की दूरी पर रोपना चाहिए. फ्रांसीसी गेंदे को 20x20 या 30x30 सें.मी. की दूरी पर रोपना चाहिए. किस्म पूसा अर्पिता की पौधरोपण की उचित दुरी 60x45 सें.मी. है.
फ़्रान्सीसी गेंदे की किस्म :
फुनगयाना: गेंदे के पौधे से अधिक फुल लेने के लिए रोपण के 30-40 दिनो बाद मुख्य तनो की कलिका को दो पत्तियों सहित तोड देना चाहिए इसके बाद दूसरी टहनियो की तोडने से पौधे से दूसरी शाखाएँ ज्यादा निकलती है जिससे अधिक फूल प्राप्त होते है.
सिंचाई: गर्मियो मे 3-5 दिन के अन्तराल पर व सर्दियो मे 7-15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिचाई करनी चाहिए।.
पोषक तत्व: गेंदे की अच्छी फसल के लिए 20 टन अच्छी सडी गोबर की खाद, नत्रजन 150-200 कि.ग्रा., फास्फोरस 80 किग्रा एंव पोटाश 80-100 किग्रा / हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. इसमे नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा भूमि की तैयारी के समय व शेष मात्रा 30-40 दिनो बाद मिलाना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण :
गेंदे में 2-4 बार खरपतवार निकालना तथा 2-4 बार खेत की गुडाई करनी पड़ती है।
फूल उत्पादन का समय :
ग्रीष्म कालीन फसल मे मई के मध्य में पुष्पन प्रारंभ हो जाता है। वर्षा कालीन फसल सितंबर से मध्य में व शीतकालीन फसल मे मध्य जनवरी से फूल आने लगते है.
पूलों की तुडाई :
खिले हुए फूल सुबह या शाम को तोडकर बांस की टोकरीयों मे पैक करके दूरस्त या स्थानीय बाजार मे भेजना चाहिए.
उपज :
फ्रान्सीसी गेंदे मे 10-12 टन प्रति हैक्टेयर फूल प्राप्त हो जाते है.
उपरोक्त फसलो मे लगने वाले कीट एंव बीमारीया निम्न है।
कीट नियन्त्रण :
1. कीट : लीफ माइनर – नियन्त्रण : ट्राइजोफास 0.05 प्रतिशत
2. कीट : हैयरी कैटरपिलर लीफ हाफर – नियन्त्रण : क्लोरोपायरीफास 2 मि.ली/ली.
3. कीट : रेड स्पाइडर माइट – नियन्त्रण : रोगोर 1 मि.ली./ली.
4. कीट : बड बोरर - नियन्त्रण : मिथाइल पैराथीयान 0.05 प्रतिशत
5. कीट : सफेद मक्खी - नियन्त्रण : मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत 2-2.5 मि.ली./ली.
6. कीट : एफिड - नियन्त्रण : इमिडा क्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 5 मि.ली./ली.
7. कीट : थ्रिप्स - नियन्त्रण : डायमीथोयेट 0.05 प्रतिशत 10 दिन के अन्तर पर
1. बीमारी - डैम्पिंग आफॅ - नियन्त्रण : मैन्कोजेब 3-4 ग्राम/कि.गा्र. बीज की दर से उपचारित करे
2. बीमारी - लीफ स्फाट एव झुलसा - नियन्त्रण : डाइथेन एम-45 2 ग्राम/ली. का घोल का छिडकाव करें
3. बीमारी - पाउड्री मिल्डयू - नियन्त्रण : घुलनशीन सल्फर 0.3 प्रतिशत का घोल का छिडकाव करें
डॉ. राकेश कुमार शर्मा एवं डॉ. अनुज कुमार, उद्यानिकी महाविद्यालय, मंदसौर (म.प्र.) - 458002
Dr. Rakesh Kumar Sharma
Assistant Professor
Department of Vegetable Science,
College of Horticulture (RVSKVV),
Mandsaur (MP) 458001
Mobile No. – 09630010296
Email : [email protected]
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