आम (Anacardiaceae) परिवार का बहुवर्षीय फलदार पौधा है भारत में आम की बागवानी मुख्य फल-फसल के रूप में की जाती है आम के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है देश में 2,309 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्र में आम की खेती की जा रही है जिससे 12750 हज़ार मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है कुल उत्पादन का 42.2 % भारत में होता है मुख्य आम उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, बिहार, गुजरात व तमिलनाडु है उत्तर प्रदेश में आम का सर्वाधिक उत्पादन (23.86%) होता है आधुनिक तकनीक व आम की नई संकर प्रजातियों का उपयोग कर किसान भाई अपने बागों से अधिक मुनाफा व गुणवत्ता युक्त उत्पादन लम्बे समय तक ले सकते है|
आम की संकर किस्म के पौधे शीघ्र ही फल देना शरू कर देते है और इनका फैलाव (canopy)भी कम होता है इस कारण इन्हें सघन बागवानी में भी लगाया जा सकता है संकर किस्मो में नियमित फल आते है जबकि देश में उगाई जाने वाली पुरानी किस्मो में तीसरी साल फल आते है
आम के फल पकने के बाद जल्दी ही खराब होने लगते है और बाजार में भरमार (glut) होने के कारण किसान भाइयो को कम दाम पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है I इन संकर प्रजातियों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है संकर किस्म के बाग लगा कर किसान अधिक मुनाफा ले सकते है
जलवायु: आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में अच्छी प्रकार की जाती है | 600 मी. की ऊचाई तक आम के बाग व्यवसायिक रूप में लगाए जा सकते है. आम के लिए 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उत्तम होता है फूल आने के समय अगर बरसात हो जाय तो फल कम सेट होते है और कीट व बीमारी भी फसल को अधिक हानि पहुचाते है.
संकर किस्में
आम्रपाली (Amrapali) – यह दशहरी और नीलम के क्रॉस से बनी संकर प्रजाति है। यह नियमित रूप से फलने वाली बोनी किस्म है। इस के फल जुलाई के अंतिम सप्ताह में पकने लगते है फल गूदेदर व पतली गुठली वाले होते है आम्रपाली ग्रह वाटिका (kitchin garden) में लगाने के लिये उपयुक्त आम की प्रजाति है एक हेक्टेयर में इसके 1600 पौधे उगाए जा सकते हैं.
मल्लिका (Mallika) – यह नीलम और दशहरी के क्रोस से तैयार किस्म है फल बड़े आकार के व मोटा गुदा लिए हुए स्वादिष्ट होते है फल मध्य जुलाई में पकने शुरु होते है इस किस्म की खेती दक्षिणी भारत में अधिक की जाती है भारत से इस किस्म के फलो का निर्यात अमेरिका तथा खाड़ी देशो को किया जाता है.
पूसा अरुणिमा (Pusa Arunima) - इसके फल बड़े आकर के लालिमा लिए आकर्षक होते है यह देर से पकने वाली किस्म है इसके फल अगस्त के पहले सप्ताह में तोड़े जाते है I फलो मे मध्यम मिठास (19.5 % कुल घुलनशील पदार्थ TSS) होती है पके फलो को सामान्य कमरे के तापक्रम पर 10-12 दिन तक आसानी से रखा जा सकता है.
पूसा लालिमा (Pusa Lalima) - यह नियमित फलन और शीघ्र पकने वाली किस्म है इसके फल लाल रंग के बहुत ही आकर्षक होते है जून के पहले सप्ताह में फल पकने प्रारंभ हो जाते है.
पूसा प्रतिभा (Pusa Pratibha) - यह हर वर्ष फल देने वाली प्रजाति है इसके फल जुलाई के पहले सप्ताह में पकने शुरु हो जाते है फलो में अच्छी सुगंध व गूदा लाल रंग का होता है.
पूसा श्रेष्ट (Pusa Shreshth) - यह हर वर्ष फलने वाली किस्म है इसके फल आकर्षक सुगंध व लाल रंग लिए लम्बाकार होते है जिनमे 20.3 % कुल घुलनशील पदार्थ होता है फल जुलाई के पहले सप्ताह में पकने आरम्भ हो जाते है.
पूसा सूर्या (Pusa Surya) - इसके फल मध्यम आकर के पीले रंग पर लाल रंग की आभा लिए होते है फल मीठे (19.5 % कुल घुलनशील पदार्थ) व मनमोहक सुगंध वाले होते है फलो का गूदा मोटा होता है व 15 जुलाई में पकने शुरु हो जाते है यह हर साल फल देने वाली प्रजाति है इस किस्म की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है.
