इस सीजन में तैयार होने वाले फलों जैसे बेर, किन्नू, लोकाट, इलायची, मौसम्बी सहित अंगूर के बाग और खेत भी तर-बतर हो चुके हैं. आज हम पाठकों को हमारे इस खास लेख में रबी सीजन में उपजने वाले फलों और उनकी देखभाल करने के तरीकों से रूबरू करवाएंगे-
बेर – यह फल देशभर में लोकप्रिय है. बनारसी कड़ाका, उमरान, कैथली, काला गोरा और गोला बेर की प्रमुख किस्में है. ये किस्में व्यावसायिक बागवानी के लिए उपयुक्त मानी जाती है. फल के एक वयस्क वृक्ष पर बेर के फूल अक्टूबर-नवंबर में आने शुरू होते हैं, जो दिसंबर तक फल का आकार ले लेते हैं. सामान्यतः बेर का फल फरवरी-मार्च तक पककर तैयार हो जाता है. बेर का बाग रेतीली, दोमट, कंकरीली या चिकनी मिट्टी में लगाया जा सकता है.
बेर की बंपर पैदावार के लिए किसान अपनाएं ये नुस्खे-
बागवानी और बंपर पैदावार के लिए किसानों को कायिक विधि से तैयार बेर के पौधे ही रोपने चाहिए. समय-समय पर किसान पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए कटाई छंटाई कर सकते हैं. बागों से फलों की बंपर पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान प्रतिवर्ष फलों के सीजन से पहले गोबर खाद का 1/2 यूरिया मिलाकर प्रयोग पौधों की आयु के अनुसार कर सकते हैं. मक्खी, छाल खाने वाली सुंडी और फफूंद बेर के फल व पौधे पर होने वाले प्रमुख रोग हैं. इनकी रोकथाम के लिए बागवान बाजारों में उपलब्ध कीटनाशक प्रयोग कर सकते हैं.
मौसम्बी - यह फल मौसमी या मुसम्मी के नाम से भी जाना जाता है. चिकित्सक मौसम्बी के जूस को रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसके सेवन की सलाह देते हैं. इस फल की तीन प्रमुख प्रजातियां जुमैका, माल्टा और नेवल हैं. उत्तर से लेकर दक्षिण और मध्य भारत की जलवायु इस फल की बागवानी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है. मौसम्बी की खेती के लिए बलूही दोमट के साथ केबाल जिसे सामान्य मिट्टी कहा जाता है, सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है. हालांकि किसी भी मिट्टी में इसके पौधे आसानी से फल दे सकते हैं.
मौसम्बी की बंपर पैदावार के लिए किसान अपनाएं ये नुस्खे-
मौसम्बी की खेती के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहना आवश्यक है. तीन साल का पौधा होने पर यह फल देने लगता है. पौधे की उम्र पांच वर्ष होने पर किसान एक पेड़ से 20 से 50 किलोग्राम फल प्राप्त कर सकते हैं. किसानों को पौधे लगाने के लिए बाढ़ ग्रस्त इलाकों से बचना चाहिए. पौधे और फलों को मक्खी, सिल्ला, लिंफ और इल्ली जैसे कीटों से बचाने के लिए किसान बाजार में उपलब्ध कीटनाशक प्रयोग कर सकते हैं. बंपर पैदावार के लिए किसान समय-समय पर बागों में वर्मी या कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं.
अंगूर – भारत अंगूर उत्पादन में विश्व में प्रथम है. व्यावसायिक रूप से अंगूर की खेती महाराष्ट्र में व्यापक रूप से की जाती है. अनब-ए-शाही, बैंगलोर ब्लू, भोकरी, गुलाबी, काली शाहबी, परलेटी, थॉम्पसन सीडलेस और शरद अंगूर की प्रमुख किस्में हैं. अंगूर की कटिंग कलमों या बेलों की रोपाई के लिए कंकरीली, रेतीली, चिकनी या उथली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. जनवरी माह अंगूर की कलमों या बेलों की रोपाई के लिए उपयुक्त माना जाता है.
