भारत में प्याज का सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान है। यह फसल मुख्यतया बीज द्वारा उगायी जाती है। गुजरात, राजस्थान तथा हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में यह खरीफ मौसम में गंठियों द्वारा उगाई जाती है। गुजरात में भावनगर (महुआ एवं तलाजा) तथा राजस्थान के अलवर (खैरथल) जिले में गंठियों को पैदा करते हैं जो अपने लिए तथा देश के अन्य भागों में प्रयोग होती है। किसान प्रायः गंठियाँ उगाने में सावधानियाँ नही लेते हैं जिससे अच्छी गंठियाँ नहीं पैदा कर पाते। बड़ी-बड़ी गंठियों के प्रयोग करने से फटी, जुड़वाँ तथा डण्डलों वाली खराब गांठे पैदा होती है फलतः बाजार भाव कम मिलने के साथ-साथ उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है।
प्याज उत्पादकों को गुजरात तथा राजस्थान से महंगी गंठियों के मंगाने की अपेक्षा अपने यहां ही औसत आकार की सस्ते दरों पर गंठियाँ तैयार करके अच्छे गुणों वाली प्याज पैदा करना चाहिए। अच्छी गंठियाँ तथा उनके द्वारा अच्छी पैदावार के लिए निम्नलिखित कृषि क्रियायें करनी चाहिए।
गंठियाँ पैदा करने की उन्नत विधि: एग्रीफाउन्ड डार्क रेड प्याज की एक ऐसी किस्म है जो खरीफ में प्याज पैदा करने के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह प्रजाति बीजों द्वारा गांठे पैदा करने के लिए उपयुक्त है। इनकी गांठे गोल आकार की गहरे लाल रंगा की होती है।
बीज की मात्रा व बुवाई का समय: 7 से 8 कि.ग्रा. बीजा 500 वर्ग मीटर में बोने के लिए पर्याप्त होता है। इससे प्राप्त गंठियाँ एक हैक्टेयर की रोपाई के लिए पर्याप्त होती है। 15 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से बीज को मध्य जनवरी से फरवरी के प्रथम सप्ताह तक क्षेत्र के अनुसार बुवाई करने से अधिक एवं उत्तम गंठियाँ प्राप्त होती है। महाराष्ट्र में 11.5 डिग्री सेंगे से 29.4 डिग्री सेंगे वाले तापमान में अच्छी गंठियाँ तैयार हुई। (5 जनवरी से 25 जनवरी के बीच बुवाई)
बीज की बुवाई: बीज की बुवाई मिट्टी की किस्म के आधार पर उभरी हुई अथवा समतल क्यारियों में कतारों में अथवा छिटकवां विधि से करनी चाहिए। पौध को आर्द्रगलन रोग से बचाने के लिए बीज को थाइरम नामक दवा से 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बुवाई से पूर्व उपचारित करके बोना चाहिए। नर्सरी की मिट्टी को भी उपरोक्त दवा से (4-5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) या ट्रायकोडर्मा विरीडी नामक उपयुक्त फफूँद की पाउडर (0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से 25 गुना छनी हुई देसी खाद या छनी हुई नम मिट्टी में मिलाकर) से उपचारित कर लेना चाहिए।
आगे की अन्य सभी क्रियाएं जो प्याज नर्सरी उत्पादन के लिए करते हैं गंठियांे के उत्पादन में भी वही क्रियाएं करते हैं। पौध को अप्रैल-मई तक क्यारियों में रखतें हैं। लगभग बुवाई से 50-60 दिन बाद पौध में गांठे बनना प्रारम्भ होती है। जब गंठियों का आकार 1.5 से 2 सेमी तक हो जाता है सिंचाई बन्द कर देते हैं। जब पौधे का ऊपरी भाग पीला पड़कर गर्दन से गिर जाता है तो गंठियों की तने सहित खुदाई करके 1.5 सेमी से 2 सेमी की गंठियों को छाँटकर हवादार घर में पत्तियों सहित बण्डल बनाकर जुलाई- अगस्त तक भण्डारित करते हैं। गंठियों की खुदाई के 10 दिन और 20 दिन पहले 0.1ः कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करने से भण्डारण में गंठियों के सड़ने-गलने का प्रमाण कम हो जाता है। सामान्यतः 1.5 सेमी से छोटी गंठियाँ अंकुरण के समय ही नष्ट हो जाती हैं या सड़ जाती है। 2 सेमी से बड़े आकार की गंठियों से डबल (दुफाड) और डन्ठलयुक्त फसल की अधिक संभावना रहती है तथा उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है। 1.5 से 2 सेमी आकार की गंठियाँ लगाने से लागत कम और गुणवत्ता युक्त उत्पादन अधिक मिलता है।