पूसा पीताम्बर (Pusa Peetamber) - फल माध्यम आकार के व पकने पर मनमोहक पीले रंग के हो जाते है I इस किस्म में गुच्छा रोग ( Mango Malformation) कम लगता है.
ये सभी हाइब्रिड किस्मे भारतीय कृषि अनुसंधन संस्थान नई दिल्ली ने तैयार की है
अर्का अरुणा (Arka Aruna)- यह नियमित फल देने वाली बोनी किस्म है | इस प्रजाति को बंगनपल्ली व अलफांसो के संकरण से विकसिता किया गया है इसके फल मीठे ( 20 % कुल घुलनशील पदार्थ) व लालिमा लिए होते है फलो का गूदा पीले रंग का व रेशा रहित होता है.
अर्का अनमोल (Arka Anmol)- यह अलफांसो व जनार्धन पसंद के क्रॉस से तैयार की गई किस्म है | फल सुनहरे पीले रंग के लंबाकार होते है फलो में मध्यम मिठास ( 19 % कुल घुलनशील पदार्थ) होता है इसमें फलत प्रति वर्ष होती है यह किस्म सघन बागवानी के लिए उपुक्त है.
अर्का नील किरण (Arka Neelkiran)- आम की यह किस्म अलफांसो व नीलम के संकरण से विकसित की गई है | फल का गूदा गहरे पीले रंग का होता है इस किस्म के फल अंडाकार व 270-280 ग्राम वजन के होते है पकने पर फल सुनहरे पीले रंग के हो जाते है.
अर्का पूनीत (Arka Puneet)- यह किस्म अलफांसो व बंगनपल्ली के संकरण से तैयार की गयी है इसके फल पकने पर पीले रंग के लालिमा लिए होते है फल मीठे ( 21% कुल घुलनशील पदार्थ ) व रेशा रहित अंडाकार होते है.
ये सभी किस्मे भारतीय कृषि अनुसंधान, बेंगलोर द्वारा संतुत की गयी है .
अरुणिका (Arunika)- इस किस्म के फल मध्यम आकार के आकर्षक लाल रंग लिए होते है | फल मीठे (24.6 % कुल घुलनशील पदार्थ) व गूदा नारंगी पीले रंग का होता है | यह आम्रपाली व वनराज के संकरण से तैयार नियमित फलन देने वाली प्रजाति है.
अंबिका (Ambika)- यह किस्म अम्रपाली व जनार्धन पसंद के संकरण से विकसित की गई है | फल बहुत ही आकर्षक पीले रंग के लालिमा लिए होते है यह नियमित व देर से पकने वाली प्रजाति है | इस किस्म के फल लम्बोत्तर अंडाकार व 300-350 ग्राम वजन के होते है | फलो में 21 % कुल घुलनशील पदार्थ पाया जाता है.
सी.ई.एस.एच.-एम-2 (CISH-M-2)- यह दशहरी व चोसा के संकरण से विकसिता किस्म है. इसके फल चिकने व पकने पर पीले हरे के हो जाते है | गूदा पीले रंग का व 23 % कुल घुलनशील पदार्थ, TSS होता है | फल देखने में दशहरी जैसे होते है परन्तु दशहरी से 15 दिन बाद पकते है.