अंगूर की बंपर पैदावार के लिए किसान अपनाएं ये नुस्खे-
अंगूर की बेलों को साधने और फल आसानी से प्राप्त करने के लिए पण्डाल, टेलीफोन और बाबर पद्धितियां प्रचलित हैं. पण्डाल पद्धति के द्वारा बेलों को साधने के लिए लगभग 2.5 मीटर लंबे खंभों पर तारों का जाल लगाया जाता है. इन खंभों के सहारे होते हुए अंगूर की बेल जालों पर फैल जाती है. बेलों से अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए किसानों को कटाई-छटाई करना आवश्यक है. छटाई के तुरंत बाद किसान सिंचाई करें. शर्करा में वृद्धि और अम्लता में कमी अंगूर के गुच्छों को तोड़ने का सही समय होता है. अंगूर का एक बार बाग लगाने पर किसान 20-30 वर्ष तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
लोकाट- यह सदाबहार फल माना जाता है. लोकाट फल के बागों को भारत की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है. पहाड़ी राज्यों में भी इसके पौधे आसानी से बढ़ सकते हैं. बड़ा आगरा, फायर बॉल, कैलिफोर्निया एडवांस, सफेदा, मैचलेस और तनाका लोकाट की प्रमुख किस्मे हैं. लोकाट के उत्पादन के लिए सामान्य उपजाऊ भूमि उपयुक्त मानी जाती है.
लोकाट में बंपर पैदावार के लिए किसान अपनाएं ये नुस्खे-
लोकाट फल की बागवानी के लिए पहले खेत की गहरी जुताई करें फिर इसे समतल करें. पौधों को प्रति 6-7 मीटर फासले पर लगाना उत्तम है. विशेषज्ञ लोकाट के बीज या पौधरोपण के लिए सितंबर-अक्टूबर का माह श्रेष्ठ मानते हैं. पौधों के पत्ता लपेट सुंडी, चेपा, फंगस आदि कीटों से बचाव के लिए किसान बाजार में उपलब्ध कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं. पौधा लगाने के तीन वर्ष बाद किसान इनसे फल प्राप्त कर सकते हैं. फलों का औषत उत्पादन 7-10 क्विंटल प्रति एकड़ (95-96 पौधों से) होता है.
किन्नू- यह नींबू वर्ग की प्रजाति का फल है. उत्तर भारत में पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश किन्नू के प्रमुख उत्पादक राज्य है. इसकी खेती चिकनी-दोमट, रेतीली-दोमट या तेजाबी मिट्टी में की जाती है. पीएयू किन्नू-1, डेजी किन्नू की प्रमुख किस्में मानी जाती हैं. किसान अंतर फसली के तौर पर किन्नू के बागों में मूंग, उड़द, चना की फसलों को भी आसानी से उगा सकते हैं.
किन्नू में बंपर पैदावार के लिए किसान अपनाएं ये नुस्खे-
किन्नू के बीजारोपण के लिए किसान खेत की पहले अच्छी तरह से जोताई करें और फिर इसे समतल करें. बागवान इसकी बिजाई मॉनसून की शुरूआत से लेकर मॉनसून के अंत तक कर सकते हैं.
अच्छी पैदावार के लिए किसान 210 पौधे प्रति एकड़ लगा सकते हैं. पौधों के विकास के समय कटाई-छटाई न करें. रोग प्रभावित, मुरझाई टहनियों को समय-समय पर हटाते रहें. पौधों के विकास के लिए फलों की बंपर पैदावार के लिए किसान 2-3 हफ्तों के फासले पर बाग में पानी देते रहें. जूं, बग, चेपा और सिल्ला फसल को होने वाले प्रमुख रोग हैं. इससे बचाव के लिए किसान कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं.
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