छत्तीसगढ़ राज्य में विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र है तथा छत्तीसगढ़ को 3 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभक्त किया है. प्रांरभ से ही कृषि को छत्तीसगढ़ राज्य में प्रमुख स्थान प्राप्त है. धान की फसल राज्य की गौरवशाली पंरपरा का अटूट हिस्सा है. वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में संपूर्ण व समवत रूप से कृषि को अपनाना बेहद आवश्यक हो चला है. फसल विवधीकरण द्वारा खेती को पहले ज्यादा टिकाऊ व गुणवत्ता युक्त बनाना प्रमुख उद्देश्य है. बाजार की मांग के अनुसार उत्पाद तैयार करना आज महती आवश्यकता है, कड़ी प्रति स्पर्धा में स्वंय को टिकाऊ रखना कृषकों के लिए एक बड़ी चुनौती है.
फसल के उत्पादन के साथ-साथ उसका उचित प्रबंधन भी आवश्यक है. फसलों के मूल्य संवर्धन द्वारा भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है. अनाज, सब्जी, फल-फूल की खेती के साथ साथ मसालों फसलों का उत्पादन करके एक अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं. आज कृषि एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में जाना जाता है.
छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 137.90 लाख हेक्टेयर है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 4.15 प्रतिशत है. यहां वन क्षेत्र लगभग 41.8 प्रतिशत है. मृदा का 57 प्रतिशत भाग हल्की से मध्यम भारी है यहां की औसत वर्षा 1188 मि.मी. एवं सिंचाई का क्षेत्रफल लगभग 33-34 प्रतिशत है. कृषकों की कुल संख्या 37.46 लाख है. जिसमें से 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति एवं 12 प्रतिशत अनुसूचित जाति है. कुल कृषकों में 55 प्रतिशत सीमांत कृषक हैं, जिनके पास 19 प्रतिशत भूमि है. 22 प्रतिशत कृषकों के पास 23 प्रतिशत भुमि है. अन्ये छोटे कृषकों का प्रतिशत 23 है. जिनके पास 58 प्रतिशत भुमि है.
छत्तीसगढ़ राज्य की जलवायु 3 प्रमुख कृषि क्षेत्र जलवायु है, छत्तीसगढ़ का मैदान 51.0 % बस्तर का पठार 28.0 % उत्तरी पर्वत क्षेत्र 21.0 % है. राज्य का प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र कृषि पारिस्थितिक क्षेत्र 2 में स्थित है. छत्तीसगढ़ महानदी बेसिन कृषि पर्यावरण क्षेत्र जे.3, सी.3 तथा गर्मनम. शुष्क उप नम आनुवंशिक पारिस्थितिक उप क्षेत्र, भारी लोम, मिट्टी से चिकनी लाल मिट्टी और पीली मिट्टी, मध्यम उपलब्ध जल सामष्टी फसल अवधी की लम्बाई 150-180 दिन है. कृषि जलवायु क्षेत्रों में 52 मसालों में से वर्तमान में 8 मसालो फसलों को छ.ग.. में उगाया जाता है. अन्य मसाला फसलों को उचित जानकारी के अभाव के कारण नहीं उगाया जा रहा है.
कृषि सांख्यिकी 2017 के अनुसार छ.ग. राज्य में संचालनालय कृषि छ.ग. शासन रायपुर के अनुसार छ.ग. में सबसे अधिक क्षेत्र में मिर्च 36410 हेक्टेयर में उगाया जाता है. इसके बाद धनिया 18861, हेक्टेयर, अदरक 11595 हेक्टेयर, हल्दी 10542 हेक्टेयर, लहसुन 3995 हेक्टेयर, मेथी 3817 हेक्टेयर, अदरक 11595 हेक्टेयर, अजवायन 152 हेक्टेयर, करायत 148 हेक्टेयर एवं अन्य 11097 हेक्टेयर फसलों का क्षेत्रफल है. अधिकांश मसाला फसलों को कम लागत व कम सिंचाई में उगाई जा सकती है तथा परंपरागत फसलों की तुलना मे अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है. वर्तमान में इन फसलों की तुलना में अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है, क्योंकि वर्तमान में इन फसलों का बाजार मूल्य अधिक है. जीरा, सौंफ, कलौजी, खोवा, पुदीना, तुलसी, सालों के क्षेत्र का विस्तार शीघ्र करने की आवश्यकता है इनका प्रदेश की कृषि जलवायु क्षेत्र मे परीक्षण होना चाहिए तथा कृषि तकनिकी विकसित करना आवश्यक है.
छत्तीसगढ़ मे अभी जिन मसाले फसलों का उत्पादन किया जा रहा है, उनकी उत्पादन क्षमता अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. इनका प्रमुख कारण है, छत्तीसगढ़ में इन फसलों का अनुसंधान प्रसार, कार्यक्रम के कम संसाधन है. जिसमें छत्तीसगढ़ की कृषि जलवायु के अनुसार किस्मों का चुनाव एवं कृषि तकनीक का विकास नही हुआ है. इसके साथ-साथ राज्य की अधिकांश क्षेत्र वनाच्छिदत होने के कारण पिछड़े एवं कम जागरूक हैं. अतः छत्तीसगढ़ मे मसालों के विकास हेतु सघन, अनुसंधान एवं प्रसार की आवश्यकता है. मसाला फसलों के क्षेत्र एवं उत्पादन बढ़ाये हेतु कृषकों के प्रदेशों पर प्रदर्शनी की आवश्यकता है। इसके साथ ही उचित प्रसंस्करण, भण्डारण, विपणन की व्यवस्था पर ध्यान देना आवश्यक है जिससे कृषकों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके.
लेखक:
प्रदीप कुमार साहू (एम.एस.सी. उद्यानिकी) हेमंत कुमार (पुष्प एवं भू-दृश्य कला विज्ञान), ललित कुमार वर्मा, सोनू दिवाकर, (एम.एस.सी.उद्यानिकी) बी.एस. असाटी (सब्जी विज्ञान विभाग) आई. एस. नरूका (Depart. Plantation spices meditional and Aromatic crops), पंडित किशोरी लाल शुक्ल उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधन केन्द्र, राजनांदगांव.(छ.ग.)
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