ये किस्मे केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान , लखनऊ उत्तर प्रदेश द्वारा तैयार की गयी है
सिन्धु (sindhu)- यह नियमित फलत फलत देने वाली किस्म है इसके फलो में गुठली बहुत पतली व छोटी होती है फल माध्मय आकार के रेशा रहित होते है
रत्ना (Ratna)- आम की इस किस्म को नीलम व अलफांसो के संकरण से तैयार किया गया है इसके फल आकर्षित व स्पोंजी टिश्यू रहित होते है
ये प्रजातिया कोंकण कृषि विद्यापीठ, महाराष्ट्र द्वारा जारी की गयी है
गड्ढों की तैयारी
आम के पौधे लगाने के लिए मई महीने में 1 x 1 x 1 मी. आकार के गड्डे खोद ले अगर मिट्टी उपजाऊ हो तो 60 x 60 x 60 सेमी. आकर के गड्ढे पर्याप्त होते है गड्ढो में 30 - 40 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्रा. NPK (12:32:16 मिश्रण) को मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला कर भर दे पानी में 2 मिली. क्लोरोपाइरिफास व 2 ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर मिला कर सिचाई कर दे ताकि दीमक व फफूंदी जनित बीमारी न फैले I गड्ढे से गड्ढे की दूरी 8-9 मीटर रखे परन्तु आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर से अधिक न रखे I
पौधा रोपण (Plantation)
पौधों को मध्य जुलाई से अगस्त महीनें में पहले से तैयार गड्ढे के बीच में लगाए | यदि गडढे पहले से तैयार नहीं भी किये है तो सीधे खेत में नक़्शे (layout plan) के अनुसार निशान लगा कर पौधे रोपित कर सकते है पौधे सायंकाल में लगाये व लगाने के बाद हल्की सिचाई करे I जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है वहाँ पौधे रोपण बरसात के आखिर या सितम्बर में करें
खाद एवं उर्वरक
बाग लगाने के एक साल बाद प्रति पौधा 200 ग्राम यूरिया ,300 ग्राम सिंगल सुपर फोसफेट, 200 ग्राम पोटेशियम सल्फेट व 25 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद जुलाई में पेड़ के चारो तरफ बनाये गये थालो में डालकर मिट्टी में मिला देनी चाहिए | दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, पोटाश तथा फास्फोरस अक्टूबर महीने तक दे देनी चाहिए I दस वर्ष का पेड़ होने पर यह मात्रा 2.0 किग्रा यूरिया, 3.0 किग्रा सिंगल सुपर फोसफेट, 2.0 किग्रा पोटेशियम सल्फेट व 25 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद देनी चाहिए | दस साल बाद यह मात्रा स्थिर कर देनी चाहिए इसके बाद यही मात्रा प्रति वर्ष दे | आम के पेड़ो पर फूल आने से पहले व फल बन जाने के बाद सूक्ष्म पोषक तत्व (Multiplex) 3-4 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकव करे |
सिंचाईं (Irrigation)
आम के छोटे पौंधों को गर्मी के मोसम में 4 – 5 दिन के बाद सिचाई करे I सर्दियों में पाले से बचाने हेतु 8-10 के अन्तराल से सिचाई करे| अक्टूबर महीने के बाद मिट्टी में अधिक नमी होने से फूल कम पैदा होते है और वानस्पतिक वृद्धि (Vegetative growth) ज्यादा, इसलिए फल देने वाले पौधों में अक्टूबर से जनवरी तक सिचाईं नहीं करनी चाहिए |
पाले व ठंड से बचाव
संकर आम के पौधों को पाले से बचाव हेतु 25 दिसम्बर से 30 जनवरी तक पुराली या पोलीथीन चादर से ढक कर रखे I पूरब दिशा से पोलीथीन थोडा खोल कर रखे ताकि प्रात: काल का सूर्य का प्रकाश पौधों को मिल सके |
कटाई-छंटाई (Pruning)
रूट-स्टॉक से निकलने वाली सभी शाखाओं को काट देना चाहिए | ऐसी शाखाएं जो जमीन के संपर्क में हो, रोग ग्रसित हो, सूखी हुई, अधिक घनी व एक दूसरे पर चढ़ी हो तो काट कर अलग कर देना चाहिए | कटे हुए भाग पर कॉपर सलफेट व चूने का पेस्ट बना कर लेप कर दे |
खरपतवारो का नियंत्रण (Weed Control)
आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा जुताई करते रहना चाहिए इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते है जुताई अधिक गहरी ना करे इससे पौधों की जडो को नुकसान पहुच सकता है | बाग में खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (glyphosate) खरपतवारनाशी 5-6 मिली. व 50 ग्राम यूरिया प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर खरपतवारो पर छिडकाव कर सकते है किसान भाई इस बात का ध्यान रखें की छिड़काव आम के पौधों पर न गिरे I खरपतवारनाशी छिड़कने से पहले छोटे पौधों को पोलीथीन चादर से ढक दे |
फलो का झड़ना :