गंठियों द्वारा खरीफ प्याज पैदा करने की विधि: मिट्टी का चुनाव: दोमट और मटियार दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास अच्छा हो उपयुक्त होती है। बलुअर दोमट मिट्टी में पैदावार कम मिलती है।
खेती की तैयारी: 4-5 जुताइयाँ करके पाटा चलाकर खेत को समतल करके खेत को नालियों तथा मेड़ों में विभाजित कर लेते हैं। एक मेंड़ से दूसरे मेंड़ की दूरी यथा-संभव (30-40 सेंमी) रखते हैं। समतल क्यारियों में भी गंठियों को लगाते हैं।
गंठियों की मात्रा: एक हैक्टेयर खेत की रोपाई के लिए औसत आकार (1.5 से 2.0 संेमी.) की 20-22 कुन्तल गंठियों की आवश्यकता होती है।
खाद एवं उर्वरक: 50 टन देसी खाद, 200 किग्रा किसान खाद (कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट) या 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सुपर फाॅस्फेट तथा 100 किलोग्राम म्युरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर के हिसाब से खेत की तैयारी करते समय (मेड़े बनाते समय) अच्छी प्रकार से भूमि में मिला देते हैं। 75 किग्रा यूरिया या 150 किग्रा. किसान खाद, 250 किग्रा सिंगल सुपर फाॅस्फेट तथा 85 किग्रा. म्युरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करनाल क्षेत्र के लिए सर्वोंत्तम पाया गया है।
गंठियों की रोपाई की दूरी: अच्छी पैदावार के लिए गंठियों को मेड़ों के दोनो तरफ 10 सेमी दूरी पर लगाते है। समतल क्यारियों में 15 सेमी ग 10 सेमी दूरी पर गंठियाँ लगाते हैं।
गंठियों की रोपाई का समय: गठियों की रोपाई 10 से 15 अगस्त तक कर देनी चाहिए जिससे अगेती फसल 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक प्राप्त हो जाए। रोपाई 15 सितम्बर तक करके उपलब्धता 15 दिसम्बर तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन इस समय खरीफ की मुख्य फसल निकलने से प्याज की कीमट कम आती है और आर्थिक लाभ कम हो सकता है।
फसल की देखभाल: प्याज के पौधों की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है। अतः अधिक गहराई तक गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। अच्छी फसल के लिए 2-3 बार में खरपतवार निकालने की आवश्यकता होती है। खरपतवार नाशक दवा का भी प्रयोग किया जा सकता है। गोल 1 मीटर या स्टाॅम्प 3.5 लीटर प्रति हैक्टेयर रोपाई के तीन दिन बाद या रोपाई के ठीक पहले 800 लीटर पानी में डालकर जमीन पर छिड़काव करने से खरपतवार खत्म करने में मदद मिलती है। खरपतवार नाशक दवा डालने पर भी 40-45 दिनों के बाद एक बार खरपतवार हाथ से निकालना आवश्यक होता है। सिंचाई समय पर आवश्यकतानुसार करते हैं। जिस समय गाँठे बढ़ रही है उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं। पानी की कमी के काराण गाँठे अच्छी तरह से नहीं बढ़ पाती और इस तरह से पैदावार में कमी हो जाती है। प्याज की फसल में फव्वारा सिंचाई या ड्रिप सिंचाई से प्याज की उपज एवं गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
