मूंग एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है जिसकी खेती समस्त राजस्थान में की जाती है. जायद मूंग की खेती पेटा कास्त वाले क्षेत्रों, जलग्रहण वाले क्षेत्रों एवं बलुई दोमट, काली तथा पीली मिट्टी जिसमें जल धारण क्षमता अच्छी होती है, में करना लाभप्रद होता है. जायद मूंग की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य करना उपर्युक्त रहता है जबकि कुछ किस्मों (जैसे-एस.एम.एल. 668 आदि) की बुवाई मार्च के अन्त तक भी कर सकते हैं. अंकुरण के लिए मृदा में उचित तापमान होना आवश्यक है. मूंग की फसल 60-65 दिन में पक जाती है. इसकी खेती किसान भाईयों को रबी एवं खरीफ के मध्य के खाली समय में अतिरिक्त आय देने के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने में भी सहायक है.
मूंग की उन्नत किस्में (Improved varieties of moong)
जायद मूंग की अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन करें.
जैसे- आई पी एम -2-3 सत्या (एम एच-2-15), के-851, पूसा बैसाखी, एस.एम.एल.-668, एस.-8, एस.-9, आर.एम.जी.-62, आर.एम.जी.-268, आर.एम.जी.-344 (धनू), आर.एम.जी.-492, पी.डी.एम.-11, गंगा-1 (जमनोत्री), गंगा-8 (गंगोत्री) एवं एमयूएम-2, ये किस्में 60-65 दिन में पककर 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है.
खेत की तैयारी (Farm Preparation)
इसकी बुवाई के लिये आवश्यकतानुसार एक या दो बार जुताई कर खेत को तैयार करें.
भूमि उपचार (Land treatment)
भूमिगत कीटों व दीमक की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें.
बीज की मात्रा एवं बुवाई (Seed quantity and sowing)
एक हैक्टेयर क्षेत्रफल हेतु 15-20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. कतार से कतार की दूरी 25-30 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेन्टीमीटर रखें.
बीज उपचार (Seed treatment)
मूंग के बीजों को बीज जनित बीमारियों (जैसे-उखटा, झुलसा आदि) से बचाने के लिए 3 ग्राम पारद फफूंदनाशी या कैप्टान या 2 ग्राम थाईरम या बाविस्टीन (कार्बेन्डाजिम) या 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें.
इसके अतिरिक्त बीजों को सर्वप्रथम राइजोबियम कल्चर (200 ग्राम के 3 पैकेट प्रति हैक्टेयर बीज के लिए) फिर पी.एस.बी. कल्चर (200 ग्राम के 3 पैकेट प्रति हैक्टेयर बीज के लिए) तथा अन्त में जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा 6-8 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से विभागीय सिफारिश के अनुसार उपचारित कर बुवाई करें.
राईजोबियम कल्चर से बीज उपचार की विधि (Method of seed treatment from Rhizobium culture)
बीजों को राईजोबियम से उपचारित करने हेतु एक लिटर पानी व 250 ग्राम गुड को घोलकर गर्म करें तथा ठंडा होने पर 200 ग्राम के 3 पैकेट शाकाणु संवर्ध (कल्चर) मिला दें. इस मिश्रण की एक हैक्टेयर में बोये जाने वाले बीजों पर भली-भांति परत चढ़ा दें व छाया में सुखाकर बुवाई करें.
खाद एवं उर्वरक (Manures and fertilizers)
मूंग की फसल में उर्वरक प्रबन्धन भी बहुत आवश्यक है. बुवाई पूर्व 250 किलो जिप्सम व बुवाई के समय 25 किलो जिंक सल्फेट को ऊरकर खेत में डालें. सल्फर एवं जिंक के प्रयोग से दाने सुडौल एवं चमकदार बनते हैं. मूंग की फसल में 90 किलो डीएपी एवं 10 किलो यूरिया अथवा 250 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट व 45 किलो यूरिया बुवाई के समय ऊरकर देवें.
निराई-गुड़ाई (Weeding hoeing)
मूंग की फसल में बुवाई पूर्व फ्लूक्लोरेलिन 750 मिलीलिटर का छिड़काव कर रैक से जमीन में मिलायें अन्यथा बुवाई के 25-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई कर देवें, इससे खरपतवार की रोकथाम के साथ-साथ नमी संरक्षण भी होता है.
सिंचाई (Irrigation)
मूंग की फसल में फूल आने से पूर्व (30-35 दिन पर) तथा फलियों में दाना बनते समय (40-50 दिन पर) सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है. तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार आवश्यकता होने पर अतिरिक्त सिंचाई देवें.
फसल संरक्षण (Crop protection)
मूंग की फसल में यदि मोयला, हरा तैला, फली छेदक का प्रकोप हो तो अजादिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत ई.सी. 1.5 लिटर या एजादिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत ई.सी. 750 मिलीलिटर 300 मिलीलिटर प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
मूंग में चित्ती जीवाणु रोग का प्रकोप होने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 20 ग्राम तथा सवा किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
मूंग में पीत शिरा मोजेक रोग होने पर रोगग्रसित पौधों को उखाड़ दें एवं डायमिथोएट 30 ई.सी. एक लिटर दवा को 300 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. आवश्यक हो तो 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें.
छाछ्या रोग की रोकथाम हेतु प्रति हैक्टेयर ढाई किलो घुलनशील गंधक अथवा एक लिटर कैराथियॉन (0.1 प्रतिशत) के घोल का पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देते ही एवं दूसरा छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करें.
पीलिया रोग के लक्षण दिखाई देते ही 0.1 प्रतिशत गंधक के तेजाब या 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
कटाई एवं गहाई (Harvesting and threshing)
मूंग की फसल पकने पर फलियों के चटकने से पहले काट लें. खलिहान में 10-15 दिन फसल अच्छी तरह सुखाकर गहाई कर दाना निकालें.
इस प्रकार जायद में उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टर मूंग की उपज प्राप्त की जा सकती है.
जायद मूंग फसल के लिए बिजाई के समय ध्यान देने योग्य बातें (Things to note at the time of sowing for Zayed Moong crop)
- बिजाई पूर्व खेत की मिट्टी की जांच करावें.
- फसल चक्र अपनायें. लगातार एक ही फसल की बिजाई न करें.
- बिजाई के लिए उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज प्रयोग में लावें.
- बिजाई हेतु बीज की सिफारिश की गई मात्रा प्रयोग करें.
- भूमि व बीज उपचार अवश्य करें.
- जैव उर्वरकों (कल्चर) का प्रयोग करें.
- उर्वरकों की सिफारिश की गई मात्रा उचित समय पर प्रयोग करें. बेसल प्रयोग अवश्य करें.
- फसल की प्रारम्भिक अवस्था में खेत को खरपतवार विहीन रखें.
- समय पर प्रथम सिंचाई लगावें.
- फसल बीमा करवायें.
- तिलहनी व दलहनी फसलों में सिंगल सुपर फॉस्फेट (उर्वरक) का प्रयोग करें.
- डी.ए.पी. उर्वरक का प्रयोग केवल बेसल के रूप में करें.
- कीटनाशक दवाइयों को मिलाकर छिड़काव न करें.
- बीज /खाद को खरीदते समय बिल अवश्य लें.
सुरेन्द्र कुमार, अनुपमा,
वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता एवं डॉ. बी. एस. मीणा प्रोफेसर (प्रसार)
कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर 335001
9982934692
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