आम के फलों का छोटी अवस्था में ही पौधे से टूट कर गिर जाना एक बड़ी समस्या है इसकी रोकथाम के लिए जब फल मटर के दाने के आकार के हो जाये तो एन.ए.ए (Napthalene Acetic Acid) का 40-50 पी.पी.एम. का पानी (40-50 मिलीग्राम/लीटर) में घोल बनाकर छिड़काव करे|
रोग और नियंत्रण (Disease and Control)
चूर्णिल आसिता (powdery mildew)- इस रोग से सबसे अधिक नुकसान फूल अवस्था पर होता है फूल व पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है जिससे फूल खराब हो जाता है इसकी रोकथाम के लिये ब्लैटोक्स (Blitox-50) 3-4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर फूल खिलने से पहले व बाद में 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिडकाव करे I
एंथ्रेकनोज (Anthracnose)
इस रोग का आक्रमण होने पर फूल ,फल व नई शाखाओं पर गहरे काले रंग के चकते दिखाई देते है संक्रमित भाग सूख जाता है इसके नियन्त्रण के लिये कार्बेन्डजीम (Bavisitin) 1-2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें I
डाई बैक (Die back)
इस रोग से ग्रसित पौधा ऊपर से नीचे की तरफ सूखना शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे पौधा मर जाता है | रोगी शाखाओ की कटाई रोगी स्थान से 15-20 सेमी. नीचे से करे I कटे हुए भाग पर नीलेथोते व चूनें (copper sulphate + Lime, 50:50) का पेस्ट बना कर लेप कर दे |
भुनगा फुदका कीट (Mango hopper)
यह भूरे रंग का कीड़ा होता है जो आम के फूलो एवं नई पत्तियों से रस चूसता है इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपायरोफोस (chlorpyrifos) 2 मिली./लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव करे I
मीली बग (Mealy Bug)
इस कीट का प्रकोप फरवरी से मई तक अधिक होता है | ये नई टहनियो व फूलो के डंठलो से चिपके रहते है ओर रस चूसते रहते है | सफेद रंग की मादा अप्रैल मई में पौधों से उतर कर मिट्टी में अंडे देती है अंडे से बच्चे निकल कर जनवरी के पहले सप्ताह में पेड़ो पर चढ़ना शरू कर देते है इसके नियंत्रण के लिए अक्टूबर-नवम्बर महीने में बाग की जुताई कर क्लोरोपईरीफ़ास चूर्ण 200 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारो ओर मिट्टी में मिला दे | दिसम्बर के आखरी सप्ताह में तने पर पोलीथीन की 25 सेमी चोडी पट्टी मिट्टी से 1-1.5 फुट की ऊचाई पर बांध दे व दोनों किनारों पर ग्रीस लगा दे | यदि कीट पेड़ पर चढ़ गए हो तो एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 2 छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए |
तना छेदक (Stem borer)
इस कीट की गिडार/सुंडी आम के बड़े पौधों में सुराख़ बना कर तने के अन्दर घुस जाती है और तने को खा कर खोकला कर देती है जिससे पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है इसकी रोकथाम के लिये प्रभावित शाखाओ को कीड़े सहित काट कर अलग कर देना चाहिए ओर सुराखो में एल्युमीनियम फास्फाइड (Sulphas) की गोली डालकर ग्रीश से बंद कर देना चाहिए या क्लोरोपायरोफोस (chlorpyrifos) से उपचारित करे | खुले भाग पर कॉपर सल्फेट व चूने का पेस्ट बना कर लगाये
फल मक्खी (Fruit Fly)
जब फल पकने वाले होते है तो यह मक्खी फल के अन्दर अंडे दे देती है जिससे लार्वा निकल कर गूदे को खाने लगता है और फल सड़कर जमींन पर गिर जाते है इन सभी खराब फलो को जमीन के अन्दर दबा देना चाहिए I इसकी रोकथाम के लिये मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग करेI ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दे तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल दे I मेलाथियान (Malathion) कीटनाशी 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव से फल मक्खी पर नियंत्रण पाया जा सकता है
फलों की तुड़ाई (Harvesting)
आम की परिपक्व फलो की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करनी चाहिए, जिससे फलो पर स्टेम राट बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है | तुड़ाई के समय फलों को चोट व खरोंच न लगने दें तथा मिट्टी के सम्पर्क से बचाये
उपज (yield)
संकर आम के पौधे तीन साल बाद फल देना शुरु कर देते है तीसरे वर्ष 5-6 फल मिल जाते है 6-7 साल बाद व्यावसायिक उत्पादन मिलना शुरु हो जाता है दस साल बाद 300 से400 फल प्रति पेड़ मिलने शुरु हो जाते है
डॉ. संजय सिरोही व डॉ. मनीष श्रीवास्तव
फल एवम औधानिकी प्रोधोगिकी संभाग
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान
नई दिल्ली-110012
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