
Guava Cultivation Techniques: भारत में अमरूद न केवल एक स्वादिष्ट फल के रूप में जाना जाता है, बल्कि यह किसानों की आमदनी का मजबूत स्रोत भी बन चुका है. इसकी खेती अब पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर वैज्ञानिक पद्धतियों और उन्नत किस्मों के सहारे सफल व्यवसाय का रूप ले रही है. यदि आप भी अमरूद की खेती शुरू करने की सोच रहे हैं, तो आपको इसकी उपयुक्त किस्मों, मिट्टी, जलवायु और देखभाल के तरीकों के बारे में जानकारी होना जरूरी है.
क्यों करें अमरूद की खेती?
अमरूद एक ऐसा फल है जिसे हर आयु वर्ग के लोग पसंद करते हैं. इसमें विटामिन C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इसे सेहत के लिहाज से भी उपयोगी बनाते हैं. साथ ही, इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं आती और यह कम पानी में भी अच्छी उपज देता है. यही वजह है कि देशभर के कई किसान अब अमरूद की उन्नत खेती की ओर रुख कर रहे हैं.
अमरूद की प्रमुख उन्नत किस्में
उच्च पैदावार और बाजार में मांग को देखते हुए वैज्ञानिकों ने कई बेहतर अमरूद की किस्में विकसित की हैं. इनमें से कुछ खास किस्में हैं:
- इलाहाबाद सफेदा: सफेद गूदा, मीठा स्वाद और अच्छी शेल्फ लाइफ.
- लखनऊ-49 (सरदार): अत्यधिक लोकप्रिय किस्म, गूदा मुलायम और रसदार.
- हिसार सफेदा: उत्तर भारत में प्रसिद्ध, जल्दी पकने वाली.
- चित्तीदार और धारीदार: स्वादिष्ट और आकर्षक रूप.
- ग्वालियर-27 और एपिल गुवावा: नई किस्में जो रोग प्रतिरोधी हैं.
- अर्का मृदुला, श्वेता, ललित, पंत प्रभात: व्यावसायिक स्तर पर काफी सफल.
- हाइब्रिड किस्में: कोहीर सफेदा और सफेद जाम, जो ज्यादा उत्पादन देती हैं.
इन किस्मों में से किसान अपनी जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन कर सकते हैं.
बाग लगाने की सही विधि
यदि आप अमरूद की खेती की शुरुआत कर रहे हैं, तो बाग लगाने की विधि पर विशेष ध्यान देना जरूरी है:
- गड्ढों की खुदाई: 5×5 मीटर की दूरी पर 75 सेंटीमीटर गहरे, चौड़े और लंबे गड्ढे तैयार करें.
- खाद का प्रयोग: हर गड्ढे में 30-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद और 1 किलो नीम की खली मिलाएं.
- मिट्टी का भराव: ऊपर की मिट्टी से गड्ढों को जमीन से 20 सें.मी. ऊंचा भरें.
- बीच की जगह का उपयोग: पहले 2-3 वर्षों में खाली जगह में दलहनी फसलें जैसे लोबिया, उड़द, मूंग या सोयाबीन उगाकर अतिरिक्त आमदनी पाई जा सकती है.
उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
अमरूद की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. मिट्टी का pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए. अगर pH इससे ज्यादा हुआ, तो उकठा रोग का खतरा बढ़ जाता है जो पूरे बाग को नुकसान पहुंचा सकता है.
जलवायु की बात करें तो अमरूद उष्ण और उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में अच्छी उपज देता है. 15°C से 30°C तक का तापमान इसके लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. यह पौधा सूखे और कम पानी की स्थिति में भी जीवित रह सकता है, लेकिन अधिक गर्मी, तेज हवाएं या जलभराव इसकी उपज को प्रभावित कर सकते हैं.
रोगों से बचाव और देखभाल
हालांकि अमरूद की कुछ किस्में रोग प्रतिरोधक होती हैं, फिर भी सही देखभाल और समय-समय पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग जरूरी होता है. फल मक्खी, तना गलन और उकठा जैसे रोगों से बचाव के लिए:
- पौधों की नियमित निगरानी करें.
- उचित जल निकासी सुनिश्चित करें.
- फल आने के दौरान नीम की खली या गौमूत्र आधारित जैविक घोल का छिड़काव करें.
आमदनी और बाजार
एक हेक्टेयर में लगाए गए अमरूद के बाग से औसतन 150 से 200 क्विंटल फल मिल सकते हैं. बाजार में अमरूद की कीमत किस्म, आकार और गुणवत्ता के अनुसार 20 से 60 रुपए प्रति किलो तक मिलती है. ऐसे में एक हेक्टेयर से 3 से 6 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी संभव है. साथ ही, फल प्रोसेसिंग यूनिट, जूस और जैम उद्योग में भी अमरूद की भारी मांग रहती है.
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