खड़ी फसल में खाद देना टापड्रेसिंग: रोपाई के चार सप्ताह बाद लगभग 200 किलो किसान खाद या 100 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से छिटकवां विधि से मिला देते हैं। यदि किसान खाद का प्रयोग किया जाता है तो खाद डालने के बाद सिंचाई करना चाहिए परन्तु यूरिया का प्रयोग सिंचाई के बाद करते हैं। यूरिया डालने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। 150 किलो यूरिया या 300 किलो किसान किसान खाद करनाल क्षेत्र के लिए उपयुक्त पाई गई है। उपरोक्त खाद की मात्रा दो बराबर भागों में रोपाई के 30 से 45 दिन के अन्तर पर देना चाहिए। पैदावार बढ़ाने के लिए जस्त, ताम्र और बोरोज जैसे सुक्ष्म तत्वों का प्रयोग भी उपयुक्त होता है।
पौध संरक्षण: फसल को थ्रिप्स नामक कीड़े से बचाने के लिए मैलाथियान 1 मिली अथवा डेल्टामेथ्रिन (0.95 मिली प्रति लीटर पानी में) या सायपरमेथ्रिन (10 इ.सी.) 1 मिली/लीटर से छिड़काव करना चाहिए। छिड़कने वाले घोल में चिपकने वाले द्रव जैसे सण्डोविट 0.05: की दर से अवश्य मिलाएं। कार्बनिक खेती के लिए नीमयुक्त कीट नाशकों का प्रयोग उपयुक्त होता है। यदि आर्द्रगलन बीमारी का प्रकोप होता है तो 0.2: थाइरम के घोल से मिट्टी को नम कर देना चाहिए।
पर्पल ब्लाच (बैगनी धब्बा) तथा स्टेमफीलियम (झुलसा) रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब 2.5 ग्राम क्लोरोथेलोनी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-15 दिनों के अन्तर पर छिड़काव करें। छिड़कने वाले घोल में चिपकने वाला पदार्थ जैसे ट्राइटोन या सॅण्डोविट अवश्य मिलाए। उपरोक्त कीट एवं बीमारियों में दोनों दवाए एक साथ मिलाकर छिड़क सकते हैं। प्याज की खुदाई से 15-20 दिन पूर्व दवा का छिड़काव बन्द कर देना चाहिए।
प्याज की खुदाई एवं सुखाना: लगभग 2.5 से 3 माह में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। किन्तु सर्दी का मौसम होने के कारण इनकी पत्तियाँ स्वयं रबी मौसम की भांति नहीं गिरती है। अतः लगातार पत्तियों की वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में फसल तैयार है या नहीं मालूम करना कुछ कठिन जान पड़ता है। इसलिए जब गांठें अपना उचित आकार प्राप्त कर लें और उनका रंग सुर्ख लाल एवं चमकीला लगने लगे और पत्तियाँ पीली पड़ने लगे तो समझना चाहिए कि अब फसल तैयार है और फिर सिंचाई बन्द कर देते हैं। खुदाई के 15 दिन पूर्व सिंचाई अवश्य बन्द कर देना चाहिए। खुदाई कें बाद एक सप्ताह के लिए प्याज को खेत में ही छोड़ देते हैं इससे पत्तियाँ सूख जाती है और फिर पत्तियों को 2 से 2.5 सेमी गर्दन की तरफ से छोड़कर काट देते हैं लेकिन ध्यान रहे इसमें गाँठों पर किसी प्रकार की चोट नहीं लगनी चाहिए। इस प्रकार प्याज को पुनः 4-5 दिनों के लिए सुखाते हैं।
प्याज की छँटाई: प्याज को बाजार में भेजने से पूर्व उनको आकार के अनुसार छाँट लेते हैं। बहुत छोटी प्याज अलग करे बेचते हैं। जुड़वा, सड़ी, चोट लगी गांठे एवं डण्ठलों वाली प्याज की गांठे अलग कर लेते हैं। ऐसा न करने पर प्याज के भाव अच्छे नहीं मिलते।
ढुलाई एवं वितरण: स्थानिय बाजारों में अच्छी छंटी हुई प्याज को खुली गाड़ियों या ट्रकों में ले जाते हैं परन्तु दूरस्त बाजारों में ले जाने के लिए इन्हे अधिक खुले हुए हवादार जूट के पतले बड़े छिद्र वाले बोरों में भरकर ट्रकों द्वारा ले जाते हैं।
पैदावार: 200 से 250 कुन्तल प्रति हैक्टेयर।
बीज एवं अधिक जानकारी के लिए एन.एस. आर.डी.एफ. के कार्यालय से संपर्क करें।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान
चितेगांव फाटा, नाशिक-औरंगाबाद रोड, पो. दारणासांगवी, ता. निफाड़, जि. नाशिक (महाराष्ट) पिन: 422 003
दूरभाष: 02550-237551, 237816, 202422
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